बिहार में जातिगत जनगणना पर पटना हाईकोर्ट की रोक लगाई है। जिसको लेकर बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। जातिगत गणना मामले में बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर किया है।
बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पटना हाईकोर्ट के फैसले को याचिका दाखिल कर चुनौती दी है। बिहार सरकार ने याचिका में पटना हाईकोर्ट की ओर से जातिगत जनगणना पर रोक लगाए जाने के फैसले को रद करने की मांग की है।
जानकारी के अनुसार, पटना हाई कोर्ट ने जातीय जनगणना पर अंतरिम रोक लगा दी है। साथ ही अबतक इकठ्ठा किए गए डाटा को भी सार्वजानिक करने से माना किया है।
हाल ही में पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जाति आधारित जनगणना पर रोक लगा दी थी।बिहार की तमाम पार्टियां लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे थे।
बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना की तरफ कदम बढ़ दिए थे, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने नीतीश सरकार को करारा झटका देते हुए इस पर रोक लगा दी थी। जाति के आधार पर जनगणना को चुनौती देने के लिए लगाई गई याचिकाओं पर मई के पहले हफ्ते में ही सुनवाई पूरी हुई थी।
वहीं, इस मामले में सुनवाई करने की तारीख को 3 जुलाई की गई। बिहार सरकार की ओर से जल्दी सुनवाई के लिए दायर याचिका भी दाखिल की गई थी। लेकिन पटना हाईकोर्ट ने जल्द सुनाई से इनकार करते हुए बिहार सरकार की याचिका को खारिज कर दिया।
मतलब अब ये तय हो गया है कि जातिगत जनगणना पर अगली सुनवाई तीन जुलाई को ही होगी। लेकिन अब बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट की ओर से जातिगत जनगणना पर रोक लगाने केर निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
मामले पर सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता पीके शाही ने हाईकोर्ट के बताया था कि दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से जाति के आधार पर जनगणना कराने का फैसला लिया था।
उन्होंने बताया था कि यह राज्य का नीतिगत निर्णय था और इसके लिए बजटीय प्रावधान भी किया गया। महाधिवक्ता पीके शाही ने संविधान के अनुच्छेद 37 का भी हवाला दिया था।
इस अनुच्छेद में कहा गया था कि राज्य सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के संबंध में डाटा एकत्र करें। ताकि उनके लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाई जा सकें और उनका लाभ समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुंचाया जा सके।