Haji Mastan: मुंबई की मायानगरी में अपराध और सियासत की दीवारें अक्सर एक-दूसरे में उलझ जाती हैं, लेकिन जब ‘डॉन’ की बेटी कानून के राज की गुहार लगाए तो कहानी में एक नया मोड़ आता है।
मुंबई डॉन Haji Mastan: बेटी की गुहार, ‘मेरे बाबा से न जोड़ा जाए’, जानें कौन था यह कुख्यात सरगना
Haji Mastan: अपराध की दुनिया से समाजसेवा तक का सफ़र
Haji Mastan: मुंबई की मायानगरी में अपराध और सियासत की दीवारें अक्सर एक-दूसरे में उलझ जाती हैं, लेकिन जब ‘डॉन’ की बेटी कानून के राज की गुहार लगाए तो कहानी में एक नया मोड़ आता है। मुंबई के पहले डॉन हाजी मस्तान की बेटी ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से एक मार्मिक अपील की है। उनका स्पष्ट कहना है कि बेशक मैं डॉन हाजी मस्तान की बेटी हूं, आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। लेकिन मेरी इस गुजारिश को मेरे बाबा के अतीत से न जोड़ा जाए। उन्होंने बच्चों के अपहरण और बढ़ते दंगों पर चिंता व्यक्त करते हुए कानून को और सख्त बनाने की मांग की है, ताकि अपराधी अपराध करने से खौफ खाएं। यह बात सुनकर कई लोग चकित भी हो सकते हैं, तो कुछ रोमांचित भी कि हाजी मस्तान की बेटी ऐसी बात कह रही हैं? मरहूम शायर निदा फ़ाज़ली साहब की एक पंक्ति याद आती है कि ‘हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी…।’ और यह तो दो पीढ़ियों के बीच की बात है। सोच और नियत का फर्क स्वाभाविक है। संभव है, आज की पीढ़ी हाजी मस्तान के बारे में बहुत कम या बिल्कुल न जानती हो। तो आइए, आज हम जानते हैं हाजी मस्तान की जीवनगाथा को।
1 मार्च 1926 को तमिलनाडु में जन्मे हाजी मस्तान आठ साल की उम्र में अपने पिता के साथ मुंबई आए। 1960 और 1970 के दशक में मस्तान को मुंबई का बेताज बादशाह माना गया। उनके जीवन पर आधारित कई हिंदी फिल्में बनीं, जिनमें अजय देवगन और कंगना रनौत अभिनीत ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ प्रमुख है। अमिताभ बच्चन अभिनीत ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘दीवार’ में भी उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण अंश लिया गया, जो काफी लोकप्रिय हुआ। मस्तान ने मुंबई में गरीबों के बीच रॉबिनहुड की छवि बनाई थी। वह जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे और उनके दरवाजे कभी बंद नहीं होते थे।
साइकिल पंचर की दुकान से डॉन बनने का सफर
तमिलनाडु के कुट्टालोर जिले से आठ साल की उम्र में अपने पिता के साथ मुंबई आए मस्तान ने शुरुआत में जीवनयापन के लिए काफी संघर्ष किया। कुछ दिनों की सोच-विचार के बाद, उन्होंने क्रॉफर्ड मार्केट में साइकिल ठीक करने की दुकान खोली। करीब नौ-दस साल तक वह इसी काम में लगे रहे। यहां उनकी मुलाकात डॉक पर काम करने वाले कुछ कुलियों से हुई, जो नियमित रूप से अपनी साइकिल ठीक करवाने आते थे। मस्तान उनसे उनके काम और डॉक की दुनिया के बारे में जानकारी हासिल करते रहे।
