ग्निपथ योजना (Agnipath scheme) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) 27 फरवरी को फैसला सुनाएगा। जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार (Central Government) की अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट 27 जनवरी यानि सोमवार को फैसला सुनाएगा। पढ़िए पूरी खबर
दिल्ली हाईकोर्ट केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 27 फरवरी को फैसला सुनाएगा। चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली बेंच फैसला सुनाएगी। कोर्ट ने 15 दिसंबर, 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
योजना, इसकी भर्ती प्रक्रिया और उम्मीदवारों की नियुक्ति को चुनौती देते हुए याचिकाओं के बैच दायर किए गए हैं। चार साल के लिए युवाओं को भारतीय सेना में भर्ती करने के लिए बनाई गई इस योजना के बाद इस अवधि के बाद चयनित उम्मीदवारों में से केवल 25 प्रतिशत को ही रखा जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने 15 दिसंबर को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने वकीलों से छुट्टियों से पहले अपनी लिखित दलीलें पेश करने को कहा था। केंद्र ने कहा था कि वह अग्निवीरों की भूमिका, जिम्मेदारियों और पदानुक्रम पर हलफनामा दायर करेंगे।
हाई कोर्ट ने 14 दिसंबर को भारतीय सेना में अग्निवीरों और नियमित सिपाहियों (सैनिकों) के लिए अलग-अलग वेतनमान के केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाया था, अगर उनका कार्यक्षेत्र समान है। केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हुए, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि अग्निवीर नियमित कैडर से अलग कैडर है।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि अग्निवीर का कैडर बिल्कुल अलग है और भारतीय सेना को दी गई उनकी चार साल की सेवा को रेगुलर सर्विस नहीं माना जाएगा। चार साल पूरा होने के बाद अग्निवीर की सेना में ज्वाइनिंग को नई नियुक्ति माना जायेगा। केंद्र सरकार ने कहा था कि अग्निवीर का कैडर सिपाही के नीचे होगा।
केंद्र सरकार की ओर से एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि अग्निवीर के तौर पर शामिल करने के पीछे तर्क ये है कि बेसिक ट्रेनिंग लेने के बाद अगर वो सेना में सिपाही के पद पर नियुक्त होता है, तो उनकी ट्रेनिंग अग्निवीर से उच्च स्तर की होगी। इस तरह सेना में दस-पन्द्रह सालों के बाद कोई भी सिपाही ऐसा नहीं होगा, जो अग्निवीर नहीं रहा हो।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि जब अग्निवीर और सिपाही का काम एक ही किस्म का होगा तो अग्निवीरों का वेतन कम क्यों होगा। तब एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि अग्निवीरों की जिम्मेदारी सिपाही की तरह नहीं होगी। उन्हें सिपाही को सैल्यूट करना होगा। सुनवाई के दौरान जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने केंद्र से 75 फीसदी अग्निवीरों के भविष्य को लेकर योजनाओं के बारे में पूछा था जो चार साल पूरा करने के बाद सेना से बाहर हो जाएंगे। तब ऐश्वर्या भाटी ने कहा था कि केंद्र सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में अग्निवीरों के लिए आरक्षण की योजना बनाई है।
केंद्र ने कहा था कि यह योजना जल्दबाजी में नहीं बनाई गई है, बल्कि युवाओं के मनोबल को बढ़ाने के लिए और अग्निवीरों की स्किल मैपिंग के लिए काफी अध्ययन के साथ तैयार की गई है। एएसजी ने कहा था कि इस निर्णय को लेने में पिछले दो वर्षों के दौरान बहुत कुछ किया गया है जैसे कई आंतरिक और बाहरी परामर्श, कई बैठकें और परामर्श भी हितधारकों के साथ आयोजित किए गए हैं।
भाटी ने यह भी तर्क दिया था कि चूंकि भारतीय सशस्त्र बल दुनिया में सबसे अधिक पेशेवर सशस्त्र बल हैं, इसलिए जब वह इस तरह के बड़े नीतिगत फैसले ले रहे हों तो उन्हें बहुत अधिक छूट दी जानी चाहिए। इस योजना पर दायर दर्जनों याचिकाओं के साथ, इसकी शुरूआत से देश भर में लोगों ने विरोध किया। योजना, इसकी भर्ती प्रक्रिया और उम्मीदवारों की नियुक्ति को चुनौती देते हुए याचिका दायर की गई।
