Karnataka Politics: राजनीति की बिसात पर हर चाल कुछ कहती है, दिल्ली का दरबार भी गवाह बनता है उन फैसलों का जो राज्यों की तकदीर तय करते हैं। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार का हालिया दिल्ली दौरा भी कुछ ऐसे ही सवालों के घेरे में रहा।
Karnataka Politics: दिल्ली की दहलीज पर शिवकुमार, क्या टलेगी ढाई साल के CM फॉर्मूले की तलवार?
Karnataka Politics: दिल्ली यात्रा, सियासी कयास और शिवकुमार का स्पष्टीकरण
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने मंगलवार को अपने दिल्ली दौरे को लेकर चल रही राजनीतिक अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह यात्रा केवल सिंचाई और शहरी विकास जैसे राज्य से जुड़े मुद्दों पर केंद्रीय मंत्रियों से मिलने के लिए थी। शिवकुमार ने किसी भी राजनीतिक एजेंडे से साफ इनकार किया और कहा, ‘मैं यहां किसी राजनीति के लिए नहीं आया हूं; मैं केवल अपने राज्य, सिंचाई और शहरी विकास के संबंध में केंद्रीय मंत्रियों से मिलने आया हूं। मैं अभी अन्य राजनीतिक मुद्दों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता।’ यह बयान ऐसे समय आया है जब राज्य में मुख्यमंत्री पद के रोटेशन को लेकर अटकलें चरम पर हैं, आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
दरअसल, सरकार के कार्यकाल का आधा समय पूरा होने के बाद, ढाई साल के सत्ता-साझाकरण समझौते की पुरानी अफवाहें एक बार फिर जोर पकड़ रही हैं। इन्हीं अटकलों के बीच, शिवकुमार का यह दिल्ली दौरा कई सवाल खड़े कर रहा था, जिस पर उन्होंने अपनी स्थिति स्पष्ट की है।
इसी दौरे के दौरान, शिवकुमार ने विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड रोजीविका मिशन (ग्रामीण) अधिनियम की कड़ी आलोचना की। उन्होंने इस ग्रामीण रोजगार योजना को ‘अंत की शुरुआत’ करार दिया और दावा किया कि नई वित्तपोषण प्रणाली इस योजना को राज्यों के लिए अव्यवहारिक बना देगी।
राष्ट्रीय राजधानी में पत्रकारों से बात करते हुए शिवकुमार ने कहा, ‘यह अंत की शुरुआत है। महात्मा गांधी का नाम बदलकर वे इस कार्यक्रम को खत्म करना चाहते हैं। कौन सी राज्य सरकार 40% देगी? भाजपा शासित राज्यों सहित कोई भी राज्य ऐसा नहीं कर सकता। यह योजना भविष्य में विफल हो जाएगी… किसी भी राज्य के लिए 40% देना असंभव है।’ यह बयान केंद्र द्वारा पारित नए कानून पर उनकी गहरी आपत्ति को दर्शाता है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1।
नया रोजगार विधेयक और राज्यों पर वित्तीय बोझ
संसद ने 18 दिसंबर को रोजगार एवं आजीविका मिशन (ग्रामीण) के लिए विकसित भारत गारंटी विधेयक (VB-G RAM G) पारित किया था और इसे 21 दिसंबर को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई। यह कानून ग्रामीण परिवारों के प्रत्येक सदस्य को मौजूदा 100 दिनों के बजाय 125 दिनों का मजदूरी रोजगार सुनिश्चित करता है, बशर्ते वे अकुशल शारीरिक श्रम करने के इच्छुक हों।
कानून की धारा 22 के अनुसार, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच निधि बंटवारे का अनुपात 60:40 होगा। वहीं, उत्तर पूर्वी राज्यों, हिमालयी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू एवं कश्मीर) के लिए यह अनुपात 90:10 निर्धारित किया गया है। शिवकुमार का तर्क है कि 40% का बोझ उठाना राज्यों के लिए असंभव होगा, जिससे इस महत्वपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। देश की हर बड़ी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
इसके अतिरिक्त, कानून की धारा 6 राज्य सरकारों को वित्तीय वर्ष में कुल साठ दिनों की अवधि को अग्रिम रूप से अधिसूचित करने की अनुमति देती है, जिसमें बुवाई और कटाई जैसे चरम कृषि मौसम शामिल हैं। यह प्रावधान राज्यों को कृषि गतिविधियों के साथ सामंजस्य बिठाते हुए रोजगार प्रदान करने में लचीलापन देगा, हालांकि वित्तीय बोझ पर चिंताएं अभी भी बरकरार हैं।