इसी दौरान उन्हें पता चला कि मुंबई के मझगांव डॉक्स में शेर खान नाम का एक गुंडा कुलियों से जबरन हफ्ता वसूली करता था। जो कुली पैसे देने से मना करता, उसके गुर्गे उसकी बेरहमी से पिटाई करते थे। एक साइकिल मैकेनिक ने दबी जुबान में अरब के सोना तस्कर शेख ग़ालिब के बारे में भी मस्तान को बताया। मस्तान दिन भर दुकान पर काम करता और रात को बड़े सपने देखता। एक समय ऐसा भी आया जब एक कामगार की मदद से वह भी 1944 में डॉक पर कुली बन गए। डॉक में काम करते हुए हाजी मस्तान अक्सर एक नजारा देखते थे: एक बाहरी व्यक्ति कुछ गुंडों के बल पर डॉक के अंदर आकर कुलियों से पैसे वसूलता था, जो उन्हें समझ नहीं आता था।
आखिरकार, हाजी मस्तान ने शेर खान से भिड़ने का मन बना लिया। अगले शुक्रवार को जब शेर खान अपने गुंडों के साथ हफ्ता वसूलने आया, तो उसने देखा कि कुलियों की लाइन से कुछ लोग गायब थे। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, मस्तान और उनके साथियों ने शेर खान और उसके गुर्गों पर हमला बोल दिया। शेर खान के लोगों के पास हथियार थे, इसके बावजूद मस्तान अपने साथियों के साथ उन पर टूट पड़े। अंततः शेर खान अपने साथियों के साथ जान बचाकर किसी तरह वहां से भागा। इसके बाद मस्तान डॉक के नए लीडर बन गए। फिल्म ‘दीवार’ में इस घटना को बखूबी दर्शाया गया है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। हालांकि, फिल्म में दिखाया गया ‘बिल्ला’ असल में मस्तान के पास नहीं था, यह सिर्फ फिल्मी रूपांतरण था।
कुछ महीने बाद, मस्तान की मुलाकात अरब के सोने के एक तस्कर ग़ालिब से हुई। एक दिन मुसीबत में फंसे ग़ालिब ने मस्तान से कहा कि अगर वह कुछ सामान अपनी टोपी या गमछे में छिपाकर बाहर पहुंचा दे, तो वह उसे कुछ पैसे देगा। यह काम सफलतापूर्वक हो गया और दोनों के बीच जान-पहचान बढ़ गई। धीरे-धीरे मस्तान ग़ालिब का खास बन गया और ग़ालिब उसे अपनी कमाई का दस फीसदी हिस्सा देने लगा। यह काम जारी था तभी एक दिन अचानक ग़ालिब को गिरफ्तार कर लिया गया। उसकी गिरफ्तारी से कुछ समय पहले ही मस्तान ने उसकी तरफ से सोने के बिस्कुट के एक बक्से की डिलीवरी ली थी। मस्तान ने उस बक्से को अपने ठिकाने पर छिपा दिया। तीन साल बाद ग़ालिब जेल की सजा काटकर वापस लौटा। उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी। मastan ग़ालिब को मदनपुरा की एक झोपड़ी में ले गया, जहां उसने उसे वह सोने के बिस्कुट से भरा लकड़ी का बक्सा दिखाया, जो अभी तक खोला नहीं गया था। ग़ालिब सोने के बिस्कुटों से भरा बक्सा देखकर अवाक रह गया। उसने कहा, “तुम चाहते तो इन बिस्कुटों को लेकर फरार हो सकते थे।” मस्तान ने जवाब दिया, “मेरे पिता ने मुझे सिखाया था कि तुम हर किसी से बच सकते हो, लेकिन ऊपरवाले से नहीं।” मस्तान की बात सुनते ही ग़ालिब की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा कि वह इस बक्से को तभी स्वीकार करेगा, जब मस्तान इसे बेचकर मिलने वाली रकम का आधा हिस्सा ले और इस पेशे में उसका पार्टनर बने। मस्तान ने इसके जवाब में अपना हाथ ग़ालिब के सामने बढ़ा दिया।
दबंगई से दौलत और फिर राजनीति का रुख
