Akhlaq lynching case: न्याय की दहलीज पर जब सरकारी दांव-पेंच चलते हैं, तो अक्सर तलवार और तराजू के बीच एक दिलचस्प संघर्ष छिड़ जाता है। ग्रेटर नोएडा के बहुचर्चित Akhlaq lynching case: में योगी सरकार की याचिका को खारिज करके अदालत ने एक बार फिर यही साबित किया है कि कानून अपना रास्ता खुद तय करता है, भले ही सत्ता की राहें कितनी भी ऊंची क्यों न हों।
Akhlaq lynching case: योगी सरकार को लगा बड़ा झटका, अदालत ने खारिज की केस वापसी की याचिका
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को ग्रेटर नोएडा के अखलाक मॉब लिंचिंग केस में एक बड़ा कानूनी झटका लगा है। सूरजपुर की जिला अदालत ने इस बहुचर्चित मामले में लिंचिंग के आरोपियों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने से संबंधित राज्य सरकार की याचिका को सिरे से खारिज कर दिया है। अदालत के इस फैसले से साफ हो गया है कि यह गंभीर मामला बंद नहीं होगा और सभी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा जारी रहेगा। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। यूपी सरकार की ओर से दाखिल की गई केस वापसी की अर्जी पर अदालत ने सुनवाई के बाद बेहद तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की दलीलों को ‘आधारहीन और महत्वहीन’ करार दिया। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि केस वापस लेने के लिए कोई ठोस कानूनी वजह पेश नहीं की गई। यह फैसला कानूनी और लोकतांत्रिक दोनों ही नजरियों से बेहद महत्वपूर्ण है, जो यह दर्शाता है कि हमारी न्याय व्यवस्था भावनाओं या राजनीतिक दबावों के हिसाब से नहीं चलती, बल्कि कानून के सिद्धांतों पर आधारित है। यह कदम न्यायिक स्वतंत्रता को मजबूत करता है।
Akhlaq lynching case: क्या था मामला और सरकार का रुख?
यह मामला लगभग आठ साल पुराना है। सितंबर 2015 में ग्रेटर नोएडा के बिसाहड़ा गांव में भीड़ ने अखलाक की इस संदेह में पीट-पीटकर हत्या कर दी थी कि उसके घर में गोमांस रखा गया है। मॉब लिंचिंग की इस क्रूर वारदात ने तब पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस मामले में कुल 18 अभियुक्तों पर मुकदमा चल रहा है, और फिलहाल वे सभी जमानत पर बाहर हैं। इसी साल अक्टूबर (2023) में अचानक उत्तर प्रदेश सरकार ने इन आरोपियों के खिलाफ केस वापस लेने का फैसला किया, जिस पर कानूनी प्रक्रिया शुरू की गई थी।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी याचिका में सभी आरोपियों के खिलाफ मामला वापस लेने का हवाला देते हुए संयुक्त निदेशक की अनुमति मांगने के लिए अदालत में अर्जी दी थी। यह आवेदन सहायक जिला सरकारी अधिवक्ता (आपराधिक) द्वारा उच्च अधिकारियों के निर्देशों के बाद दायर किया गया था। हालांकि, अदालत के इस स्पष्ट फैसले से अब यह सुनिश्चित हो गया है कि अखलाक हत्याकांड में शामिल सभी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा आगे बढ़ेगा और मामले की नियमित सुनवाई की जाएगी। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें: https://deshajtimes.com/news/national/
न्याय की जीत: अदालत ने दिखाया आईना
28 सितंबर 2015 की रात को प्रतिबंधित मांस से जुड़ी अफवाह फैलते ही एक उग्र भीड़ ने अखलाक की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। इस घटना से पूरे देश में आक्रोश फैल गया था। अखलाक के बेटे दानिश (22) को भी इस हमले में गंभीर चोटें आई थीं। पुलिस ने जांच के बाद कुल 19 लोगों को आरोपी बनाया था। इन सभी पर हत्या, दंगा भड़काने और जान से मारने की धमकी देने जैसी गंभीर धाराओं में मामले दर्ज किए गए थे। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
अखलाक पक्ष के अधिवक्ता यूसुफ सैफी ने बताया कि अदालत ने अभियोजन पक्ष की ओर से दायर की गई याचिका को निरस्त कर दिया है। अदालत ने अभियोजन पक्ष को आगे गवाहों के बयान दर्ज कराने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही, अदालत ने पुलिस आयुक्त और डीसीपी को यह भी निर्देशित किया है कि यदि आवश्यक हो तो गवाहों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाए। इस केस में इससे पहले 12 और 18 दिसंबर को भी सुनवाई हो चुकी थी, लेकिन अभियोजन पक्ष द्वारा समय मांगने के कारण फैसला नहीं हो पाया था। सुनवाई के दौरान सीपीएम नेता वृंदा करात भी अदालत पहुंचीं और उन्होंने इस फैसले को न्याय की दिशा में एक बड़ा और महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा कि इस फैसले से पूरे देश में एक महत्वपूर्ण संदेश जाएगा कि न्यायपालिका स्वतंत्र है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। वृंदा करात ने यह भी आरोप लगाया कि यूपी सरकार ने न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की थी, जैसा कि पहले बिलकिस बानो केस में भी ऐसा ही प्रयास किया गया था।



