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दिसम्बर, 24, 2025

Pradosh Vrat 2026: नए साल का पहला प्रदोष व्रत, जानें महत्व और पूजन विधि

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Pradosh Vrat 2026: नववर्ष का आगमन एक नई ऊर्जा और आध्यात्मिक शुद्धि का संचार करता है, और इस शुभ अवसर पर प्रदोष व्रत 2026 का महत्व और भी बढ़ जाता है। भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित यह पवित्र व्रत प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस विशिष्ट समय में, देवों के देव महादेव कैलाश पर्वत पर अपने आनंदमय रूप में विचरण करते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण करते हैं। यह व्रत जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और आरोग्य प्रदान करने वाला माना गया है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

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Pradosh Vrat 2026: नए साल का पहला प्रदोष व्रत, जानें महत्व और पूजन विधि

प्रदोष व्रत 2026 का आध्यात्मिक महत्व

प्रत्येक मास की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है और विशेष रूप से प्रदोष काल में उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि प्रदोष काल वह समय होता है जब भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर असीम कृपा बरसाते हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

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प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष व्रत के दिन भक्तगण सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। इसके बाद भगवान शिव का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लिया जाता है। पूरे दिन निराहार या फलाहार रहकर व्रत का पालन किया जाता है। मुख्य पूजा प्रदोष काल (सूर्यास्त के लगभग 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक) में की जाती है।

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  • प्रदोष काल में पुनः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, धूप, दीप, चंदन, पुष्प, फल और नैवेद्य (खीर या हलवा) अर्पित करें।
  • भगवान शिव को सफेद चंदन का तिलक लगाएं और माता पार्वती को कुमकुम अर्पित करें।
  • शिवलिंग का जलाभिषेक करें और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।
  • शिव चालीसा का पाठ करें और व्रत कथा सुनें।
  • आरती के बाद भगवान से अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
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शुभ मुहूर्त और पारण

प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल होता है, जो सूर्यास्त के समय पर आधारित होता है और प्रत्येक स्थान व तिथि के अनुसार बदलता रहता है। प्रदोष काल में ही भगवान शिव की पूजा सबसे फलदायी मानी जाती है। व्रत का पारण अगले दिन चतुर्दशी तिथि को सूर्योदय के बाद किया जाता है।

मंत्र

ॐ नमः शिवाय।

महामृत्युंजय मंत्र: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

निष्कर्ष और उपाय

प्रदोष व्रत का निष्ठापूर्वक पालन करने से भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है बल्कि ग्रह दोषों को शांत करने और बीमारियों से मुक्ति दिलाने में भी सहायक है। नववर्ष 2026 का पहला प्रदोष व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो आने वाले पूरे वर्ष के लिए शुभता और सकारात्मकता लाएगा। इस पावन अवसर पर शिवजी को जल और बेलपत्र अर्पित करना विशेष फलदायी माना जाता है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। धर्म, व्रत और त्योहारों की संपूर्ण जानकारी के लिए यहां क्लिक करें: दैनिक राशिफल और ज्योतिषीय गणनाओं के लिए यहां क्लिक करें

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