सोने के बिस्कुटों के इस बक्से ने Haji Mastan की जिंदगी बदल दी और वह रातोंरात लखपति बन गया। उसने डॉक की नौकरी छोड़ दी और सोना तस्करी को अपना मुख्य पेशा बना लिया। इस तरह उसने कुली के रूप में करियर शुरू किया और बाद में खासकर सोना तस्करी में बड़ा नाम कमाया। दमन में भी उसका बड़ा कारोबार फैला हुआ था। ग़ालिब के साथ मिलकर उसने सोने और घड़ियों की बड़े पैमाने पर तस्करी की। धीरे-धीरे वह मुंबई डॉक का सबसे बड़ा तस्कर बन गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह अपनी सादगी, सफेद कपड़ों, सफेद जूते और महंगी घड़ियों के लिए मशहूर था। अपने स्टाइलिश लुक के लिए वह जाना जाता था। उसके पास कई महंगी गाड़ियां थीं, लेकिन असलियत में वह अपनी पुरानी फिएट कार को ही लकी मानता था और अक्सर उसी से चलता था। बाद में वह एक चालाक कारोबारी बन गया, जो राजनीति और फिल्म इंडस्ट्री से भी जुड़ गया। दिलीप कुमार, सुनील दत्त जैसे बड़े फिल्मी सितारों के साथ उसकी बैठकें होती थीं। उसे मुंबई का पहला डॉन कहा जाता है, लेकिन उसने कभी पिस्तौल को हाथ नहीं लगाया। फिर भी उसका नाम सुनते ही लोग कांप उठते थे। जब अकूत दौलत जमा हो गई, तब उसने तस्करी छोड़कर रियल एस्टेट का कारोबार शुरू कर दिया। इमरजेंसी के दौरान उसे जेल भी जाना पड़ा, जहां वह जयप्रकाश नारायण से प्रभावित हुआ। बाद में उसने दलित मुस्लिम सुरक्षा महासंघ बनाकर राजनीति में भी हाथ आजमाया, लेकिन इसमें उसे सफलता नहीं मिली।
आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। अकूत पैसा कमाने वाला मस्तान कई मामलों में वाकई कमाल था। बाद में वह वार्डेन रोड और पेडर रोड के बीच सोफिया कॉलेज लेन के एक बंगले में रहने लगा। उसके द्वारा विदेशों को भेजी जाने वाली चांदी अपनी शुद्धता के लिए इतनी मशहूर थी कि उसे ‘मस्तान की चांदी’ का ब्रांड नाम मिल गया था। मस्तान ने मलाबार हिल में एक आलीशान बंगला और कई बड़ी कारें खरीदीं। हाजी मस्तान ने तब के मध्य मुंबई में बेलासीस रोड पर एक ऊंची बहुमंजिला इमारत बनवाई, जिसका नाम ‘मस्तान टावर्स’ रखा गया। उसने मद्रास की सबीहा बी से शादी की, जिससे उसे तीन बेटियां हुईं—कमरुन्निसा, महरुन्निसा और शमशाद। बाद में, उन्होंने बेटियों की सहमति से एक युवक सुंदर शेखर को गोद ले लिया।
फिल्मी दुनिया से लगाव और मधुबाला से शादी की चाहत
हाजी मस्तान मुंबई की फिल्मी दुनिया से बहुत आकर्षित था। उसने न सिर्फ कई फिल्में बनाईं, बल्कि एक संघर्षरत अभिनेत्री से शादी भी की। दरअसल, मस्तान अपनी जवानी के दिनों में मशहूर अभिनेत्री मधुबाला का दीवाना था और उनसे शादी करना चाहता था, लेकिन तब तक मधुबाला का निधन हो चुका था। उन दिनों मुंबई में मधुबाला जैसी दिखने वाली एक अभिनेत्री काम कर रही थी। उसका नाम वीणा शर्मा उर्फ सोना था। मस्तान ने उन्हें शादी का प्रस्ताव भिजवाया, जिसे उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया। मस्तान ने सोना के लिए जुहू में एक घर खरीदा और सोना के साथ रहने लगा। सुंदर शेखर ने एक बातचीत में बताया भी है कि फिल्मी दुनिया के कई लोग ‘बाबा’ के निकट थे। उनमें प्रमुख थे राज कपूर, दिलीप कुमार, सुनील दत्त और संजीव कुमार। फिल्म ‘दीवार’ बनने के दिनों में फिल्म के लेखक सलीम खान और अमिताभ बच्चन ‘बाबा’ से अक्सर मिलने आया करते थे, ताकि वे उस किरदार की गहराई तक जा सकें। 9 मई 1994 को दिल का दौरा पड़ने से ‘बाबा’ का निधन हो गया। जब ‘बाबा’ जिंदा थे, तब एक फोन करने पर कोई भी नामचीन हस्ती या कलाकार दौड़े चले आते थे, लेकिन ‘बाबा’ की मौत पर सिवाए मुकरी साहब के किसी और फिल्मी हस्ती ने घर आकर शोक व्यक्त नहीं किया।
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