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दिसम्बर, 12, 2025

Arunachal Pradesh illegal mosques: अरुणाचल में अवैध मस्जिदों पर गहराया विवाद, संगठनों ने सरकार को दी खुली चुनौती

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अरुणाचल प्रदेश अवैध मस्जिदें: जब शांत पहाड़ियों पर आस्था के नाम पर अवैध निर्माण का साया गहराता है, तब स्थानीय पहचान और संस्कृति का संरक्षक समाज भी जाग उठता है। अरुणाचल की राजधानी ईटानगर में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है, जहां अवैध मस्जिदों और मजारों के खिलाफ स्थानीय संगठनों का आंदोलन अब एक निर्णायक मोड़ पर आ पहुंचा है। राज्य के स्वदेशी समूह प्रशासन की कुंभकर्णी नींद को तोड़ने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं।

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अरुणाचल प्रदेश अवैध मस्जिदें: राजधानी में १२ घंटे का बंद, प्रशासन को खुली चुनौती

यह पूरा मामला तब गरमाया जब राज्य की राजधानी ईटानगर में मंगलवार को तीन प्रमुख स्थानीय संगठनों – इंडिजिनस यूथ फोर्स ऑफ अरुणाचल (IYFA), अरुणाचल प्रदेश इंडिजिनस यूथ ऑर्गनाइजेशन (APIYO) और ऑल नाहरलगुन यूथ ऑर्गनाइजेशन (ANYO) – ने संयुक्त रूप से १२ घंटे का बंद बुलाकर राज्य प्रशासन को खुली चुनौती दे दी। इन संगठनों का दावा है कि वे अक्टूबर से ही अपनी मांगों को लेकर लगातार आवाज उठा रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

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संगठनों की प्रमुख मांगें और आरोप

इन संगठनों की तीन प्रमुख मांगें हैं: नाहरलगुन स्थित कैपिटल जामा मस्जिद को तत्काल हटाया जाए, राजधानी क्षेत्र में लगने वाले साप्ताहिक बाजारों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए और राज्य में बसे अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को तुरंत निष्कासित किया जाए। संगठनों का स्पष्ट आरोप है कि मस्जिद और पंजा खाना जैसी संरचनाएँ केवल अवैध निर्माण ही नहीं हैं, बल्कि कई अन्य बसाहटें भी बिना उचित अनुमति के फल-फूल रही हैं, जिन पर प्रशासन ने आज तक कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं की।

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बंद का चरणबद्ध विस्तार और जन समर्थन

मंगलवार सुबह पांच बजे से शाम पांच बजे तक चले इस बंद को आंदोलन का पहला चरण बताया गया। APIYO के अध्यक्ष तारो सोनम लियाक ने दावा किया कि बंद पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा और किसी प्रकार की अप्रिय घटना नहीं हुई। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह केवल उनके संगठन की नहीं, बल्कि समूचे जनजातीय समाज की सामूहिक पुकार है। उनके अनुसार, यह जनता और स्वदेशी समुदायों के हकों की आवाज है, जिसे व्यापारिक समुदाय और परिवहन यूनियनों से भी व्यापक समर्थन मिला है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सरकार की सख्त प्रतिक्रिया और चेतावनी

दूसरी ओर, राज्य सरकार ने इस आंदोलन पर सख्त रुख अपनाया। कानून-व्यवस्था के पुलिस महानिरीक्षक (IGP) चुंखु अपा ने साफ शब्दों में कहा कि पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की गई है और किसी भी व्यक्ति को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी। उन्होंने बंद समर्थकों को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वे किसी भी रूप में जबरदस्ती, बाध्यकारी कदम या हिंसा पर उतरते हैं, तो पुलिस सख्त कानूनी कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटेगी।

प्रशासन की टालमटोल और संगठनों का बढ़ता धैर्य

जिला प्रशासन ने पहले ही इस १२ घंटे के बंद को अवैध और असंवैधानिक घोषित कर दिया था। इसके बावजूद, संगठनों ने सरकार के रवैये को टालमटोल भरा, वादाखिलाफी और उदासीनतापूर्ण बताते हुए इसे लागू करने का फैसला किया। उनकी मुख्य शिकायत यह है कि सरकार ने ५ दिसंबर को एक बैठक का वादा किया था, लेकिन वह बैठक कभी हुई ही नहीं। पहले २५ नवंबर को प्रस्तावित बंद को स्थानीय त्योहारों और खेल आयोजनों के कारण टाल दिया गया था, लेकिन आयोजकों के अनुसार अब उनके धैर्य की सीमा पूरी तरह टूट चुकी है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।

आवश्यक सेवाओं में छूट और जिम्मेदारी का प्रश्न

बंद के दौरान, आवश्यक सेवाओं जैसे एम्बुलेंस, दूध आपूर्ति और परीक्षा देने जा रहे छात्रों को छूट दी गई थी। छात्रों से पहचान पत्र साथ रखने का अनुरोध किया गया था ताकि उन्हें किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। संगठनों ने यह भी स्पष्ट किया था कि यदि बंद के दौरान कोई अप्रिय घटना घटती है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की होगी, क्योंकि आंदोलनकारियों के अनुसार प्रशासन ने संवाद के सभी दरवाजे स्वयं बंद कर रखे हैं।

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आदिवासी पहचान और शासन की विफलता

अरुणाचल का यह बंद केवल एक अवैध निर्माण को हटाने की मांग भर नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समुदायों की गूंजती हुई चेतावनी है कि उनकी भूमि, पहचान और सुरक्षा के साथ अब और खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सरकार महीनों तक इस मुद्दे पर चुप बैठी रही और आज इसका परिणाम यह है कि सड़कें बंद हैं, आम जनता परेशान है और प्रशासन केवल सफाई देने में व्यस्त है। यह समझना आवश्यक है कि जब लोगों की शिकायतें लगातार अनसुनी रह जाती हैं, तो सड़क ही उनके लिए अंतिम मंच बन जाती है। बंद समर्थकों की हर मांग जायज है या नहीं, यह निश्चित रूप से बहस का विषय हो सकता है, परंतु इसे लगातार नजरअंदाज कर देना शासन की गंभीर विफलता का प्रतीक है। संवाद की विफलता ही अंततः टकराव को जन्म देती है, और अरुणाचल आज उसी मोड़ पर खड़ा है। फिर भी, कानून को अपने हाथ में लेना किसी भी समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। आंदोलन करना एक लोकतांत्रिक अधिकार है, पर व्यवस्था तोड़कर अधिकार की ताकत नहीं बढ़ती, बल्कि कमजोर होती है। सरकार और आंदोलनकारी संगठनों, दोनों को चाहिए कि वे जल्द से जल्द बातचीत की मेज पर लौटें और शांतिपूर्ण समाधान निकालें।

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