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1 नवम्बर, 2024
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Diwali special : परंपरा और संस्कृति के समृद्धि का संदेश है हुक्का पाती, लोककला की पहचान है दीप

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विविधता में एकता और अपने संस्कृति से पूरे विश्व में पहचान बनाने वाले देश भारत में पर्व-त्योहारों की धूम मची रहती है लेकिन भारत का पर्व, सिर्फ पर्व नहीं बल्कि लोक परंपराओं और ग्रामीण स्वरोजगार को भी बढ़ावा देता है।

 

ऐसा ही कुछ दिख रहा है दीपावली में, जब बाजार में हर ओर मिट्टी से बने दिए की धूम मची है तो यह जहां ग्रामीण स्वरोजगार को गति देने का संकल्प मजबूत करता है। वहीं शहरीकरण और आधुनिक चकाचौंध वाले इस दौर में भी बिहार के मिथिलांचल और कोसी इलाके में हुक्का पाती लोक परंपराओं के समृद्धि और समरसता का संदेश देता है। गुरुवार को मनाए जाने वाले दीपों के पर्व दीपावली की सारी तैयारी पूरी हो चुकी है।Diwali special : परंपरा और संस्कृति के समृद्धि का संदेश है हुक्का पाती, लोककला की पहचान है दीप

आधुनिकता के इस दौर में लोगों ने घरों की साफ-सफाई कर उसे विभिन्न रंगों से रंगकर सजा दिया है। डिजिटल जमाने में विभिन्न प्रकार के रंगीन बल्बों से आकर्षक डेकोरेशन किए गए हैं, लक्ष्मी-गणेश की मिट्टी की प्रतिमा के अलावे नए-नए किस्म की प्रतिमाएं खरीद ली गई है।

दीपावली के उमंग पर आधुनिकता का रंग पूरी तरह से हावी हो गया है। बावजूद इसके आज भी ”हुक्का पाती” को लोग नहीं भूले हैं। शहर में ”हुक्का पाती” का प्रचलन भले ही धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है लेकिन गांव में आज भी इसका जोश खरोश जारी है। दीपावली की शाम हुक्का पाती खेलने के लिए मंगलवार को लोगों ने संठी (एक प्रकार का जलावन) की जमकर खरीदारी किया है।

दीपावली की शाम लक्ष्मी-गणेश पूजन के बाद हर घर में हुक्का पाती के सहारे लक्ष्मी को घर के अंदर और दरिद्र को बाहर किया जाएगा। पुराने समय से परंपरा चली आ रही है कि कई संठी को मिलाकर कम से कम पांच जगहों पर बांध दिया जाता है। उसके बाद पूजा घर के गेट पर जलाए गए दीपक में उसे प्रज्जवलित कर तीन बार घर के बाहर लाकरDiwali special : परंपरा और संस्कृति के समृद्धि का संदेश है हुक्का पाती, लोककला की पहचान है दीप बुझाया जाता है। उसके बाद अंतिम बार घर के सभी पुरुष सदस्य उसे हाथ में लेकर अपने पूरे परिसर का भ्रमण करते हैं और लकड़ी जब छोटी बच जाती है तो पांच बार उसे लांघ कर बुझा दिया जाता है।

कहा जाता है कि इस परिपाटी से घर में हमेशा लक्ष्मी का वास होता है। पहले गांव-गांव में संठी की खेती होती थी और दीपावली के समय मुफ्त में लोग उसे बांटते थे। लेकिन अब एक ओर जहां खेती कम हो गई है, वहीं बांटने वाले भी समाप्त हो गए हैं और संठी बाजारों में बिक रहा है। गांव से लेकर शहर तक के तमाम बाजारों में दो दिन से संठी की खूब बिक्री हो रही है।

लेकिन इसकी सबसे अधिक बिक्री धनतेरस के अवसर पर मंगलवार को सुबह से हो रही है। संठी शहर में भी लाए गए हैं, लेकिन शहरी चकाचौंध में लोग उसे भूल रहे हैं। एक दो कमरे में रहने वाले लोग करें भी तो क्या, उनके पास जगह नहीं है कि वह हुक्का पाती खेल सकें। लेकिन गांव में किसी भी पर्व का रंग हमेशा चटख होता है और इसी कड़ी में गांव के घर-घर में हुक्का पाती बनाकर तैयार कर लिए गए हैं।

दूसरी ओर बाजार में कुम्हार परिवार द्वारा बनाए गए सामान्य दीप के साथ-साथ परिवार की महिलाओं द्वारा तैयार किए गए रंग बिरंगी दीपों की धूम मची हुई है। आसपास के तमाम गांव से बड़ी संख्या में महिलाएं दीप और कलश लेकर बेगूसराय बाजार पहुंंच चुकी हैं। यहां ग्राहकों के सामने ही चटक लाल-हरे रंगों में रंगा जा रहा है, जिससे इस ओर आकर्षण और बढ़ा है।

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