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6 जुलाई, 2024
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दस जुलाई से सभी देवता जा रहे 4 महीनें के विश्राम पर…हरिशयनी के बाद हरि प्रबोधिनी देवउठान का रहेगा इंतजार फिर बजेगी इस दिन से शहनाई

खबरों की विरासत का निष्पक्ष निर्भीक समर्पित @7 साल : 20 जुलाई, 2018 - 20 जुलाई, 2025 ... DeshajTimes.Com यह संस्कार है। इसमें हवा की ताकत है। सूरज सी गर्मी। चांद सी खूबसूरती तो चांदनी सी शीतलता भी। यह आग भी है। धधकता शोला भी। तपिश से किसी को झुलसा देने की हिम्मत भी। झुककर उसकी उपलब्धि पर इतराने की दिलकश अदा भी।
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स जुलाई को हरिशयनी एकादशी के साथ ही सभी देवता विश्राम में चले जाएंगे। इससे चतुर्मास दोष रहने के कारण शादी विवाह सहित तमाम शुभ कार्यों पर रोक लग जाएगा। चार नवंबर को हरिप्रबोधिनी (देवउठान एकादशी) तथा पांच नवंबर को तुलसी विवाह होने के साथ चतुर्मास समाप्त होगा।

देवशयनी एकदाशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं। इसी कारण इस एकादशी को ‘हरिशयनी एकादशी’ तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को ‘प्रबोधिनी एकादशी’ कहते हैं। इसे पद्मनाभा एकादशी भी कहा जाता है। इन चार महीनों में भगवान विष्णु के क्षीरसागर में शयन करने के कारण विवाह आदि कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता।दस जुलाई से सभी देवता जा रहे 4 महीनें के विश्राम पर...हरिशयनी के बाद हरि प्रबोधिनी देवउठान का रहेगा इंतजार फिर बजेगी इस दिन से शहनाई

ब्रह्म वैवर्त पुराण में इस एकादशी का विशेष माहात्म्य लिखा है। इस व्रत को करने से प्राणी की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, सभी पाप नष्ट होते हैं तथा भगवान हृषीकेश प्रसन्न होते हैं। इस व्रत को करने से समस्त रखते वाले व्यक्ति को अपने चित, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता है। एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

पंडित विशाल दयानंद शास्‍त्री बताते हैं कि, देवशयनी एकादशी से चार माह के लिए विवाह संस्कार बंद हो जाएंगे। आज से देव सो जाएंगे। आगामी देवोत्थान एकादशी के दिन विवाह संस्कार पुन: प्रारंभ हो जाएंगे। देवशयनी एकादशी के बाद विवाह, नव निर्माण, मुंडन, जनेऊ संस्कार जैसे शुभ मांगलिक कार्य नहीं होंगे।

सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम। विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत सर्वं चराचरम।’

यानी हे जगन्नाथ! आपके शयन करने पर यह जगत सुप्त हो जाता है और आपके जाग जाने पर सम्पूर्ण चराचर जगत प्रबुद्ध हो जाता है। पीताम्बर, शंख, चक्र और गदा धारी भगवान् विष्णु के शयन करने और जाग्रत होने का प्रभाव प्रदर्शित करने वाला यह मंत्र शुभ फलदायक है जिसे भगवान विष्णु की उपासना के समय उच्चारित किया जाता है।

धार्मिक दृष्टि से यह चार मास भगवान विष्णु का निद्रा काल माना जाता है। इन दिनों में तपस्वी भ्रमण नहीं करते, वे एक ही स्थान पर रहकर तपस्या (चातुर्मास) करते हैं। इन दिनों केवल बृज की यात्रा की जा सकती है, क्योंकि इन चार महीनों में भू-मण्डल के समस्त तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं।

पंडित डॉ.सदानंद झा ने बताया कि भगवान विष्णु के सोने के बाद पूरे चार महीने शादी, विवाह, मुंडन, जनेऊ जैसे सभी 16 संस्कार कार्य पर रोक लग जाएगा। भगवान विष्णु के देवोत्थान एकादशी पर जागने के बाद फिर से सभी कार्य शुरू होते हैं। आषाढ़ के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन से कार्तिक के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन तक इन चार महीनों को शास्त्रों में चातुर्मास के नाम से जाना जाता है।

नवंबर में देवोत्थान एकादशी के बाद पुनः सभी शुभ कार्य शुरू होंगे। इसके बाद नवंबर में 24, 25, 26, 27 एवं 28 तथा दिसंबर में दो, तीन, चार, सात, आठ, नौ, 13, 14, 15 एवं 16 तारीख को विवाह का शुभ मुहूर्त है।

शास्त्र पुराणों के अनुसार माना गया है कि देवशयनी एकादशी के दिन सभी देवता और उनके अधिपति विष्णु सो जाते हैं। देवताओं का शयन काल मानकर इन चार महीनों में विवाह, नया निर्माण या कारोबार आदि बड़ा शुभ कार्य नहीं होता है। इसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को क्षीरसागर में सोए भगवान विष्णु जगते हैं। इस अवसर पर तुलसी और शालिग्राम का विवाह पूरे धूमधाम से मंत्रोच्चार के साथ किया जाता है।भगवान विष्णु के जगने के बाद सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं।

विद्वतजन एवं वांग्मय के अनुसार इस चतुर्मास का प्रकृति सेे भी सीधा संबंध है। यह सूर्य की स्थिति और ऋतु प्रभाव से सामंजस्य बैठाने का भी संदेश देता है। जगत के आत्मा सूर्यदेव इस दिनों में बादलों में छिपे रहते हैं, इसलिए वर्षा के इस चार महीनों में भगवान विष्णु सो जाते हैं। जब वर्षा काल समाप्त हो जाता है तो जाग उठते हैं और सबको अपने भीतर जागने का संदेश देते हैं।

इन महीनों मेंं एक जगह ठहरनेे की मान्यता है। भगवान को साक्षी मानकर धर्म और शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने वाले साधु-संत इन दिनों में एक जगह तुलसी का पौधा लगाकर निवास करते थे। शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज और अध्यात्म की चर्चा होती थी, देवताओं के उठने के बाद वहां से विदा होते समय साधु-संत लगाए गए तुलसी के पौधा का विवाह करवा देते थे।

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