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1 नवम्बर, 2024
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Anant Chaturdashi Special : भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप का प्रतीक है अनंत का 14 गांठ, रविवार को है पूजनोत्सव, जानिए कब है पूजा का विशेष शुभ योग, क्यों बन रहे मंगल बुधादित्य योग, क्या है महात्म, चौदह गांठों का जीवन में महत्व,

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नेकता में एकता का संदेश देने वाले देश भारत में कोई महीना ऐसा नहीं जब व्रत-त्योहार नहीं हो। त्योहारों की कड़ी में ही भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाने वाले भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप अनंत पूजा की हर घर में तैयारी पूरी हो गई है।

 

रविवार को भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला अनंत चतुर्दशी का व्रत मनाया जाएगा। अनंत पूजा के अवसर पर इस वर्ष ग्रहों का अद्भुत संयोग बन रहा है, जिसके कारण महत्व और अधिक बढ़ गए हैं।

ज्योतिष अनुसंधान केंद्र गढ़पुरा के संस्थापक पंडित आशुतोष झा ने बताया कि अनंत चतुर्दशी पूजा का शुभ मुहूर्त 19 सितम्बर को सुबह 6.07 बजे से है। अनंत चतुर्दशी पर इस बार मंगल, बुध और सूर्य एक साथ कन्या राशि में विराजमान रहेंगे, जिसकी वजह से मंगल बुधादित्य योग बन रहा है।

इस योग में की गई पूजा अर्चना का महालाभ मिलता है। उन्होंने बताया कि जगत के पालनहार भगवान श्री नारायण विष्णु के आदि और अंत का पता नहीं है, इसीलिए अनंत चतुर्दशी के दिन उनके अनंत रूप की पूजा की जाती है। अनंत फल देने वाले इस व्रत में पूजा करने और अनंतसूत्र बांधने से बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने सृष्टि की शुरुआत में चौदह लोक, तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुव, स्व, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी।

इन लोकों की रक्षा और पालन के लिए भगवान विष्णु स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट होकर अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए आज के दिन भगवान विष्णु के अनंत रूपों की पूजा की जाती है। सभी गांठ में भगवान विष्णु के अलग-अलग नामों से पूजा की जाती है।

पहले गांठ में अनंत की पूजा-अर्चना होती है, उसके बाद क्रमवार तरीके से ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर और गोविन्द की पूजा किया जाता है। पूजा के बाद पुरुष दाहिने हाथ और स्त्री बांये हाथ में अनंत सूत्र को बांधते हैं। अनंत चतुर्दशी व्रत में स्नानादि करने के बाद अक्षत, दूर्वा, शुद्ध रेशम या कपास के सूत से बने और हल्दी से रंगे हुए चौदह गांठ के अनंत सूत्र को भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने रखकर पूजा की जाती है।

इस अनंत सूत्र को बांधने से व्यक्ति प्रत्येक कष्ट से दूर रहता है, सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है। विष्णु सहस्त्रनाम स्रोत का पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। जो महिलाएं इस व्रत को विधिपूर्वक करती हैं, उन्हें सुख-समृद्धि, धन-धान्य और संतान एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

कथा के अनुसार पांडवों के राज्यहीन हो जाने पर श्रीकृष्ण ने अनंत चतुर्दशी व्रत करने की सलाह दी थी। उन्होंने इस व्रत के करने से पांडवों को हर हाल में राज्य वापस मिलने का विश्वास भी दिलाया। युधिष्ठिर ने अनंत भगवान के बारे में जिज्ञासा प्रकट की तो कृष्ण ने कहा कि वह भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं।

चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं, इनके आदि और अंत का पता नहीं है, इसीलिए ये अनंत कहलाते हैं। इसके बाद युधिष्ठिर ने पूरे परिवार के साथ अनंत भगवान की 14 वर्षों तक विधिपूर्वक व्रत किया तथा इसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए और लंबे समय तक राज्य करते रहे, तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

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