Pausha Putrada Ekadashi: हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। पौष मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत संतान प्राप्ति और संतान की दीर्घायु के लिए विशेष फलदायी होता है। जो दंपत्ति संतानहीन हैं या जिनकी संतान स्वस्थ नहीं रहती, उनके लिए यह व्रत साक्षात वरदान से कम नहीं है। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है और व्रत कथा का श्रवण किया जाता है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। व्रत के नियमों का पालन करते हुए इस पावन दिन को मनाना चाहिए ताकि भगवान नारायण की कृपा सदैव बनी रहे। इस व्रत के माध्यम से भक्त अपने जीवन में सुख, समृद्धि और संतान सुख प्राप्त करते हैं। धर्म, व्रत और त्योहारों की संपूर्ण जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व
पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत विशेष रूप से उन दंपत्तियों के लिए महत्वपूर्ण है जो संतान सुख से वंचित हैं। यह व्रत संतान प्राप्ति और उनकी लंबी आयु के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है। भगवान विष्णु की आराधना से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं और घर में सुख-शांति का वास होता है।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी का नाम चम्पा था। राजा और रानी के पास सभी प्रकार के सुख थे, लेकिन उनके कोई संतान नहीं थी। इस कारण वे सदैव दुःखी रहते थे। राजा और रानी ने अनेक उपाय किए, लेकिन उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ। एक दिन राजा अपने राज्य की सारी चिंताएं मंत्रियों पर छोड़कर स्वयं वन में चले गए। वन में भटकते हुए वे एक सरोवर के पास पहुंचे। उस सरोवर के तट पर ऋषि-मुनि वेद पाठ कर रहे थे।
राजा ने ऋषियों को प्रणाम किया और उनसे अपने दुःख का कारण बताया। ऋषियों ने राजा से कहा कि “हे राजन! यह पौष मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी है। आप इस व्रत को विधि-विधान से करें। इस व्रत के प्रभाव से आपको निश्चित रूप से संतान सुख प्राप्त होगा।” ऋषियों के वचन सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने ऋषियों के बताए अनुसार पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत किया।
व्रत के प्रभाव से राजा सुकेतुमान और रानी चम्पा को एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से यह एकादशी ‘पुत्रदा एकादशी’ के नाम से प्रसिद्ध हुई और संतानहीन दंपतियों के लिए यह व्रत अत्यंत कल्याणकारी माना जाने लगा। इस कथा का श्रवण मात्र से ही व्यक्ति को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है और संतान दीर्घायु होती है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
मंत्र और पूजन विधि (संक्षिप्त)
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का ध्यान करें। व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें पीला वस्त्र, पीले फूल, फल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। तुलसीदल का प्रयोग अवश्य करें। व्रत के नियमों का पालन करें और सात्विक भोजन करें।
व्रत का फल और उपाय
पौष पुत्रदा एकादशी का यह पवित्र व्रत भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त करने का एक अद्भुत अवसर है। इस दिन सच्चे मन से व्रत और पूजन करने वाले भक्तों को न केवल संतान सुख प्राप्त होता है, बल्कि उनके जीवन के समस्त कष्ट भी दूर हो जाते हैं। जो भक्त इस दिन कथा का पाठ या श्रवण करते हैं, उन्हें भगवान नारायण का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन व्रत के नियमों का पालन करने के साथ-साथ गरीबों और जरूरतमंदों को दान करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। इस प्रकार, पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला और जीवन में सुख-शांति लाने वाला है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।






