मुख्य बातें
-बोले भाजपा प्रदेश अध्यक्ष-झारखंड सीएम का बयान शर्मनाक
-विभाजन की राजनीति का करने का भी लगाया आरोप
पटना/रांची। हिंदी दिवस के दिन मंगलवार को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के एक बयान से बिहार की राजनीति गरमा गई। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के नेताओं ने इसे उनकी ओछी मानसिकता का परिचायक बताया है। वहीं, राजद हेमंत सोरेन (Hemant Soren) के बचाव में उतर आया है।
दरअसल, हेमंत सोरेन ने भोजपुरी और मगही बोलने वालों को वर्चस्व चाहने वाला (डोमिनेटिंग नेचर का) बताया है। इसको लेकर जदयू, भाजपा और हम ने झारखंड के सीएम के इस बयान की आलोचना की है।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि हेमंत सोरेन ने जो बयान दिया है वह बहुत ही शर्मनाक है। यह बयान ओछी मानसिकता को दर्शाता है। पूरे देश में भोजपुरी का सम्मान है, इस तरह की राजनीति करके वे किसी का भला नहीं कर सकते। हेमंत सोरेन विभाजन की राजनीति कर रहे हैं।
जदयू प्रवक्ता अभिषेक झा ने इसे बिहार का अपमान बताया है। उन्होंने कहा कि जदयू ने कभी जाति, धर्म, संप्रदाय और भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं किया। बिहार और झारखंड में तो कोई फर्क ही नहीं है। हम के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने हेमंत के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि उन्हें भोजपुरी और मगही के योगदान की जानकारी ही नहीं है। वहीं, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन का बचाव राजद ने किया है।
राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि झारखंड के मुख्यमंत्री ने किसी और परिप्रेक्ष्य में ये बातें कही होंगी। उन्होंने कहा कि भाषा का सम्मान किया जाना चाहिए और भोजपुरी एवं मगही का महत्व तो पूरे देश में है। मृत्युंजय तिवारी ने यह भी कहा कि हेमंत सोरेन ने भोजपुरी और मगही भाषाओं के प्रति कोई विद्वेष नहीं दिखाया है।
महिलाओं की इज्जत लूटकर भोजपुरी में दी जाती है गाली
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भोजपुरी और मगही बोलने वाले लोगों को डोमिनेटिंग नेचर यानी वर्चस्व चाहने वाला बताया है। उन्होंने कहा कि अविभाजित बिहार में झारखंड की महिलाओं के साथ गलत काम करनेवाले ये भाषाएं बोलते थे। महिलाओं की इज्जत लूटकर भोजपुरी भाषा में गाली दी जाती है।
आदिवासी और क्षेत्रीय भाषाओं के दम पर जंग लड़ी गई थी, भोजपुरी और मगही भाषा की बदौलत नहीं। झारखंड आंदोलन क्षेत्रीय भाषा के दम पर लड़ी गई थी। झारखंड के आंदोलन के वक्त भोजपुरी में गालियां दी जाती थीं। उन्होंने कहा कि इन दोनों भाषाओं का झारखंड के आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं है और ये बिहार की भाषाएं हैं।