FDI: वैश्विक आर्थिक मंदी और बढ़ती अनिश्चितता के बीच, वर्ष 2025 में भारतीय बाहरी क्षेत्र (External Sector) ने एक मिली-जुली तस्वीर पेश की। एक ओर जहां भारत ने रिकॉर्ड $825 बिलियन का निर्यात हासिल किया, वहीं दूसरी ओर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह काफी अस्थिर रहा, कुछ महीनों में तो शुद्ध निवेश नकारात्मक तक चला गया। यह स्थिति निवेशकों और नीति निर्माताओं दोनों के लिए चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि मजबूत विदेशी निवेश किसी भी विकासशील अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है।
भारत का विदेशी निवेश (FDI) और निर्यात परिदृश्य: 2025 की मिश्रित तस्वीर और 2026 की राह
FDI प्रवाह में गिरावट: अगस्त से अक्टूबर 2025 के बीच क्या हुआ?
अगस्त से अक्टूबर 2025 के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह में गिरावट के कई कारण थे। विदेशी कंपनियों द्वारा भारत से पैसा वापस भेजने (Repatriation) में वृद्धि देखी गई, जिसका अर्थ है कि कई वैश्विक फर्मों ने अपनी भारतीय इकाइयों से अर्जित लाभ को अपने घरेलू देशों में वापस भेज दिया। इसके अलावा, भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशों में किए गए निवेश (Outward Investment) में भी वृद्धि हुई, जिससे शुद्ध निवेश संख्या पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। वैश्विक अनिश्चितताओं ने भी निवेशकों के विश्वास को कमजोर किया, जिससे नए निवेशों की आमद प्रभावित हुई। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
हालांकि, निर्यात मोर्चे पर भारत ने असाधारण प्रदर्शन किया। भारतीय निर्यातकों ने $825 बिलियन का एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया, जो वैश्विक व्यापार में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। इस शानदार वृद्धि में कई प्रमुख क्षेत्रों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता के कारण भारत एक पसंदीदा विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरा।
- फार्मास्युटिकल क्षेत्र: भारतीय दवाओं की गुणवत्ता और सामर्थ्य ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखी।
- इंजीनियरिंग क्षेत्र: भारत के इंजीनियरिंग उत्पादों की मांग ने भी निर्यात को गति दी।
सेवाओं के निर्यात ने भी वैश्विक मंदी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था को एक महत्वपूर्ण सहारा दिया। आईटी और आईटी-सक्षम सेवाओं ने विशेष रूप से अच्छा प्रदर्शन किया, जिससे देश को विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखने में मदद मिली।
व्यापार समझौते और भविष्य की संभावनाएं
भारत द्वारा कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर हस्ताक्षर और बातचीत जारी रखने से व्यापार को और बढ़ावा मिला है। यूनाइटेड किंगडम, EFTA (यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ), ओमान और न्यूजीलैंड जैसे देशों के साथ FTAs ने भारतीय उत्पादों के लिए नए बाजार खोले हैं और व्यापार बाधाओं को कम किया है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत वित्तीय वर्ष 2026 में $1 ट्रिलियन निर्यात के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त कर पाएगा? मौजूदा रुझानों को देखते हुए, यह लक्ष्य चुनौतीपूर्ण प्रतीत होता है, लेकिन असंभव नहीं। सरकार के सुधारवादी उपाय और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश उदारीकरण नीतियां 2026 में निवेश रिकवरी की संभावनाओं को मजबूत करती हैं।
भारत सरकार ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। इन सुधारों में Ease of Doing Business को बेहतर बनाना, नियामक बाधाओं को कम करना और विभिन्न क्षेत्रों में निवेश सीमा को बढ़ाना शामिल है। इन प्रयासों का उद्देश्य भारत को वैश्विक निवेशकों के लिए एक अधिक आकर्षक गंतव्य बनाना है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
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भविष्य का रोडमैप स्पष्ट है: निर्यात को और अधिक बढ़ावा देना, विशेष रूप से उच्च-मूल्य वाले विनिर्माण क्षेत्रों में, और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह को स्थिर और बढ़ाना। यह भारतीय अर्थव्यवस्था को उसकी पूरी क्षमता तक पहुंचने और वैश्विक मंच पर एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण होगा। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।


