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21 जुलाई, 2024
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दशहरा विशेष : यहां दशहरे में होता है रावण का श्रृ़ंगार, नहीं करते दहन…

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हमीरपुर का राठ क्षेत्र और यहां का बिहूनी गांव। सदियों से रावण की पूजा करता आ रहा है। यह परंपरा अनोखी है। मगर यही परंपरा है जो चली आ रही है। यहां दशहरे पर रावण दहन नहीं होता। बल्कि, गांव में स्थापित सैकड़ों वर्ष पुरानी रावण की प्रतिमा को सजाया संवारा जाता है। लोग यहां नारियल चढ़ाते हैं।

यहां, मान्यता है कि जिस रावण से खुद भगवान लक्ष्मण ने ज्ञान लिया, उसे इंसान कैसे जला सकते हैं। गांव के बीच में रावण के नौ सिर वाली विशाल प्रतिमा भी स्थापित है।

बिहूनी में गांव के बीच रामलीला मैदान है। जिसके ठीक सामने रावण की दस फिट ऊंची प्रतिमा स्थापित है। 9 सिर व 20 भुजाओं वाली प्रतिमा के सिर पर मुकुट है। जिसमें घोड़े की आकृति बनी है। रावण की यह प्रतिमा बैठने की मुद्रा को दर्शाती है। गांव के धीरेंद्र बताते हैं कि यह प्रतिमा सीमेंट अथवा चूने से बनाई गई है। कब और किसने इसका निर्माण कराया यह गांव के बड़े बुजुर्गों को भी पता नहीं है।

अंदाजा लगाया जा रहा है कि प्रतिमा करीब एक हजार वर्ष पुरानी होगी। ग्राम पंचायत द्वारा सैकड़ों वर्ष पुरानी इस प्रतिमा को सहेजने का काम किया जा रहा है। प्रतिवर्ष प्रतिमा की रंगाई पुताई कराई जाती है। धर्मेंद्र बताते हैं कि गांव में कभी रावण दहन नहीं किया जाता है।

ग्रामीण तर्क देते हैं कि रावण महाविद्धान थे। अंतिम समय में भगवान राम के कहने पर लक्ष्मण ने उनके चरणों के पास खड़े होकर ज्ञान लिया था। जिस विद्धान से खुद भगवान ने ज्ञान लिया उसके पुतले को जलाने का इंसान को क्या अधिकार है। वेद वेदांत के ज्ञाता रावण का दहन कर अपने धर्म शास्त्रों का अपमान नहीं कर सकते।

विजयदशमी पर असत्य के प्रतीक रावण के पुतले का दहन किया जाता है लेकिन राठ क्षेत्र में एक गांव एैसा भी है जहां रावण दहन वर्जित है। बिहूनी गांव में करीब 10 फिट ऊंची रावण की प्रतिमा स्थापित है। गांव के बड़े-बुजुर्ग भी यह नहीं बता पाते कि यह प्रतिमा कब और किसने बनवाई। नौ सिर, 20 हाथ वाली प्रतिमा के सिर पर मुकुट में घोडे़ जैसी आकृति बनी हुई है।

बैठने की मुद्रा में बनी यह प्रतिमा सीमेंट से बनी बताई जा रही है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में दशहरे पर कभी रावण दहन नहीं किया गया। रावण की प्रतिमा को सजा संवार कर वहां नारियल चढ़ाए जाते हैं। इसके पीछे ग्रामीण रावण के महाविद्धान होने का तर्क देते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वेद वेदांत के ज्ञाता रावण का दहन कर अपने धर्म शास्त्रों का अपमान नहीं कर सकते।

रावण की प्रतिमा के कारण इस मोहल्ले का नाम ही रावण पटी हो गया है। जहां जनवरी माह में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें रामलीला का भी मंचन होता है। राम का अभिनय करने वाले राजेश द्विवेदी बताते हैं कि रामलीला मंचन के दौरान रावण बध किया जाता है लेकिन पुतला दहन फिर भी नहीं होता है।

ग्रामीण बताते हैं कि रावण पटी मोहल्ले में प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा कब और किसने स्थापित की इसकी जानकारी किसी को नहीं है। राजेंद्र कुमार, विनोद त्रिपाठी आदि ने बताया रावण की प्रतिमा सैकड़ों वर्ष पुरानी है। प्रतिमा के मुकुट में घोडे़ जैसी आकृति बनी है। गांव में रावण दहन वर्जित है।

ग्रामीणों ने कहा कि रावण महाविद्धान थे। वेद वेदांत के ज्ञाता का दहन करना धर्मशास्त्रों का अपमान है। जनवरी में गांव में रामलीला और मेला होता है। उसमें रावण वध की लीला का मंचन होता है लेकिन पुतले का दहन नहीं किया जाता है।

ग्रामीण बताते हैं कि दशहरे पर रावण की प्रतिमा को रंग रोगन कर सजाया जाता है। साज श्रंगार के बाद ग्रामीण श्रद्धा से नारियल चढ़ाते हैं। विजयदशमी का पर्व असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाते हैं। पर रावण के पुतले का दहन नहीं किया जाता। रावण की प्रतिमा स्थापित होने से इस मोहल्ले को रावण पटी कहते हैं। विवाह के बाद नवदंपती रावण की प्रतिमा के सामने नतमस्तक होकर आशीर्वाद लेना नहीं भूलते।

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