Rajesh Khanna News: हिंदी सिनेमा के सुनहरे पन्नों में राजेश खन्ना का नाम हमेशा एक ऐसे सितारे के तौर पर दर्ज रहेगा, जिसकी चमक ने पूरे देश को मदहोश कर दिया था। एक ऐसा दौर, जब उनकी एक झलक पाने के लिए लड़कियां अपनी जान कुर्बान करने को तैयार रहती थीं और ‘ऊपर आका, नीचे काका’ का नारा हर ज़ुबान पर था।
राजेश खन्ना: जब सुपरस्टार को अपनी दीवानगी से ही होने लगी थी नफरत, फ्लॉप फिल्मों ने बनाया डिप्रेशन का शिकार!
राजेश खन्ना का बेमिसाल स्टारडम और उस दौर की दीवानगी
भारतीय सिनेमा के इतिहास में ऐसे चुनिंदा अभिनेता ही हुए हैं, जिन्होंने ‘सुपरस्टार’ शब्द को सही मायनों में परिभाषित किया। राजेश खन्ना उन्हीं में से एक थे। उन्होंने सिर्फ एक के बाद एक हिट फिल्में ही नहीं दीं, बल्कि अपनी करिश्माई शख्सियत से करोड़ों दिलों पर राज भी किया। उनकी दीवानगी इस कदर थी कि लड़कियां उनके नाम का सिंदूर लगाती थीं और कुछ तो उनकी तस्वीर से ही शादी रचा लेती थीं। यह वो दौर था जब अमृतसर से निकला यह लड़का महज तीन साल में 17 सुपरहिट फिल्में देकर लीजेंड बन गया था। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
डायरेक्टर और प्रोड्यूसर अपनी स्क्रिप्ट्स लेकर उनके बंगले के बाहर लंबी लाइनें लगाते थे, बस एक बार ‘काका’ की हां मिल जाए। यह राजेश खन्ना के स्टारडम की पराकाष्ठा थी कि मुंबई की सड़कों पर ‘ऊपर आका, नीचे काका’ की गूंज सुनाई देती थी। हालत ये थी कि शूटिंग स्थलों के बाहर भिखारी भी उन्हीं के नाम पर भीख मांगते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि काका का नाम ही लोगों को यहां तक खींच लाएगा।
लेकिन अक्सर सितारे अपनी फ्लॉप फिल्मों से परेशान होते हैं, राजेश खन्ना अपनी इस बेतहाशा लोकप्रियता से ही बेचैन हो गए थे। एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने खुद ये इच्छा जाहिर की थी कि उनकी कुछ फिल्में फ्लॉप हो जाएं, ताकि फैंस की ये पागलपन भरी दीवानगी थोड़ी कम हो सके। अपने इस अनोखे फिल्मी करियर में शायद वह इकलौते ऐसे स्टार थे जो अपनी सफलता से ही ऊब गए थे।
जब वक्त ने करवट ली: अंधेरे में डूबा ‘काका’ का सितारा
कहते हैं कि वक्त कभी एक सा नहीं रहता, और बॉलीवुड के इस पहले सुपरस्टार के साथ भी ऐसा ही हुआ। साल 1976-77 का दौर राजेश खन्ना के जीवन में तूफान लेकर आया। उनकी फिल्में एक के बाद एक बॉक्स ऑफिस पर धड़ाम होने लगीं। सिनेमाघर खाली रहने लगे और जो फिल्में कभी करोड़ों का कारोबार करती थीं, वे अब अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रही थीं। मनोरंजन जगत की चटपटी खबरों के लिए यहां क्लिक करें
यासिर उस्मान की लिखी किताब “द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडियाज फर्स्ट सुपरस्टार” में इस मुश्किल दौर का जिक्र किया गया है। किताब के मुताबिक, लगातार मिल रही फ्लॉप फिल्मों के सदमे से राजेश खन्ना गहरे डिप्रेशन में चले गए थे। इस दुख से उबरने और अपनी हताशा को भुलाने के लिए उन्होंने शराब का सहारा लेना शुरू कर दिया था।
हालात इतने बदतर हो चुके थे कि राजेश खन्ना रात के अंधेरे में अचानक चीखने लगते थे। उनके मन में आत्महत्या के विचार घर करने लगे थे। किताब के अनुसार, वे समंदर में कूदकर अपनी जान देने तक के बारे में सोचने लगे थे। 1976 और 1977 का यह समय उनके जीवन का सबसे कठिन और अंधकारमय दौर माना जाता है। इस दौरान आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
‘महबूबा’ से करियर की बड़ी आपदा और नए सुपरस्टार का उदय
साल 1976 में हेमा मालिनी के साथ आई उनकी फिल्म ‘महबूबा’ एक सुपर फ्लॉप साबित हुई। इस फिल्म को उनके पूरे फिल्मी करियर की सबसे बड़ी आपदाओं में से एक माना गया। यह वो समय भी था जब हिंदी सिनेमा में ‘एंग्री यंग मैन’ अमिताभ बच्चन का उदय हो चुका था और दर्शकों की पसंद तेजी से बदल रही थी।
1971 की ब्लॉकबस्टर ‘आनंद’ में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन दोनों साथ दिखे थे, लेकिन तब से लेकर अब तक हवा का रुख पूरी तरह बदल चुका था। राजेश खन्ना की सारी लोकप्रियता धीरे-धीरे अमिताभ बच्चन के खाते में जाती दिख रही थी। 1976 में ‘बंडल बाज’ और 1977 में ‘अनुरोध’, ‘त्याग’, ‘कर्म’, ‘छैला बाबू’ और ‘चलता पुर्जा’ जैसी उनकी लगातार पांच फिल्में फ्लॉप हो गईं।
काका का चमकता सितारा अब धीरे-धीरे फीका पड़ने लगा था। उन्हें फिल्में मिलना कम हो गया था, क्योंकि तब तक अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र जैसे कलाकार युवा दर्शकों की नई पसंद बन चुके थे। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। एक ऐसे युग का अंत हो रहा था, जिसने हिंदी सिनेमा को एक अद्वितीय सुपरस्टार दिया था, और एक नए युग का सूत्रपात हो रहा था।




