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24 नवम्बर, 2024
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गलती किसी की, सजा भुगत रहा कोई और? SP की सूझ-बूझ पर उठ रहें सवाल, अब भी प्रशिक्षण की जरूरत, थानाध्यक्ष पर कार्रवाई के बदले कर दी SI पर कार्रवाई

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बिहार में जिला चला रहें कई पुलिस कप्तान को फिर से प्रशिक्षण की शायद जरूरत है क्यूंकि उनके दिमाग में यह बात नहीं घुसती कि किसी भी मामले में दोषी पुलिसकर्मी कौन
है?

कारवाई किस पर होनी चाहिये या किस पर कारवाई नहीं होना चाहिये इस बात की समझ उन्हें नहीं है। कई जिलों से इस तरह के मामले उभरकर सामने आ रही है। यही प्रश्न है आखिर दोषी पुलिस अधिकारियों पर एसपी कारवाई क्यू नहीं करते।

मामला औरंगाबाद जिले के महिला थाना का है। महिला थानाध्यक्ष कुमकुम कुमारी द्वारा एक पुरुष के आवेदन पर विधिवत कारवाई कर दिये जाने से पुलिस महकमा में ही तरह तरह की बातें उठने लगी है?

सरकार का स्पष्ट निर्देश है कि महिला थाना में सिर्फ महिलाओं से संबंधित कारवाई होनी है फिर पुरुष के आवेदन पर कारवाई कैसे हुई? औरंगाबाद महिला थानाध्यक्ष कुमकुम कुमारी ने एक चोरी के मामले में पुरुष का आवेदन लिया और उस आवेदन को सीन करते हुये उसकी जांच एसआइ संगीता को दें दिया।

संगीता ने जांच करने से यह कहते हुये मना कर दिया कि यह नियम विरुद्ध है। कुछ दिन बाद महिला थाना पुलिस ने आरोपी को पकड़ लिया और थाने लाकर सिरिस्ता में रखा या हाजत में बंद किया यह जांच का विषय है।

थाने में आरोपी की तबियत बिगड़ गई। उसे सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया और इलाज के बाद थाने लाया गया। करीब 27-28 घंटे बाद उसे छोड़ दिया गया। इसका प्रमाण स्टेशन डायरी में है?

अब इस मामले में एसपी को थानाध्यक्ष पर कारवाई करनी चाहिये क्यूंकि आवेदन तो थानाध्यक्ष ने लिया? यही सवाल है कि पुरुषों का आवेदन अगर महिला थानाध्यक्ष ने लिया तो कारवाई महिला थानाध्यक्ष पर होनी चाहिये?

थानाध्यक्ष ने क्यू आवेदन लिया जाहिर सी बात है लेन देन हुआ होगा ?फिर सवाल है कि आरोपी को पकड़कर छोड़ क्यू दी ?जाहिर सी बात है इससे भी लेन देंन कर ली होगी ?लेकिन कारवाई एसपी ने एसआइ पर की? ऐसा क्यू?

अब एसपी के संज्ञान में बात आई तो कारवाई एस आई पर कर दी, कारवाई तो महिला थानाध्यक्ष पर होनी चाहिये? अब सवाल यही है कि एसपी साहिबा भी थानेदार से प्रभावित है क्या?

सवाल तो यही होगा? या उन्हें फिर से प्रशिक्षण के लिये जाना चाहिये?क्यूंकि सारे साक्ष्य थानाध्यक्ष के विरुद्ध है? फिर कारवाई एसआई संगीता पर क्यों?

एस आई संगीता ने थानाध्यक्ष को दो टूक कह दिया था कि मेडम यह आवेदन महिला थाना द्वारा लिये जाना जायज नहीं है? सूत्रों का कहना है कि एसपी ने थानाध्यक्ष के बदले कारवाई एसआइ संगीता पर करते हुये उसे लाइन क्लोज कर दिया है।

अब यहां फिर वहीं सवाल है कि एसपी साहिबा क्या महिला थाना अध्यक्ष से कुछ ज्यादा प्रभावित है क्या? अगर नहीं तो इस मामले में महिला थाना अध्यक्ष पर कारवाई क्यू नहीं। इस पूरे प्रकरण में एसपी साहिबा को उस आवेदन को देखना चाहिये जिस आवेदन को बबलू मिस्त्री ने महिला थानाध्यक्ष को दिया था।

एसपी साहब को यह देखना चाहिये कि इस आवेदन को किसने लिया। उक्त आवेदन पर स्पष्ट रूप से दिखाई दें रहा है कि महिला थानाध्यक्ष ने आवेदन लेकर जांच में एसआइ संगीता कुमारी को दिया है।

ऐसे में साफ है कि आवेदन महिला थानाध्यक्ष ने ही लिया। एसपी साहब को महिला थाना के स्टेशन डायरी को देखना चाहिये कि आरोपी का तबियत खराब होने पर सदर अस्पताल ले जाया गया फिर वहां से इलाज कराने के बाद लाया गया।

फिर कई घंटों बाद आरोपी को छोड़ दिया गया। एसपी साहिबा को महिला थाना का सीसीटीवी फुटेज देखना चाहिये फिर कारवाई किस पर होनी चाहिये यह फैसला लेते हुये दोषी पर कारवाई करना था लेकिन इन सभी बिंदुओं को अनदेखी करते एसपी साहब ने निर्दोष एसआइ पर कारवाई कर दी।

इससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बिहार सरकार /पुलिस मुख्यालय को ऐसे एसपी के विरुद्ध ठोस कदम उठाना चाहिये और पुनः इन्हें प्रशिक्षण के लिये भेजना चाहिये ताकि पुलिस विभाग असंतुलित ना हो और पुलिसिया मान मर्यादा बना रहें।

ऐसे में पुलिसिया व्यवस्था का संतुलन ही बिगड़ जाएगा। गया के आईजी क्षत्रनील सिंह को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिये और अपने स्तर से जांच कराकर इस मामले के सभी दोषियों पर कारवाई करना चाहिये ताकि व्यवस्था सुदृढ़ बना रहें।

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