चैत्र नवरात्र की पवित्रता से माहौल सुंगधित है। हवाओं में मां देवी का वात्सल्य है। धूप में महिषासुर के वध करने की आग भी साफ है। ये फिजाएं भी हैं, रमजान में रमा है। सौंधी मिठास, संकल्प है। हठधर्म है उस तपस्वी का जिसका नाम मर्यादा है। वह पुरूषोत्तम हैं। एक आदर्श पुरुष। चार भाई और एक राजा के पितृभक्त राम, धैर्यवान, साहसी, न्यायी, पराक्रमी, त्यागी और उदार के साक्षात्कार, जिनका चरित्र हर प्राणी के जीवन का अनुकरणीय है।
सभी चेष्टाएं, उसका धर्म, ज्ञान, नीति, शिक्षा, गुण, प्रभाव, तत्व और रहस्य से भरा उनका स्वभाव, उनका व्यवहार जिसे देवता क्या ऋषि, मुनि, मनुष्य, पक्षी, पशु सभी के लिए प्रशंसनीय, अलौकिक और अतुलनीय है। जिससे जाम्बवान, सुग्रीव, हनुमान, रीछ-वानर, जटायु हर पक्षी जिसका सामीप्य चाहा है, या फिर विभीषण हों या अन्य कोई राक्षस। उनके दयापूर्ण प्रेमयुक्त और त्यागमय व्यवहार भला किसके स्मरण में नहीं जो हमे रोमांचित भी करता है, जिसकी चेष्टा मात्र हमें कल्याणकारी बनाता है। आज राम की बात इसलिए कि बिना डीजे बिहार भला रामवनमी कैसे मनाएं।
धर्म आदिकाल से जिस मानव के लिए प्रमुख प्रेरक तत्व रहा, वह प्राचीनकाल में कोई स्पष्ट स्वरूप में नहीं था। प्राकृतिक शक्तियों से भयभीत होना हमारी नियति थी। इन शक्तियों की पूजा करना धर्म का एक सर्वमान्य स्वरूप था।
विश्व की विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं के धर्मों और मान्यताओं में धर्म के इसी विलक्षण स्वरूप की प्रबलता ने भारत में ऋग्वैदिक काल से धर्म के एक नए धरातल की रचना की। यहीं से यज्ञ, मंत्र और ऋचाओं का प्रचलन आरंभ हुआ। मूर्तिपूजा और कर्मकांड के साथ-साथ धार्मिक अंध-विश्वासों ने भी अपना स्थान बना लिया। जो आज उस कांड, उस अंध व्यवस्था के मकड़ी सरीखे विकराल स्वरूप में है जिसकी जाल, लगातार फैल रही।
सहन करना और सहिष्णुता भले पर्यायवाची हों मगर, सहिष्णुता की व्याख्या में किसी भी चीज को सहन करना ही असहिष्णुता कही जाती है। यही वजह है, आज के समय में कोई भी किसी से दबना नहीं चाहता। आज की भूल यही है,
समाज में शांति कैसे स्थापित हो? इसे बनाए रखने की जिम्मेदारी किसकी है? आपसी भाईचारे की मजबूत कहां से मिले? इसके लिए सहिष्णुता जरूरी है, मगर कहीं दिखती नहीं। सांप्रदायिकता, जाति भेद, लिंगभेद, धार्मिक कट्टरता का समाधान निकालने में सहिष्णुता जो एकमात्र रास्ता है जो असरदार भी है, मगर मानेगा।
याद रखने की जरूरत ही नहीं, मानव सभ्यताएं दीर्घकालीन क्यों और कैसे है? सहिष्णुता का गुण किसमें है? इसके मायने तलाशेगा कौन? सहन करने में समर्थ यानि सहनशील आज दिखता कौन है? या दिखने की चाहत किसमें है?
एक वर्ग जाति, धर्म या विचारधारा के लोग कभी सहिष्णु नहीं हो सकते। सहिष्णुता के लिए विविधताओं का होना भी जरुरी है, तभी एकदूसरे के विचारों, भावनाओं, आस्था, विश्वास, संस्कृति को स्वीकारने की सहनशक्ति उत्पन्न हो सके।
हिंदू संस्कृति जिसे भाइयों का प्रेमपूर्ण व्यवहार मानता हो। जिसकी शिक्षा रामायण में श्रीराम, श्रीलक्ष्मण, श्रीभरत एवं श्रीशत्रुघन के चरित्रों के प्रत्येक क्रिया में झलकता हो। स्वार्थ, त्याग और प्रेम के भाव में लिपटे श्रीराम और भरत के स्वार्थ त्याग और उनका प्रत्येक संकेत, चेष्टा और प्रसन्नता का विलक्षण प्रमाण हो। भरत के राज्याभिषेक से श्री राम के राज्याभिषेक तक। या फिर द्वापरयुग में युधिष्ठिर समेत अन्य पांडवों का परस्पर भ्रातृप्रेम आदर्श और अनुकरणीय जिस हिंदू-संस्कृति में दिखा हो या दिख रहा हो उसी हिंदू परंपरा में आज डीजे कैसे समाहित हो गया। समझ से परे। इसके अपने-अपने तर्क मर्यादा-उसकी अभिव्यक्ति-उसकी सोच में अहंकार लेकर कैसे समाहित हो गया। घुस आया समझना-समझाना बेहद मुश्किल।
आज के मौजूदा सरकार हो या विपक्ष। बस फैशन यही है, विरोध होना चाहिए। बिना तर्क, बिना सहमति, बिना औचित्य। शर्त्त सिर्फ यही है, विरोध हो, उसके मायने क्या हों, उसकी संभावना क्या हो, उसके फैसले क्या हों, मायने नहीं रखते। मायने यह, हमारी सोच भिन्न क्यों है?
