वट सावित्री पूजा के दिन इस वर्ष का पहला सूर्य ग्रहण 10 जून को लगने जा रहा है।
वट सावित्री व्रत अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु के लिए सुहागिन महिलाओं द्वारा किया जाता है। इसी दिन शनि जयंती मनाने की भी परंपरा है।
इस बार खास बात यह है कि इस दिन सूर्यग्रहण भी लग रहा है। सुहागिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करके और उसके चारों ओर परिक्रमा कर सूत बांधकर व्रत करने का महत्व है। पति की लंबी आयु , परिवार की सुख शांति और खुशहाली की इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है।
ज्योतिषाचार्य पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक हिंदू धर्म में वट वृक्ष में भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश का वास स्थल माना जाता है। वट सावित्री के दिन सुहागन स्त्रियां बरगद के वृक्ष की पूजा कर अपने पति की दीर्घायु और परिवारिक सुख शांति, वैवाहिक जीवन की खुशहाली की कामना करती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो पत्नी इस व्रत को सच्ची श्रद्धा के साथ करती हैं, उसे न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि उसके पति के सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं। महिलाएं अखण्ड सौभाग्य व परिवार की समृद्धि के लिए ये व्रत करती हैं। महिलाएं इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर भगवान सूर्य को अर्घ देकर व्रत का संकल्प लेकर वट वृक्ष के नीचे विधि विधान से वट सावित्री की पूजा करती है।
अखंड सौभाग्य के लिए सूत या कलावा को बरगद के पेड़ में कम से कम 5,11,21,51, या फिर 108 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा कर उसमें धागा बांधकर पूजा का विशेष महत्व है। इसके अलावा वट वृक्ष के नीचे सत्यवान और सावित्री की कथा भी सुनना विशेष फलदायी माना जाता है।
शुक्ल के मुताबिक इस बार वट सावित्री के पूजा का विशेष योग बन रहा है। श्रेष्ठ पूजा का मुहूर्त सुबह 6ः 45 से लेकर 11ः 55 मिनट तक रहेगा। अगर कोई इस संक्रमण महामारी में बाहर जाकर पूजा नहीं करना चाहता है तो घर में ही बरगद के पत्ते के अलावा कलश में वेदमाता गायत्री का आह्वान कर पूजा संपन्न कर सकता है। vat saavitree vrat ke din-First solar eclipse
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