
भाषा विवाद अब देश की जड़ में घुस चुका है। चाहे पंजाब में चन्नी के यूपी और बिहार वाले भइया हों या फिर ताजा मामला झारखंड सरकार का तुगलगी आदेश कि भोजपुरी-मगही अब क्षेत्रीय भाषाओं के लायक झारखंडी सरकार की नजर में नहीं रही। मगर सवाल कईं हैं जिसका जवाब आने वाले वक्त में पूरे देश के कोने-कोने में फैले ऐसे जहरवादी सोच वाले नेताओं को देना ही होगा जो आज न कल इस फेर में फंसने ही वाले हैं। कारण, सवाल नौकरी का नहीं सवाल भाषा का है और भाषा किसी की मोहताज नहीं है।
जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन के 1928 के भाषा सर्वेक्षण में भाषाओं के भूगोल की व्यापक चर्चा पर गौर करना कौन मुनासिब समझे। भाषाओं को आप उसके स्थायी भूगोल से बाहर करके नहीं देख सकते। हर भाषा का सम्मान होना चाहिए। जो झारखंडी भाषाएं हैं उनको लेकर लोग जागरुक हुए हैं, तो यह अच्छी पहल है। झारखंड में जो आवाजें उठ रही हैं, उनका ऐतिहासिक संदर्भ है। झारखंड हमेशा से उपनिवेश की तरह रहा है। यहां बाहरी वर्चस्व की कई तहें बनी हैं, जो यहां के भाषा आंदोलन के विरोध में हैं। मगर, मौजूदा परिवेश में यह तर्क मगही और भोजपुरी को लेकर उठाना कहां तक तर्क संगत है। पढ़िए पूरी खबर
झारखंड सरकार ने धनबाद और बोकारो की क्षेत्रीय भाषा की सूची से भोजपुरी और मगही को हटा दिया है। झारखंड सरकार के कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग ने इस बाबत अधिसूचना जारी कर दी है। बोकारो और धनबाद जिले के क्षेत्रीय भाषा की सूची में अब नागपुरी, कुरमाली, खोरठा, उर्दू और बंगला को रखा गया है।
बाकी जिलों की क्षेत्रीय भाषाओं की सूची में कोई बदलाव नहीं किया गया है। यह निर्णय लेने के पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर और विधायक दल के नेता आलमगीर आलम को विश्वास में लिया। उनसे चर्चा के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है। सरकार के इस कदम से इन भाषाओं के युवाओं को धनबाद और बोकारो में जिला स्तर की सरकारी नाैकरी नहीं मिलेगी।
हालांकि, विपक्ष के भारी दबाव में झारखंड सरकार (Jharkhand Government) ने झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (Jharkhand SSC) की मैट्रिक और इंटरमीडिएट स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं में जिलास्तरीय पदों के लिए क्षेत्रीय-जनजातीय भाषाओं की सूची में मगही (Magahi), अंगिका और भोजपुरी (Bhojpuri) को भी शामिल कर लिया।

राज्य सरकार की ओर से देर शाम जारी अधिसूचना (Notification) में कहा गया है
पिछले वर्ष 24 दिसंबर को इस संबंध में जारी अधिसूचना को रद्द करते हुए एक नई अधिसूचना जारी की जा रही है और इस अधिसूचना में राज्य सरकार ने विशेषकर पलामू, गढ़वा और चतरा जिलों के लिए भाषा परीक्षण की सूची में मगही और भोजपुरी को भी शामिल कर लिया है। अधिसूचना में कहा गया है कि इसके अलावा दुमका और संथाल परगना के कई जिलों की भाषा की सूची में अंगिका को भी शामिल कर लिया गया है।
इससे पहले राज्य सरकारा की ओर से इस परीक्षा के उद्देश्य से अधिसूचित सूची में इन भाषाओं को स्थान नहीं दिया गया था, जिसे लेकर भोजपुरी और मगही भाषा भाषियों में भारी रोष था। इससे पहले गुरुवार को इस मुद्दे पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के नेतृत्व में कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिला था और उनके समक्ष इस मामले में अपना पक्ष रखा था।
धनबाद-बोकारो से भोजपुरी-मगही खत्म
भाषा विवाद को लेकर जारी अधिसूचना में मैट्रिक और इंटर स्तर की प्रतियोगिता परीक्षाओं में जिला स्तरीय पदों के लिए नए सिरे से क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं की सूची जारी की गई। इसके तहत धनबाद-बोकारो से भोजपुरी और मगही को हटाने की मांग को लेकर शुरू हुए आंदोलन को देखते हुए सरकार ने इन दोनों जिलों से भोजपुरी-मगही को हटा दिया है। वहीं, कई दूसरे जिलों से भी भोजपुरी-मगही को आउट कर दिया गया।
भाषा को लेकर जारी की गई नई सूची
कार्मिक, प्रशासनिक सुधार और राजभाषा विभाग ने 24 दिसंबर को जारी जिलेवार क्षेत्रीय-जनजातीय भाषाओं की सूची में संशोधन किया है। इसके तहत रांची में अब जनजातीय भाषा में कुड़ुख, खड़िया, मुंडारी, हो, संथाली और क्षेत्रीय भाषा में पंचपरगनिया, उर्दू, कुरमाली, बांग्ला को शामिल किया है। वहीं लोहरदगा में कुड़ुख, असुर, बिरजिया, उर्दू, नागपुरी, गुमला में कुड़ुख, खड़िया, असुर, बरहोरी, बिरजिया, मुंडारी, उर्दू, नागपुरी, सिमडेगा में खड़िया, मुंडारी, कुड़ुख, उर्दु, नागपुरी, पश्चिमी सिंहभूम में हो, भूमित, मुंडारी, कुड़ुख, कुरमाली, उर्दू उड़िया, सरायकेला में संथाली, मुंडारी, भूमिज, हो, पंचपरगनिया, उर्दू, उडिया, बांग्ला और कुरमाली को शामिल किया गया है।
इससे पहले, नेताओं का कहना था, रांची और जमशेदपुर में भोजपुरी और मगही बोलने वाले लोग हैं लेकिन यहां क्षेत्रीय भाषाओं की लिस्ट में भोजपुरी और मगही को नहीं रखा गया है। धनबाद और बोकारो में इसे शामिल करने पर विवाद बढ़ रहा है, इसपर तत्काल रोक लगनी चाहिए। अब भोजपुरी और मगही को लेकर झारखंड में नए सिरे से विवाद गहरा सकता है। बस विवाद को लेकर पूरा के वोट बैंक की राजनीति से जुड़ा हुआ है। वही झारखंड में नेता इसका विरोध कर रहे हैं जिन्हें पता है कि दोनों भाषा बोलने वाले लोगों का वोट उन्हें या उनकी पार्टी को नहीं मिलता।
You must be logged in to post a comment.