बिहार में डीजे पर रोक। रामनवमी पर पूरे बिहार का सर्कुलर यही है। जुलूस के तमाम गाइडलाइन यही हैं, जुलूस को लेकर सरकार की सख्ती यही है, जिलों में लगातार शांति समिति की बैठकों का फैसला यही है। डीजे नहीं बजेगा। राज्य में विधि व्यवस्था चाहिए तो रामनवमी पर निकलने वाले झांकी के दौरान डीजे नहीं बजाने देंगे।
अब आज के राम और भरत…राम और भरत यूं कह रहा, जिस चौधरी के सम्राज्य में बीजेपी आगे बढ़ी है वहां अखाड़ा तैयार हो रहे। इस अखाड़े में अखाड़ा समिति भी उतर गई है। फिर राजनीति तो राम और भरत काल में दिखा, आज भी है। बीजेपी और आरजेडी रणयुद्ध की भूमि में आमने-सामने अपनी सेना के साथ खड़ा है।
अलग-अलग तर्क। मंशा पर सवाल। सुप्रीम कोर्ट के फैसले। डीजे पर रोक को गलत बताने की लंबी-चौड़ी बहस। सवाल यही है, डीजे को पसंद कौन लोग कर रहे। इसे भी जाति में बांटने और समझाने की राजनीति आखिर क्यों हो रही। जारी निर्देश क्या एक समुदाय के लिए हितकारी है।कल होकर मुस्लिम समुदाय के त्योहार में अगर डीजे बजाया जाता है तो फिर हिंदू समुदाय के लोग भड़केंगे।
बीजेपी पूछती है सिर्फ हिंदुओं के त्योहारों में ही नियम की सख्ती क्यों? मुस्लिम पर्व में ऐसा दिखता नहीं… क्यों? अब यूपी में ऐसा हो रहा तो बिहार में क्यों नहीं? हम आएंगें, हम योगी की तरह फैसले लेंगे? आरजेडी विधायक रामानुज प्रसाद आगे आते हैं, डीजे से हार्ट अटैक के खतरे समझाते हैं। सड़क तक डैमेज तक की समस्या की बात करते हैं। साफ कहते हैं, डीजे पर रोक बिलकुल सही है। यह किसी एक धर्म के लिए नहीं है।सभी धर्मों के लिए है। डीजे पर रोक लगाई गई है, ऐसा आज नहीं हुआ है ये काफी पहले से है।
बीजेपी विधायक पवन जायसवाल तपाक से कहते हैं, भाई डीजे पर कई राज्यों में रोक लगाई गई है। मगर, सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे गलत बताया है। डीजे को हम लोग भी पसंद नहीं करते हैं, लेकिन रामनवमी के मौके पर इस तरह का निर्देश निकालकर यह दिखाना कि हम किसी एक समुदाय के लिए हितकारी हैं, और कल होकर मुस्लिम के त्योहारों में अगर डीजे बजते हैं तो फिर हिंदू लोग भड़केंगे।
कश्मीर और इजरायल फिलिस्तीन के संघर्ष का मूल तो मजहब की विचारधारा ही हैं। मगर हमें क्या करना चाहिए? संकीर्ण सोच त्यागने और विश्व बंधुत्व की भावना में आड़े आती ह्रदय की धारणाओं को शांति और परस्पर सहिष्णुता की स्थापना से कैसे प्रयासरत हों, उसमें सफल हों यह सोचेगा कौन? यहां तो सत्ता की हवस है।
डीजे बजाने और नहीं बजाने के पर कई तरह के विवाद साफ शब्दों में स्पष्ट संकेत है। हमारे अंदर में मनुष्यता नहीं, भीतर छिपा हुआ पशु अब भी जगा है, जो सामाजिक ताने-बाने छिन्न-भिन्न करने पर आमादा है। धर्म की रक्षा के नाम पर जब मानव समुदाय तांडव करने लगे, तो सामान्य मर्यादाएं भी आंसुओं में बह जाते हैं।
“हमने अपनी सहजता ही एकदम बिसारी है
इसके बिना जीवन कुछ इतना कठिन है कि
फर्क जल्दी समझ नहीं आता
यह दुर्दिन है या सुदिन है ।”
फिर भी धर्म का परचम लहराने वाले लोग यही कहते नहीं थकते, उनका धर्म खतरे में है। हास्यास्पद यही। यदि मनुष्य अपने धर्म से प्रेरणा लेकर थोड़ी सी सहज क्षमता प्रदर्शित करें, तो सभी धार्मिक विवाद हल किए जा सकते हैं। लेकिन यह सब कहना जितना आसान लगता है, करना शायद उतना सरल नहीं है। कारण, धर्म जितना अच्छा है धार्मिकता उतनी ही बुरी है। आइए हम आपको छोड़ आते हैं अब थोड़ा फ्लैश बैक में जहां डीजे वाले बाबू जो अब हिंदू हैं या मुसलमान हम नहीं कह सकते मगर बड़े फसादी जरूर हैं, यह तय है….
