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दिसम्बर, 30, 2025

शर्मिला टैगोर ने नेपोटिज्म पर तोड़ी चुप्पी, कहा- स्टार किड्स को पहला मौका मिलना आसान, लेकिन…

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Nepotism in Bollywood News: बॉलीवुड में नेपोटिज्म पर छिड़ी बहस हर बार तब गरमा जाती है, जब कोई नया Star Kids फिल्मी दुनिया में कदम रखता है। इन सबके बीच, हिंदी सिनेमा की दिग्गज अदाकारा शर्मिला टैगोर ने अब इस मुद्दे पर अपनी राय खुलकर रखी है, जिसमें उन्होंने नेपोटिज्म और विरासत के बीच के बारीक अंतर को समझाया है। उनकी बातें सुनकर आप भी सोच में पड़ जाएंगे कि क्या सच में स्टारकिड्स को मिलने वाली तरक्की सिर्फ नेपोटिज्म है या कुछ और?

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Nepotism in Bollywood: शर्मिला टैगोर ने बताया कैसे मिलता है स्टार किड्स को पहला मौका!

सोहा अली खान के पॉडकास्ट ‘ऑल अबाउट हर’ में शर्मिला टैगोर ने कहा कि यह पूरी तरह से स्वाभाविक है कि बच्चे अपने माता-पिता के काम से प्रेरणा लेते हैं। यह सिर्फ फिल्मों तक ही सीमित नहीं है; डॉक्टर, वकील, पेंटर, संगीतकार—हर पेशे में बच्चे अपने मां-बाप को देखकर सीखते हैं और उनकी तरह बनना चाहते हैं। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। यह एक सामान्य बात है और इसमें कुछ भी गलत नहीं है, बल्कि यह एक प्रकार की विरासत है जो पीढ़ियों से चली आ रही है।

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Nepotism in Bollywood: पहला मौका तो मिल सकता है, लेकिन…

शर्मिला टैगोर ने आगे विस्तार से बताया कि बच्चों पर माता-पिता का प्रभाव होना बिल्कुल प्राकृतिक है और यह किसी भी पेशे में आम है। उन्होंने उदाहरण दिया कि सोहा की बेटी इनाया अपनी मां को काम करते हुए देखकर प्रेरित हो रही हैं और धीरे-धीरे उसे समझने लगी हैं। अगर कोई माता-पिता या स्टार बहुत प्रभावशाली हैं, तो वे अपने बच्चे को पहला काम दिला सकते हैं, लेकिन इसके बाद फिल्म इंडस्ट्री में कामयाबी पूरी तरह दर्शकों पर निर्भर करती है कि वे उस कलाकार को कितना पसंद करते हैं। पहला मौका मिलना आसान हो सकता है, लेकिन आगे की सफलता दर्शकों की पसंद और कलाकार की कड़ी मेहनत पर ही आधारित होती है।

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आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

नेपोटिज्म पर बात करते हुए शर्मिला टैगोर ने स्पष्ट किया कि अगर माता-पिता का प्रभाव बहुत ज्यादा है, तो शायद वे अपने बच्चे को दूसरा मौका भी दिला दें, लेकिन उनका प्रभाव यहीं तक ही सीमित होता है। फिल्म मेकर्स भी बड़े पैमाने पर इन्वेस्ट करते हैं। यदि किसी अभिनेता या Star Kids का नाम पहले से जाना-पहचाना है, तो यह प्रोड्यूसर्स के लिए थोड़ी सुरक्षा की तरह काम करता है। अगर आप इसे नेपोटिज्म कहते हैं, तो हो सकता है प्रोड्यूसर्स को इसमें ज्यादा फायदा हो, क्योंकि पहले से जाने-पहचाने नामों के विज्ञापन पर ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। यह सिर्फ शुरुआती मदद है, लेकिन उसके बाद कलाकार की मेहनत और दर्शकों की पसंद ही तय करती है कि वह आगे बढ़ेगा या नहीं। मनोरंजन जगत की चटपटी खबरों के लिए यहां क्लिक करें: मनोरंजन जगत की चटपटी खबरों के लिए यहां क्लिक करें

टैलेंट ही है असली कसौटी

शर्मिला टैगोर ने आखिर में यह भी कहा कि किसी भी Star Kids को सिर्फ नाम की वजह से लगातार सफलता मिलना नामुमकिन है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। असली परीक्षा यही है कि वे अपने काम और टैलेंट से दर्शकों को कितना प्रभावित कर पाते हैं। दर्शकों के दिलों पर राज करने के लिए सिर्फ नाम काफी नहीं, बल्कि असाधारण प्रतिभा और समर्पण ही चाहिए।

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