Paush Pitrupaksha 2025: सनातन धर्म में पितृपक्ष का समय पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने और उनके मोक्ष की कामना करने का एक अत्यंत महत्वपूर्ण काल होता है। विशेष रूप से पौष मास में पड़ने वाला पितृपक्ष पितरों को तारने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।
# Paush Pitrupaksha 2025: गया श्राद्ध से पाएं पितरों की मुक्ति
## Paush Pitrupaksha 2025: पितरों की मुक्ति का पावन पर्व
पौष पितृपक्ष 2025: शास्त्रों में पौष पितृपक्ष को पितरों की मुक्ति का विशेष काल माना गया है। इस दौरान गया में किया गया श्राद्ध और पिंडदान अत्यंत फलदायी होता है। यह वह समय है जब वंशज अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए विभिन्न कर्मकांड करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों किए गए तर्पण और पिंडदान से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। यह काल पितृदोष से मुक्ति पाने और **पितृ ऋण** से छुटकारा पाने का एक सुनहरा अवसर होता है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। धर्म, व्रत और त्योहारों की संपूर्ण जानकारी के लिए यहां क्लिक करें: [https://deshajtimes.com/news/dharm-adhyatm/](https://deshajtimes.com/news/dharm-adhyatm/)
### पौष पितृपक्ष का महत्व और धार्मिक मान्यताएं
पौष माह में पड़ने वाले पितृपक्ष का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस अवधि में पितर सूक्ष्म रूप में अपने वंशजों के समीप आते हैं और उनसे श्रद्धा एवं तर्पण की अपेक्षा करते हैं। जो व्यक्ति पूरी निष्ठा और विधि-विधान से पितृकर्म करता है, उसके पितर संतुष्ट होकर उसे दीर्घायु, संतान सुख, धन-धान्य और आरोग्य का वरदान देते हैं। यह काल **पितृ ऋण** से मुक्ति प्राप्त करने का भी श्रेष्ठ समय माना जाता है।
### गया श्राद्ध: पितरों की मुक्ति का पावन धाम
गया धाम को पितृकर्मों के लिए पृथ्वी पर सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। खासकर पौष पितृपक्ष के दौरान गया में श्राद्ध और पिंडदान करने का विशेष विधान है। पद्म पुराण और गरुड़ पुराण जैसे ग्रंथों में गया तीर्थ की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यहां किए गए पिंडदान से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, भले ही उन्होंने जीवन में कोई पाप कर्म किया हो। फल्गु नदी में स्नान और अक्षयवट पर पिंडदान का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह सीधे पितरों तक पहुंचता है।
### पितृपक्ष में किए जाने वाले प्रमुख कर्म
पितृपक्ष के दौरान कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य पितरों को शांति प्रदान करना है। इनमें प्रमुख हैं:
* श्राद्ध: पितरों की मृत्यु तिथि पर किए जाने वाले कर्मकांड, जिसमें ब्राह्मण भोज, दान और तर्पण शामिल हैं।
* पिंडदान: चावल, जौ और तिल से बने पिंडों का दान करना, जो पितरों को भोजन के रूप में अर्पित किए जाते हैं।
* तर्पण: जल में काले तिल मिलाकर पितरों को अर्पित करना, जिससे उनकी प्यास बुझती है।
* ब्राह्मण भोज: पितरों की संतुष्टि के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराना और दक्षिणा देना।
* कौओं, कुत्तों और गायों को भोजन: इन जीवों को पितरों का प्रतीक मानकर भोजन कराना।
### पितृदोष से मुक्ति और शुभ फल की प्राप्ति
जीवन में कई बार व्यक्ति को अज्ञात कारणों से कष्ट भोगने पड़ते हैं, जिसे ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष से जोड़कर देखा जाता है। पौष पितृपक्ष के दौरान विधिपूर्वक किए गए श्राद्ध कर्म और पिंडदान से पितृदोष शांत होता है। इससे परिवार में सुख-शांति आती है, वंश वृद्धि होती है और सभी कार्यों में सफलता मिलती है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। यह अवधि पूर्वजों के आशीर्वाद से जीवन को नई दिशा देने वाली होती है।
### निष्कर्ष और उपाय
पौष पितृपक्ष 2025 का यह पावन अवसर हमें अपने पितरों का स्मरण करने और उनके प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करने का एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। इस दौरान किया गया कोई भी पितृकर्म निष्फल नहीं जाता है और पितरों की आत्मा को परम शांति प्रदान करता है।
पितरों को प्रसन्न करने के लिए आप यह मंत्र जपे:
> ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
> ॐ पितृभ्यः नमः।
यह मंत्र पितरों को शांति प्रदान करने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायक होता है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। श्रद्धा और विश्वास के साथ किया गया प्रत्येक कर्म पितरों के लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है और हमें उनके आशीर्वाद का पात्र बनाता है।