बिहार में डीजे काल बनता जा रहा है। मारपीट, पथराव, हिंसक झड़प से हत्या तक इसकी लपेटे में है। पिछले दिनों बिहार सरकार ने गानों में बढ़ती अश्लीलता, द्विअर्थी शब्दों पर कड़ी आपत्ति जताई। इसपर अंकुश लगाने के लिए सख्त निगरानी की व्यवस्था शुरू की है। भोजपुरी समाज की ओर से अश्लीलता के खिलाफ लगातार उठ रही आवाज के आलोक में भोजपुरी गाने को लेकर खास तौर पर बिहार पुलिस ने बड़ा आदेश पारित किया। पुलिस मुख्यालय ने एक एडवाइजरी जारी
की। इसमें सीधे तौर पर लिखा गया, कहीं भी अश्लील गाने बजने पर कठोर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन, हालिया महाशिवरात्रि में बिहार के जिले इस आदेश की अवहेलना में आगे रहे।
इतना ही नहीं जब अश्लील गाने बजाने से मना किया गया तो लाठी-डंडे से पिटाई कर दी गई। मामला, नालंदा का है। वैसे, इससे पहले की बात करें तो यह बात बेमानी लगेगी। कारण, डीजे मतलब बिहार ही नहीं यूपी में भी बवाल। पिछले दिनों, पटना सिटी के खाजेकला के नवाब बहादुर मोड़ के नजदीक प्रतिमा विसर्जन शोभायात्रा के दौरान दो गुटों के बीच इसी डीजे ने जमकर पथराव कराए। कारण, शोभा यात्रा में कुछ लोग डीजे पर आपत्तिजनक गाना बजा रहे थे, जिसे लेकर मामला गरमा गया।
मामला, पश्चिम चंपारण के जगदीशपुर थाना क्षेत्र में भी गरमाया जब डीजे बजाने को लेकर दो पक्षों में जमकर मारपीट हो गई। रात में बारात मदरसे के पास से गुजरी जो वहां के लोगों को पसंद नहीं आई। इसके बाद इसका विरोध किया गया। बारात तो आगे बढ़ गई लेकिन फिर दूसरे पक्ष के लोग वहां आ गए और जमकर हंगामा करने लगे। घर की छत से खूब ईट और पत्थर बरसाए गए। यही नहीं उनके साथ मारपीट भी की गई। इसमें पांच लोग घायल हो गए।
पटना में इसी डीजे ने पुलिस और पब्लिक में ऐसी मारापिटी करवाई भीड़ ने अधिकारी और पुलिस को भीड़ ने खदेड़ डाला। भीड़ का उग्र रूप देखकर प्रशासन ने भी पीछे हटने में ही अपनी भलाई समझी। गौरीचक थाना पर तो खड़ी गाड़ियों में जमकर लय-तालों के बीच तोड़फोड़ हुई। तैनात मजिस्ट्रेषट छिपकर अपनी जान बचाई। नतीजा क्या निकला… माहौल शांत होने के बाद पुलिस उपद्रवियों की पहचान करने में जुटी है।
यानी डीजे बजाने में इतना मजा है कि इसके लिए जान भी चली जाए। सलाखों में भी कैंद हो जाएं तो फर्क नहीं। शर्त यही डीजे बजना चाहिए। हाल ही में, गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव चैतन्य प्रसाद ने पत्र जारी किया। लिखा, सारण जिले में कुछ असामाजिक तत्व मैसेजिंग सेवाओं का दुरुपययोग कर सकते हैं। इसलिए आठ फरवरी तक सारण जिले में सोशल नेटवर्किंग साइट्स और इंस्टेंट मैसेजिंग सेवाओं का दुरुपयोग रोकने के लिए उसे बंद करने का आदेश दिया गया है। इससे कितने लोगों को कहां कहां परेशानी हुई यह डीजे वाले बाबू नहीं समझते।
