देश में पहली एम-आरएनए कोरोना रोधी वैक्सीन को मंजूरी मिल गई है। मंगलवार को भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने पुणे की कंपनी जेनोवा बायोफार्मा की जेम्कोवैक-19 को आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है।
यह वैक्सीन पुणे की कंपनी जेनोवा बायोफार्मा ने बनाई है। यह वैक्सीन 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को लगाई जाएगी। वैक्सीन भी दो डोज की है। इसे 28 दिन के अंतराल पर लगाया जा सकेगा। पढ़िए पूरी खबर
अभी भारत में मोटे तौर पर कोवीशील्ड और कोवैक्सीन को कोरोना के लिए लगाया जा रहा है। इन वैक्सीन में कोरोना का ही मृत वायरस या कमजोर वायरस डाला गया है जो शरीर में जाने पर इम्युन रेस्पांस जगाता है। यानी हमारा शरीर इस वैक्सीन के लगने के बाद कोरोनावायरस के खिलाफ हथियार बना लेता है, जो शरीर में मौजूद रहते हैं और जब भी कोरोना का हमला होता है ये हथियार उससे लड़ते हैं।
लेकिन m-RNA वैक्सीन ऐसे काम नहीं करती। m-RNA शरीर में प्रोटीन के उत्पादन के लिए आवश्यक है। m-RNA जीन्स को पढ़कर ये खाका तैयार करता है कि प्रोटीन कैसे बनाया जाए। एक बार जब कोशिकाएं प्रोटीन बना लेती हैं तो वह m-RNA को तोड़ देती हैं। वैक्सीन का m-RNA कोशिकाओं के डीएनए को नहीं बदलता है।केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक जेम्कोवैक-19 देश की पहली स्वनिर्मित एम-आरएनए आधारित वैक्सीन है। ये वैक्सीन 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को लगाई जाएगी। दो खुराक 28 दिनों के अंतराल में लगाई जा सकेगी।
2-8 डिग्री सेल्सियस पर रखी जाएगी वैक्सीन
इस एम-आरएनए वैक्सीन की विशेषता यह है कि इसे 2-8 डिग्री सेल्सियस पर रखा जा सकेगा। इससे इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में काफी आसानी रहेगी। इस वैक्सीन का फेस-2 और फेस-3 ट्रायल के दौरान 4000 लोगों पर परीक्षण किया गया है।
कैसे करता है एम आरएनए काम
जब हमारे शरीर पर कोई वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है, तो एम-आरएनए टेक्नोलॉजी हमारी सेल्स को उस वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने के लिए प्रोटीन बनाने का मैसेज भेजती है। इससे हमारे इम्यून सिस्टम को जो जरूरी प्रोटीन चाहिए, वो मिल जाता है और हमारे शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है। इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि बाकी वैक्सीन के मुकाबले ये ज्यादा जल्दी बदली जा सकती है। यानी इसे नए वेरिएंट के हिसाब से ढालना थोड़ा आसान होता है। ये पहली बार है जब एम- आरएनए टेक्नोलॉजी पर आधारित वैक्सीन भारत में बनी है।