वृंदावन के प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में एक ऐसे धार्मिक प्रश्न का उत्तर दिया है जो कई श्रद्धालुओं के मन में दुविधा पैदा करता है। यह प्रश्न है कि क्या गुटका, तंबाकू या किसी अन्य नशीले पदार्थ का सेवन करने के बाद रामायण का पाठ करना सही है या नहीं। महाराज के स्पष्टीकरण ने इस विषय पर चल रही बहस को एक दिशा दी है।
धार्मिक कृत्य और नशीले पदार्थों का सेवन
अक्सर यह देखा जाता है कि कुछ लोग नशीले पदार्थों का सेवन करने के बाद धार्मिक ग्रंथों का पाठ करने लगते हैं। इस व्यवहार को लेकर धार्मिक समुदायों में मिश्रित विचार हैं। एक ओर जहां कुछ लोग इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता मानते हैं, वहीं दूसरी ओर एक बड़ा वर्ग इसे धार्मिक नियमों के विरुद्ध मानता है। प्रेमानंद महाराज ने इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करते हुए अपना दृष्टिकोण साझा किया है।
प्रेमानंद महाराज की राय
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, किसी भी प्रकार के नशे का सेवन करने के बाद पवित्र ग्रंथ जैसे रामायण का पाठ करना वर्जित है। उनका मानना है कि ऐसे कार्यों से ईश्वर की अवमानना होती है और यह पाप का भागी बनता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर की भक्ति और पूजा-पाठ पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ की जानी चाहिए। नशे की हालत में किया गया कोई भी धार्मिक कार्य फलदायी नहीं होता, बल्कि यह ईश्वर के प्रति अनादर को दर्शाता है।
पवित्रता का महत्व
महाराज ने श्रद्धालुओं को सलाह दी कि वे रामायण या किसी अन्य धार्मिक ग्रंथ का पाठ करने से पहले स्वयं को शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध कर लें। उन्होंने स्पष्ट किया कि कथा, भजन, कीर्तन या रामायण का पाठ करने से पहले किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति की चेतना और एकाग्रता प्रभावित होती है, जिससे वह ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित नहीं हो पाता।
निष्कर्ष
प्रेमानंद महाराज के इस उपदेश का सार यही है कि धार्मिक कार्यों में पवित्रता और श्रद्धा सर्वोपरि है। नशे की हालत में किए गए धार्मिक कार्य न केवल निष्फल होते हैं, बल्कि वे ईश्वर का अपमान भी माने जाते हैं। इसलिए, श्रद्धालुओं को सलाह दी जाती है कि वे धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान पूर्णतः संयमित और पवित्र रहें।








