बिहार की जनता दुविधा में है। वह युद्ध की स्थिति में नहीं है। वह संयमित है। धैर्य में है। फूंक-फूंक चलने को विवश भी। जनता क्या चाहती है। जनता के पास क्या है। जनता समझ नहीं पा रही। बिहार की राजनीतिक धरातल में मिट्टी भी है, गहरे गड्ढे भी हैं, कंकड़ भी है मगर पानी नहीं है। खाद नहीं है। बिहार ठहर गया है। वह ठहरे हुए पानी में है। यहां बिसात पर नीतीश भी हैं।
तेजस्वी भी हैं तो भाजपा की तरफ से कोई स्पष्ट, सटीक और व्यवस्थित चेहरा नहीं है। सुशील हैं जो खुद मोदी की टैग हैं। सम्राट हैं जो पगड़ी खोलने को तैयार नहीं। विजय सिन्हा हैं, नीतीश से अपनी लड़ाई और विधानसभा में नोक के झोंक में ही हैं। कौन है चेहरा…? गिरिराज सिंह…हिंदूत्व और हिंदू, पलायनवाद, जनसंख्यावाद पर बड़े टीवी स्क्रीन पर छोटी हरकत करते नजर आते हैं। मुंह से ऐसा कुछ निकलता है, लिखने में शर्म…
पूरी फौज उतारी। स्पष्ट चेहरा अभी भी बाकी है मेरे दोस्त। क्योंकि सामने स्पष्ट और सीधा तेजस्वी, नीतीश हैं। मांझी भी हैं मगर नाव पर मुकेश सहनी के साथ सवार। कब हो जाए छेद कब पलटी, कब डूबाने का खतरा, कब उबारने का दम-खम।
भाजपा को सोचना होगा। भले यह गोपालगंज की जीत सामने है। मगर, ऐसे कई प्रश्न है जिसे भाजपा को साधना होगा, विस्तारित करना होगा और तभी उसे आत्मसात कर आगे की महाभारती युद्ध में उतरने की कसरत और तरकश में तीर संजोने होंगे।
निसंदेह गोपालगंज तेजस्वी हारे हैं। मगर, इस हार में भी जीत के कुछ निहितार्थ छुपे जरूर हैं। मामा का यूं उतर आना। मामी का वोटर शेयर कर लेना। बीएसपी की टिकट पर चुनाव मैदान में साधु यादव की पत्नी इंदिरा यादव का यूं कटती वोट, थोड़ी सी कट और हल्की सी हार तो तेजस्वी को चूभेगा ही। फिर मोहन गुप्ता पर कोर्ट की ऐंठ, एक मतदाता की चक्रव्यूह ने ऐसा शमां बांधा तेजस्वी की तेज थोड़ी फिकी पड़ गई लेकिन सही मायने में यह तेजस्वी की हार बीजेपी के लिए गहरी खाई को पाटने की मशक्कत भर जरूर है।
बिहार बीजेपी को संजोने की जरूरत है। इन्हें एक व्यवस्थित नेता को सामने लाना ही होगा। वैसे, खुशी बीजेपी में यूं भी हो कि साल 2005 से गोपालगंज सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है जो कभी भी इस सीट पर हार का मुंह नहीं देखा है। आज फिर जीत हुई है लेकिन, खुशी की गीत गाने से भला यह होगा, आम आदमी पार्टी से कुछ सीख ले लें। केंद्र से बुलाना और भीड़ पर गरजती सांसों को उखड़ना बिहार को पसंद नहीं। बिहार खुद में जीता है। बिहार देश की दिशानायक है। यहां बाहरी नहीं, खेत से उपजी और उसी की सौंधी खुशबू में विसात भी बिछती है, खेत भी लहलहाते हैं।
गुजरात में चुनाव लड़ रही आप तो सामने टीवी स्क्रीन पर अपने भावी सीएम का चेहरा और सूरत के साथ पूरी तैयारी में पिच पर बैटिंग करने उतर आती है। बिहार में बीजेपी को भी ऐसा करना मजबूरी है। वह आज करे या देर से। आपके प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी एक तरह से खाली है। उसे पूर्णकालिक भरिए। समय कम है। जनता एक राय बनाए अगर सामने चेहरा हो। तभी बनेगी बात नहीं तो वन ऑल से आगे काम बिगड़ने का खतरा सामने…वैसे, तेजस्वी यही गा रहे अगर तुम अपने होते मामा…सच मानो तो…मनोरंजन ठाकुर के साथ।