सैन फ्रांसिस्को। मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का रविवार को 73 वर्ष की उम्र में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में निधन हो गया।
भारतीय शास्त्रीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने वाले इस महान संगीतकार ने एक सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु का कारण हृदय संबंधी समस्याएं बताया गया है।
उनके निधन की पुष्टि उनके करीबी मित्र राकेश चौरसिया ने की, जिन्होंने पीटीआई को जानकारी दी कि उस्ताद पिछले कुछ दिनों से आईसीयू में भर्ती थे। इस खबर के बाद भारतीय संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
अद्वितीय योगदान और सम्मान
उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपने तबला वादन कौशल से न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में लाखों लोगों का दिल जीता।
- उन्होंने शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ फ्यूजन संगीत में भी अपनी पहचान बनाई।
- भारतीय सिनेमा में भी उनके योगदान को सराहा गया, जैसे कि “हीट एंड डस्ट” और “इन कस्टडी” जैसी फिल्मों में संगीत।
- उन्हें पद्म श्री (1988) और पद्म भूषण (2002) जैसे भारत के प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा गया।
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने ग्रैमी अवार्ड भी जीता और कई प्रतिष्ठित संगीत समारोहों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
जीवन परिचय: एक महान तबला वादक का सफर
जन्म:
- उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था।
- उनके पिता और गुरु उस्ताद अल्ला रक्खा भी तबले के दिग्गज माने जाते थे।
संगीत का प्रारंभ:
- बचपन से ही जाकिर हुसैन को संगीत में रुचि थी।
- महज 12 साल की उम्र में उन्होंने पेशेवर प्रदर्शन शुरू कर दिया।
संगीत की यात्रा:
- भारतीय शास्त्रीय संगीत के अलावा उन्होंने फ्यूजन संगीत को एक नई दिशा दी।
- उन्होंने दुनिया भर के संगीतकारों जैसे यो-यो मा, जॉन मैकलॉघलिन, और शक्ति के साथ काम किया।
- उनके योगदान के कारण उन्हें अक्सर “तबले का बादशाह” कहा जाता था।
संगीत जगत में शोक
उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन से भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संगीत जगत में गहरा शोक व्याप्त है। संगीत प्रेमियों और उनके प्रशंसकों ने सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। उनका निधन एक संगीत युग के अंत के रूप में देखा जा रहा है।
भारतीय संगीत के प्रति उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।