2025 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कई मायनों में अहम साल रहा। देश के केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इस दौरान कुछ ऐसे फैसले लिए, जिनका सीधा असर आपकी जेब और बाजार की चाल पर पड़ा। देश की आर्थिक सेहत सुधारने और महंगाई पर लगाम कसने के लिए RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने साल भर कई कदम उठाए, जिनका व्यापक प्रभाव देखने को मिला।
ब्याज दरों में ऐतिहासिक कटौती
जब भी देश की आर्थिक रफ्तार धीमी पड़ती है या महंगाई अनियंत्रित होने लगती है, तब भारतीय रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सक्रिय हो जाता है। इसी क्रम में, RBI की मौद्रिक नीति समिति हर दो महीने में बैठक करती है, जहां महंगाई, ब्याज दरों और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की स्थिति की गहन समीक्षा की जाती है। इन समीक्षाओं के आधार पर ही यह निर्धारित किया जाता है कि बाजार में नकदी का प्रवाह कितना होना चाहिए और लोन की लागत को घटाकर या बढ़ाकर आर्थिक गतिविधियों को कैसे संतुलित किया जाए।
वर्ष 2025 में, RBI ने आम लोगों और उद्योगों को बड़ी राहत देते हुए कुल 125 बेसिस प्वाइंट की कटौती की। इस कटौती के बाद रेपो रेट 6.5% से घटकर 5.25% पर आ गई। यह कटौती चरणों में की गई:
- फरवरी: 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती।
- अप्रैल: 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती।
- जून: उम्मीद से दोगुनी, यानी 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती।
- दिसंबर: पुनः 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती।
आम आदमी और कारोबार पर सीधा असर
रेपो रेट में कमी का सीधा और सकारात्मक प्रभाव आम जनता पर पड़ता है। इससे घर और कार जैसे बड़े लोन सस्ते हो जाते हैं, जिससे मासिक किस्त (EMI) में कमी आती है। उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ती है, जिससे बाजार में मांग को बढ़ावा मिलता है और आर्थिक चक्र में तेजी आती है।
कंपनियों के लिए भी यह एक अच्छी खबर होती है। पूंजी की लागत कम होने से उनका नकदी प्रवाह (कैश फ्लो) सुधरता है, जिससे वे निवेश और विस्तार के लिए अधिक प्रेरित होते हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि ब्याज दरों में कटौती से कभी-कभी पूंजी का देश से बाहर निकलना (कैपिटल आउटफ्लो) भी बढ़ सकता है। यदि अन्य देशों में ब्याज दरें अधिक हों, तो विदेशी निवेशक वहां निवेश करना पसंद करते हैं, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ता है और वह कमजोर हो सकता है।
शेयर बाजार और रुपये की स्थिरता की चुनौती
अर्थशास्त्रियों के अनुसार, RBI की नीतियों का सीधा असर शेयर बाजार की दिशा पर भी पड़ता है। ब्याज दरों में बदलाव, बाजार में तरलता (लिक्विडिटी) की उपलब्धता और निवेशकों की भावनाएं, ये तीनों मिलकर बाजार की चाल तय करते हैं। रेपो रेट घटने से जहां बाजार में नकदी बढ़ती है और कर्ज सस्ता होता है, वहीं आर्थिक गतिविधियां भी तेज होती हैं।
लेकिन इसका असर देश के भुगतान संतुलन (Balance of Payments), महंगाई और रुपये की मजबूती पर भी पड़ता है, जो पहले ही कमजोर होकर डॉलर के मुकाबले 90 के स्तर को पार कर चुका है। बाजार में इस समय जहां लार्ज कैप शेयर बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं मिड-कैप और स्मॉल-कैप सेक्टरों पर मांग की कमी के कारण दबाव देखा जा रहा है। इस पूरी स्थिति को देखते हुए, RBI को अपनी मौद्रिक नीति बेहद संतुलित तरीके से चलानी पड़ रही है, ताकि महंगाई को नियंत्रण में रखते हुए आर्थिक विकास को गति मिलती रहे और साथ ही रुपये की गिरावट को भी रोका जा सके। केंद्रीय बैंक के सामने यह एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।


