हर ओर दीपों के पर्व दीपावली की धूम मचनी शुरू हो गई है। तैयारी जोरदार स्तर पर की जा रही है, दीपावली के अवसर पर आतिशबाजी लंबे समय से चलता आ रहा है लेकिन यह सनातन संस्कृति का अंग या परंपरा नहीं, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य का दुश्मन है।
इस साल भी पटाखों के बाजार सजने लगे हैं, जहां की 20 डेसिबल से लेकर 180 डेसिबल का पटाखा बिक रहा है लेकिन दीपावली में होने वाला ध्वनि प्रदूषण चिंता का विषय है। अध्ययन से यह बात सिद्ध हो चुका है कि ज्वलनशील एवं हानिकारक पटाखों के कारण पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
पटाखों से उत्पन्न ध्वनि की तीव्रता का मानव अंगों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पटाखों के फूटने से होने वाले शोर का मानक तय करते हुए फोड़ने से चार मीटर की दूरी 125 डीबी (एआई) या 145 डीबी (सी) पीक से अधिक ध्वनि स्तर जनक पटाखों का विनिर्माण विक्रय और उपयोग वर्जित किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए रात आठ बजे से दस बजे तक दो घंटा ही दीपावली में पटाखों का उपयोग करने का आदेश दिया गया है। प्रतिबंधित पटाखों का विक्रय नहीं हो इसके लिए पुलिस प्रशासन को दायित्व दिए गए हैं लेकिन न्यायालय और प्रशासन के आदेश के बावजूद कारोबारी चोरी चुपके से अधिक ध्वनि उत्पन्न करने वाले पटाखों की बिक्री कर रहे हैं।
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम कर रहे लोगों का कहना है कि पटाखों के जलने से उत्पन्न आवाज कई गंभीर बीमारियों को जन्म देता है। पर्यावरण के लिए खतरा रहने के साथ ही पटाखों का तेज आवाज बीमार चल रहे लोगों के लिए खतरनाक है। पटाखा फटने के बाद कागज के टुकड़े एवं अधजला बारूद बच जाता है तथा इस कचरे के संपर्क में आने वाले पशुओं एवं बच्चों के दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना रहती है।
इसलिए पटाखा खतरनाक है, थोड़ा बहुत ग्रीन पटाखों का उपयोग किया जा सकता है। पटाखों को जलाने के बाद उत्पन्न कचड़े को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए, जहां प्राकृतिक जल स्रोत एवं पेयजल स्रोत प्रदूषित होने की संभावना नहीं हो, क्योंकि विस्फोटक सामग्री खतरनाक रसायनों से निर्मित होती है।
राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला के पटाखों की टेस्ट रिपोर्ट के अनुसार एटम बम (टाइमिंग बम) 135 डेसीबल, चाइनीज पटाखे (एक हजार की लड़ी) 128 डेसीबल, चाइनीज पटाखे (छह सौ की लड़ी) 132 डेसीबल, नाजी (एटम बम) 135 डेसीबल, मेजिक फार्मूला (फलावर बम) 136 डेसीबल, एटम बम (फौयल्ड) 131 डेसीबल, हाइड्रोजन बम 134 डेसीबल, राजन कलासिक धमाका (फौयल्ड बम) 136 डेसीबल, सम्राट कलासिक बम (डीलक्स) 136 डेसीबल, हाइड्रो फॉयल्ड (बम) 132 डेसीबल, थ्री साऊंड (बम) 119 डेसीबल, एटम बम (स्थानीय) 136 डेसीबल ध्वनि उत्पन्न करता है।
बेगूसराय उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय घाघरा के शिक्षक बसंत कुमार समेत कुछ लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों से पटाखा से दूर रहने की अपील की है। बसंत कुमार ने बताया कि दीपावली खुशियों और समृद्धि का त्योहार है। खुशियां मनाने के बहुत सारे तरीकों में पटाखा फोड़ना भी एक वर्तमान तरीका है। पटाखे फोड़ना सनातन संस्कृति का अंग नहीं रहा है, पूरे वर्ष में दीपावली के समय ही सबसे अधिक पटाखे फोड़े जाते हैं।
इससे निकलने वाले जहरीला धुआं, अत्यधिक शोर एवं सैकड़ों प्रकार के हानिकारक द्रव्य पर्यावरण में गंभीर वायु, ध्वनि और मिट्टी प्रदूषण का बड़ा कारण बनते हैं। इसका प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष, गंभीर प्रतिकूल परिणाम हमसभी लोगों की सेहत और पर्यावरण पर पड़ता है। इसके हानिकारक प्रभाव से मानव समुदाय में श्वांस, स्किन, फेफड़े से संबंधित बीमारियों समेत कई बीमारियों का खतरा कई गुणा बढ़ जाता है।
पृथ्वी की आबोहवा में नकरात्मक परिवर्तन को बल मिलता है। वर्तमान समय की आवश्यकता को देखते हुए पटाखों का इस्तेमाल कम करने के लिए प्रेरित जरूर करें। वसुधैव कुटुंबकम वाले देश भारत में पटाखों का कम से कम इस्तेमाल करना आज प्रासंगिक है, ताकि किसी के शौक की कीमत दूसरे को अदा नहीं करना पड़े।