Core Sector Growth: नवंबर में देश के आठ प्रमुख बुनियादी ढांचा क्षेत्रों की वृद्धि दर में भारी गिरावट ने अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर सवाल खड़े कर दिए हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
# Core Sector Growth: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंता की नई घंटी
## गिरती Core Sector Growth: क्या हैं मुख्य कारण?
नवंबर में देश के आठ प्रमुख बुनियादी ढांचा क्षेत्रों की वृद्धि दर में भारी गिरावट ने अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह वह कोर सेक्टर है जो किसी भी देश की औद्योगिक गतिविधियों की रीढ़ होता है, और इसमें नवंबर 2024 के 5.8 प्रतिशत से घटकर मात्र 1.8 प्रतिशत पर आना एक बड़ा झटका माना जा रहा है। आधिकारिक आंकड़े साफ बताते हैं कि कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम रिफाइनरी उत्पादों और बिजली उत्पादन में आई गिरावट इस सुस्ती की सबसे बड़ी वजह है। हालांकि, अक्टूबर में जहां इन आठ प्रमुख उद्योगों—कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम रिफाइनरी उत्पाद, बिजली, उर्वरक और इस्पात का संयुक्त उत्पादन शून्य से भी नीचे गिरकर -0.1 प्रतिशत पर पहुंच गया था, वहीं नवंबर का 1.8 प्रतिशत का आंकड़ा कुछ मासिक सुधार दर्शाता है।
पूरे चालू वित्त वर्ष 2025-26 की बात करें तो अप्रैल से नवंबर की अवधि में इन क्षेत्रों का उत्पादन केवल 2.4 प्रतिशत बढ़ पाया है, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2024-25 की समान अवधि में यह वृद्धि 4.4 प्रतिशत थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि बुनियादी ढांचा क्षेत्र, जो देश की औद्योगिक और आर्थिक वृद्धि की रीढ़ माना जाता है, फिलहाल दबाव में है और ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े कच्चे माल व बिजली उत्पादन में कमजोरी का असर समग्र आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ सकता है। रियल-टाइम बिजनेस – टेक्नोलॉजी खबरों के लिए यहां क्लिक करें
## ऊर्जा क्षेत्र में सुस्ती का व्यापक असर
बुनियादी ढांचा क्षेत्र का दबाव में रहना, विशेषकर ऊर्जा से जुड़े कच्चे माल और बिजली उत्पादन में कमजोरी, व्यापक औद्योगिक गतिविधियों पर गहरा असर डाल सकता है। इससे न केवल उत्पादन लागत बढ़ सकती है, बल्कि अंततः उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें भी प्रभावित हो सकती हैं। विश्लेषकों का मानना है कि इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार को तत्काल सुधारात्मक उपाय करने होंगे, ताकि आने वाले महीनों में अर्थव्यवस्था की रफ्तार को फिर से तेज किया जा सके। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। इस गिरावट के दीर्घकालिक प्रभावों पर विशेषज्ञों की पैनी नजर है, क्योंकि इसका सीधा संबंध रोजगार सृजन और निवेश के माहौल से भी है। इस तरह के आंकड़ों को गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि ये भारत की आर्थिक प्रगति के संकेतकों में से एक हैं।






