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2 दिसम्बर, 2025

अमर रहेगा फिल्म जगत में सबसे प्रयोगवादी और प्रतिभाशाली संगीतकार सलिल चौधरी का संगीत, पुण्यतिथि विशेष 5 सितंबर पर विशेष 

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कई फ़िल्मी गीतों को अपने संगीत से सजाने वाले संगीतकार सलिल चौधरी की 5 सितम्बर को 46वीं पुण्यतिथि है। सलिल चौधरी हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार थे। सलिल चौधरी का जन्म 19 नवम्बर 1923 को हुआ था।

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संगीत की पारम्परिक शिक्षा नहीं ली

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फिल्म जगत में उन्हें सबसे प्रयोगवादी और प्रतिभाशाली संगीतकार के रूप में पहचाना जाता था। हालांकि उन्होंने संगीत की पारम्परिक शिक्षा नहीं ली। सलिल के पिता डॉक्टर थे और बड़े भाई आर्केस्ट्रा चलाते थे जिसके कारण सलिल संगीत के सभी वाद्य-यंत्रों से परिचित थे।

उन्हें बचपन से ही बांसुरी बजाने का शौक था। उन्होंने अपने स्नातक की शिक्षा कोलकाता से पूरी की। इसके बाद उनका विवाह सविता चौधरी के साथ हो गया। सलिल चौधरी 1940 में भारतीय जन नाट्य संघ से जुड़ गए। उस समय भारत को आजाद कराने की मुहिम जोर-शोर से चल रही थी।

सलिल चौधरी भी इस मुहिम से जुड़ गए और अपने गीतों के माध्यम से लोगों में जागरुकता पैदा करने लगे। साल 1943 मे सलिल चौधरी के संगीतबद्ध गीत ‘विचारपति तोमार विचार..’ और ‘धेउ उतचे तारा टूटचे..’ ने आजादी के दीवानों में नया जोश भरने का काम किया, किंतु बाद में इस गीत पर अंग्रेज सरकार ने रोक लगा दी थी।

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1950 में सलिल चौधरी संगीत में अपनी करियर बढ़ाने मुंबई आए

1950 में सलिल चौधरी संगीत में अपनी करियर को बढ़ाने के लिए मुंबई आ गए। उस समय मुंबई में विमल रॉय अपनी फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ के लिए एक नए संगीतकार की तलाश में थे। इसी दौरान विमल रॉय का ध्यान सलिल चौधरी की ओर गया। वह सलिल चौधरी के संगीत बनाने के तरीके से काफी प्रभावित हुए और उन्हें अपनी फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ में गाना गाने का ऑफर दिया जिसे सलील चौधरी ने स्वीकार कर लिया।

इस तरह सलिल चौधरी ने एक संगीतकार के रूप में अपना पहला संगीत 1953 में प्रदर्शित फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ के गीत ‘आ री आ निंदिया..’ के लिए दिया। फिल्म हिट रही और इसी गाने के साथ सलिल चौधरी मशहूर संगीतकारों की श्रेणी में आ गए। इसके बाद सलिल चौधरी विमल रॉय के चहेते बन गए।

सलिल चौधरी ने विमल राय की फि के लिए बेमिसाल संगीत देकर उनकी फिल्मों को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सलिल चौधरी के सदाबहार संगीत के कारण ही विमल राय की अधिकांश फिल्में आज भी याद की जाती है।फिल्म जगत में सलिल चौधरी ने मधुमती, नौकरी, प्रेम पत्र, आनन्द, रजनीगन्धा, छोटी सी बात, मौसम, अग्नि परीक्षा आदि कई फिल्मों को अपने संगीत से सजाया।

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दर्शकों ने उनकी जोड़ी गीतकार शैलेन्द्र के साथ खूब पसंद की

दर्शकों ने उनकी जोड़ी गीतकार शैलेन्द्र के साथ खूब पसंद की। दोनों ने फिल्मी जगत में अजब तेरी दुनिया हो मोरे रामा.. (दो बीघा जमीन ), चांद रात तुम हो साथ.. (हाफ टिकट), ऐ मतवाले दिल जरा झूम ले.. (पिंजरे के पंछी) आदि यादगार गीत गाये। इसके अलावा सलिल चौधरी की जोड़ी गीतकार ‘गुलजार’ के साथ भी काफी पसंद की गई।

1960 में प्रदर्शित फिल्म काबुली वाला

सबसे पहले इन दोनों फनकारों का गीत-संगीत 1960 में प्रदर्शित फिल्म काबुली वाला में पसंद किया गया। इसके बाद सलिल और गुलजार ने कई फिल्मों में अपने गीत-संगीत के जरिए श्रोताओं का मनोरंजन किया। इन फिल्मों में मेरे अपने और आंनद जैसी सुपरहिट फिल्में भी शामिल थी। 1958 में विमल राय की फिल्म मधुमति के लिए सलिल चौधरी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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1988 में संगीत के क्षेत्र में उनके बहुमूल्य योगदान को देखते हुए उन्हें संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। साल 1960 में प्रदर्शित फिल्म काबुली वाला में पार्श्वगायक मन्ना डे की आवाज में सजा यह गीत ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन, तुझपे दिल कुर्बान..आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है। फिल्म जगत में सलिल चौधरी संगीत दा के नाम से मशहूर थे।

75 हिंदी फिल्मों में संगीत दिया

सलिल चौधरी ने अपने चार दशक के लम्बे करियर में लगभग 75 हिंदी फिल्मों में संगीत दिया। इसके अलावा उन्होंने मलयालम, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, गुजराती, असमिया, उड़िया और मराठी फिल्मों के लिए भी संगीत दिए। चार दशकों तक दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले इस महान संगीतकार ने 5 सितंबर 1995 को दुनिया को अलविदा कह दिया। सलिल चौधरी आज भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन संगीत की दुनिया में उनके द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण योगदान को सदियों तक याद किया जाएगा।

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