Madras University Bill: शिक्षा के गलियारों में सियासत की गूंज फिर तेज हो गई है। तमिलनाडु में विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर चल रही रस्साकशी में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के एक अहम कदम से राज्य सरकार के प्रयासों को बड़ा झटका लगा है।
मद्रास यूनिवर्सिटी बिल: राज्यपाल के अधिकारों पर टकराव
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मद्रास विश्वविद्यालय (संशोधन विधेयक) को तमिलनाडु सरकार को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया है। इस फैसले से राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव लाने की तमिलनाडु सरकार की कोशिश फिलहाल थम गई है। अप्रैल 2022 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित इस विधेयक में मद्रास विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव था, जिसका मुख्य उद्देश्य कुलपति की नियुक्ति और बर्खास्तगी का अधिकार राज्य सरकार को देना था।
वर्तमान में, यह अधिकार राज्यपाल के पास है, जो विश्वविद्यालय के पदेन कुलाधिपति भी होते हैं। प्रस्तावित संशोधन का सीधा मकसद अधिनियम में कुलाधिपति के संदर्भ को सरकार के अधिकार के अधीन लाना था। तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि ने पहले ही इस विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर दिया था। उनका तर्क था कि इन प्रस्तावित परिवर्तनों से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों और कुलपति नियुक्तियों से संबंधित स्थापित मानदंडों के साथ टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
यह निर्णय द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम (डीएमके) सरकार और राज्यपाल के बीच राज्य में उच्च शिक्षा संस्थानों के विश्वविद्यालय प्रशासन को लेकर चल रहे लंबे समय से टकराव के बीच आया है। तमिलनाडु के 22 राज्य-संचालित विश्वविद्यालयों में से लगभग 14, जिनमें 168 वर्ष पुराना मद्रास विश्वविद्यालय भी शामिल है, इस समय नियमित कुलपतियों के बिना संचालित हो रहे हैं और उनकी देखरेख संयोजक समिति द्वारा की जा रही है।
यह विवाद सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंच चुका है, जिसने इस वर्ष अप्रैल में राज्य विधानमंडल से निपटने में राज्यपाल की भूमिका पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए, तमिलनाडु विधानसभा द्वारा 2022 में पारित 10 संशोधन विधेयकों को स्वतः स्वीकृत कर दिया था। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
उच्च शिक्षा में बढ़ती संवैधानिक तकरार
यह घटनाक्रम राज्य में उच्च शिक्षा के भविष्य और संवैधानिक पदों के बीच अधिकारों की सीमा को लेकर चल रही बहस को और गहरा कर रहा है। सरकार जहां विश्वविद्यालयों के संचालन में अधिक स्वायत्तता और जन-प्रतिनिधित्व का दावा कर रही है, वहीं राज्यपाल कार्यालय संवैधानिक मर्यादाओं और स्थापित अकादमिक मानकों को बनाए रखने पर जोर दे रहा है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। इस विधेयक की वापसी से यह स्पष्ट हो गया है कि कुलपति नियुक्तियों पर केंद्र और राज्य के बीच संवैधानिक अधिकारों की खींचतान अभी जारी रहेगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस मुद्दे पर आने वाले समय में और अधिक कानूनी और राजनीतिक संघर्ष देखने को मिल सकता है।