इस योजना के साथ कि केवल 25 प्रतिशत चयनित उम्मीदवारों को ही रखा जाएगा, याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि बाकी 75 प्रतिशत उम्मीदवार चार साल बाद बेरोजगार हो जाएंगे और उनके लिए कोई योजना बी नहीं है। पेश हुए याचिकाकर्ताओं में से एक ने 12 दिसंबर को तर्क दिया था- छह महीने में, मुझे शारीरिक सहनशक्ति विकसित करनी है और हथियारों का उपयोग करना सीखना है। छह महीने बहुत कम समय है। हम राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने जा रहे हैं।
हाईकोर्ट ने 12 दिसंबर को कहा था कि अग्निपथ योजना को विशेषज्ञों ने तैयार किया है और कोर्ट विशेषज्ञ निकाय नहीं है कि वो इस योजना के बारे में फैसला करे। कोर्ट ने कहा था कि वो विभिन्न देशों के रक्षा बलों और उनकी सैन्य रणनीति की भी पड़ताल नहीं करने जा रही है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि अग्निपथ योजना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक है।
सैन्य बलों में शामिल होने वाले अग्निवीरों में किसी यूनिट से जुड़ने के लिए ट्रेनिंग की कमी होगी। ये योजना समान काम समान वेतन के सिद्धांत का उल्लंघन है। अग्निपथ योजना खत्म होने के बाद 75 फीसदी जवान जो सेना के बाहर जाएंगे उनके लिए कोई बैकअप प्लान नहीं है। सेना से रिटायर हुए एक याचिकाकर्ता ने सुनवाई के दौरान कहा था कि फील्ड के विशेषज्ञ और उप-सेनाध्यक्षों तक ने इस योजना को भारतीय सेना के लिए नुकसानदेह बताया है।
इस मामले में केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा था कि अग्निपथ योजना में कोई कानूनी कमी नहीं है। इससे देश की सीमाओं की रक्षा करने के साथ-साथ दुश्मनों से लड़ने के लिए भारतीय सेना की औसत आयु 32 साल से 26 साल हो जाएगी और सेना तकनीकी रूप से भी ज्यादा दक्ष होगी। अग्निपथ योजना मेरिट के आधार पर और पारदर्शी तरीके से होगी। अग्निवीर देश के साथ-साथ समाज के लिए संसाधन साबित होंगे।
अग्निपथ योजनाओं को लेकर दायर याचिकाओं पर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई को अपने पास और दूसरे हाईकोर्ट में लंबित केस दिल्ली दिल्ली हाईकोर्ट में ट्रांसफर करने का आदेश दिया था। दिल्ली हाईकोर्ट पहले से भारतीय नौसेना के उस विज्ञापन को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें अभ्यर्थियों को 12वीं में मिले मार्क्स कट-ऑफ बढ़ाकर चयन करने की बात कही गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि भारतीय नौसेना में चयन के लिए जो मापदंड बनाए गए हैं उसका ये विज्ञापन उल्लंघन करता है।
अग्निपथ योजना को लेकर एयरफोर्स में चयनित बीस अभ्यर्थियों ने भी हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। उनकी याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना से प्रभावित हुए बिना उन्हें एयरफोर्स में ज्वायन करने का आदेश जारी किया जाए।एयरफोर्स में चयनित अभ्यर्थियों का एयरफोर्स की X और Y ट्रेड में नियुक्ति के लिए 2019 में चयन हुआ था, लेकिन उन्हें ज्वाइनिंग लेटर नहीं मिला है।
याचिका में मांग की गई है कि एयरफोर्स की 2019 का एनरॉलमेंट सूची प्रकाशित करके उन्हें ज्वाइनिंग दी जाए। एयरफोर्स की आधिकारिक वेबसाइट में कहा गया कि कोरोना की वजह से उनकी ज्वाइनिंग नहीं हो रही है, लेकिन अब केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना की वजह से उनकी ज्वाइनिंग पर असर पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में अग्निपथ योजना को लेकर तीन याचिकाएं दाखिल की गई थीं। एक याचिका वकील हर्ष अजय सिंह ने दायर की है। इस याचिका में सरकार को इस योजना पर दोबारा विचार करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि सरकारी खजाने पर बोझ कम करने की कवायद में राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता ना हो। चार साल बाद रिटायर्ड हुए अग्निवीर बिना किसी नौकरी के गुमराह हो सकते हैं।
अग्निपथ योजना को लेकर दूसरी याचिका वकील मनोहर लाल शर्मा ने दायर की है, जबकि तीसरी याचिका वकील विशाल तिवारी ने दायर की है। मनोहर लाल शर्मा की याचिका में अग्निपथ योजना को चुनौती देते हुए कहा गया था कि ये योजना बिना संसद की मंजूरी के लाई गई है। वकील विशाल तिवारी की याचिका में अग्निपथ योजना का सेना पर होने वाले प्रभाव और उसके खिलाफ हुई हिंसा और तोड़-फोड़ की जांच की मांग की गई थी।