GDP Growth: भारतीय अर्थव्यवस्था की बढ़ती रफ्तार और उसके सामने खड़ी चुनौतियां हमेशा से ही बहस का विषय रही हैं। ऐसे में, भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने आगामी केंद्रीय बजट 2026-27 के लिए कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें पेश की हैं, जिनका उद्देश्य देश की आर्थिक प्रगति को स्थायी बनाना और मजबूत राजकोषीय नीतियों के माध्यम से भारत को वैश्विक पटल पर एक शक्तिशाली आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित करना है। यह सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि एक सुनियोजित रणनीति है जो भारत को अगले दशक के लिए तैयार कर रही है।
# भारत की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए CII का मास्टरप्लान: GDP Growth के नए आयाम
## GDP Growth के लिए राजकोषीय सुदृढ़ता का खाका
भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने आगामी केंद्रीय बजट में संस्थागत सुधारों और राजकोषीय मजबूती पर विशेष जोर देने की आवश्यकता बताई है, ताकि देश की आर्थिक वृद्धि की गति को बनाए रखा जा सके। CII द्वारा भारत की वृहद आर्थिक स्थिरता को मजबूत करने के लिए तैयार की गई रणनीति ऋण स्थिरता, राजकोषीय पारदर्शिता, राजस्व जुटाने और व्यय दक्षता जैसे अहम स्तंभों पर आधारित है।
CII के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने रेखांकित किया कि भारत ने उच्च विकास दर, नियंत्रित मुद्रास्फीति और बेहतर राजकोषीय संकेतकों का एक दुर्लभ संतुलन हासिल किया है। इस संतुलन को बनाए रखने के लिए फरवरी में पेश होने वाले 2026-27 के केंद्रीय बजट में अनुशासित राजकोषीय प्रबंधन और गहन संस्थागत सुधारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उद्योग मंडल ने कर-जीडीपी अनुपात बढ़ाने की जरूरत पर जोर दिया है। वर्तमान में केंद्र और राज्यों को मिलाकर यह अनुपात लगभग 17.5 प्रतिशत है, जबकि देश की विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इसे और बढ़ाना अनिवार्य है।
CII ने कर चोरी का पता लगाने के लिए अत्याधुनिक डेटा विश्लेषण तकनीकों का उपयोग करने, कर रिटर्न को उच्च मूल्य के लेन-देन से जोड़ने और भारत के मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचे से प्राप्त आंकड़ों के बेहतर उपयोग की सिफारिश की है। इससे कर आधार का विस्तार होगा और अनुपालन लागत भी कम होगी। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
कर्ज को प्रबंधन योग्य बनाए रखने के लिए CII ने वित्त वर्ष 2030-31 तक सरकार के कर्ज को जीडीपी के लगभग 50 प्रतिशत तक सीमित रखने की रूपरेखा का पालन करने पर जोर दिया है। इसके साथ ही, राजस्व, व्यय और ऋण के लिए तीन से पांच वर्ष का ‘रोलिंग रोडमैप’ अपनाने की सलाह दी, ताकि मध्यम अवधि का राजकोषीय ढांचा मजबूत हो सके। केंद्र और राज्यों के सार्वजनिक वित्त की गुणवत्ता आंकने के लिए एक राजकोषीय प्रदर्शन सूचकांक को संस्थागत रूप देने का सुझाव भी दिया गया है, जिससे बेहतर प्रदर्शन करने वाले और सुधार-उन्मुख राज्यों को प्रोत्साहन मिल सके।
CII ने विनिवेश को लेकर एक चरणबद्ध रणनीति अपनाने की सिफारिश की है। इसके तहत, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी धीरे-धीरे घटाकर पहले 51 प्रतिशत और बाद में 26 से 33 प्रतिशत तक लाने का प्रस्ताव है, साथ ही समानांतर रूप से पूर्ण निजीकरण के प्रयास जारी रखने की बात भी कही गई है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
## सब्सिडी सुधार और व्यय दक्षता: भारत का आर्थिक भविष्य
व्यय प्रबंधन के तहत, विशेषकर सब्सिडी सुधार पर जोर देते हुए उद्योग मंडल ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुड़ी चुनौतियों, जैसे पुराने आंकड़े और कालाबाजारी, की ओर ध्यान दिलाया है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास और जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता जैसे उच्च प्रभाव वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता देने और निगरानी के लिए डिजिटल उपकरणों के उपयोग की आवश्यकता बताई, जिससे बेहतर नतीजों के साथ-साथ वित्तीय बचत भी सुनिश्चित की जा सके। रियल-टाइम बिजनेस – टेक्नोलॉजी खबरों के लिए यहां क्लिक करें।
ये सिफारिशें केवल तात्कालिक सुधारों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण को दर्शाती हैं, जो भारत को एक मजबूत और लचीली अर्थव्यवस्था बनाने में सहायक होंगी। CII का मानना है कि इन उपायों को अपनाकर भारत न केवल अपनी वर्तमान विकास दर को बनाए रख पाएगा, बल्कि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए भी बेहतर ढंग से तैयार होगा। देश की आर्थिक प्रगति के लिए एक समन्वित और दूरदर्शी नीतिगत ढांचा अत्यंत आवश्यक है, और ये सुझाव इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।