भोजपुरी इंडस्ट्री में कोई भी नया गाना आते ही वायरल हो जाता है। करोड़ों लोग उसे देखते हैं और पसंद करते हैं। वजह यही है, गानों के बोल बेहद ही अश्लील होते हैं। ये भोजपुरी गाने ट्रेंड के साथ पार्टियों की जान तक बन जाते हैं। छ गायकों के खिलाफ तो अश्लील गाना गाने के आरोप में केस भी दर्ज हो चुके हैं। पुलिस थानों में डीजे पिकअप को पकड़कर लाती भी रहती है। मगर, समाज की अधिकांश शादियों में बिना डीजे आज सात फेरे नहीं लगते। मंडप तक बरात नहीं पहुंचती। जब तक नागिन डांस ना हो, दुल्हों को लगता ही नहीं, शादी भी हो रही। पवन सिंह के गाने ‘राते दिया बुता के पिया क्या क्या किया।
भोजपुरी इंडस्ट्री के सुपरस्टार खेसारी लाल यादव अपने गानों को लेकर न केवल ट्रोल होते रहे, बल्कि उनपर केस तक दर्ज हो चुका है। खेसारी लाल यादव के गाने ‘चाची के बाची सपनवां में आती है’ पर सुजीत सिंह ने मुंबई में केस दर्ज कराया। खेसारी पर आरोप था, वह पैसे कमाने के लिए अपने गानों में अश्लीलता परोसते हैं। राकेश मिश्रा के ‘राजा तनी जाई न बहरिया’ दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ,क्योंकि इसमें भी अश्लीलता के शब्द और द्विअर्थी संवाद भरे थे। चंदन चंचल के भोजपुरी गाने ‘देवरा ढोढ़ी चटना बा’ के विरोध में लोग सड़कों पर उतरे। चंदन के घर जाकर उनके पिता से पूछा, आपके बेटे ने जो गाना गया है वो ठीक है?
कोई देवर अपनी भाभी का ढोढ़ी चाटता है क्या? इसके जवाब ने उनके पिता ने भी इस गाने को अश्लील बताया था। इसके अलावा गायक की भाभी से भी यही सवाल किया गया । उन्होंने भी इसे अश्लील बताया। मगर, हुआ क्या…अश्लीलता क्या खत्म हो गई…नहीं ना। प्रियंका अंतरा सिंह उस कड़ी में अगला नाम है, जो अश्लील शब्दों की अश्लीलता परोसती लगातार ट्रोल हैं। ऐसे में, डीजे पर प्रतिबंध, अश्लील द्विअर्थी संवादों पर लगाम की कसरत आज समाज के बीच ठीक यूं है जैसे, ‘पठान’ के ट्रेलर के साथ डबल धमाका की बात आई जब कहा गया था, आदित्य चोपड़ा लॉन्च करेंगे स्पाई यूनिवर्स…। बात आई गई और खत्म हो गई। पठान एक हजार करोड़ के पार…और भोजपुरी गायक सीसीएल खेलने में व्यस्त…समाज पिकअप पर तेज ध्वनि…डीजे की धुन पर लड़ने-मारने-काटने पर आमादा…। अब आप ही तय करे, डीजे हिंदू है या मुसलमान…या देशद्रोही…आतंकी…नक्सलवादी…गांधी या सावरकर….अडाणी या हिंदुस्तानी…नीरव या नेहुल…कौन है ये डीजे…
पहले से सुनता आया हूं… नफरतों का असर देखो, जानवरों का बंटवारा हो गया, गाय हिंदू और बकरा मुसलमान हो गया। ये पेड़ ये पत्ते ये शाखें भी परेशान हो जाएं, अगर परिंदे भी हिंदू और मुसलमान हो जाएं। सूखे मेवे भी ये देखकर परेशान हो गए। ना जाने कब नारियल हिंदू और खजूर मुसलमान हो गए। जिस तरह से धर्म रंगों को भी बांटते जा रहे हैं,
कि हरा मुसलमान और लाल हिंदुओं का रंग है, तो वो दिन भी दूर नहीं। जब सारी की सारी हरी सब्जियां मुसलमानों की हो जाएंगी। और हिंदुओं के हिस्से बस गाजर और टमाटर ही आएगा। अब समझ नहीं आ रहा कि तरबूज किसके हिस्से जाएगा? ये तो बेचारा ऊपर से मुसलमान और अंदर से हिंदू रह जाएगा….मगर अब बिहार का यह डीजे किस धर्म को चुनें यह किसे समझ में आएगा…?