जादवपुर यूनिवर्सिटी इस्लामोफोबिया: दीक्षांत समारोह में छात्रों ने किया विरोध, क्या है सच्चाई?
जादवपुर विश्वविद्यालय में इस्लामोफोबिया के आरोप: क्या कहते हैं छात्र और प्रशासन?
पश्चिम बंगाल के जादवपुर विश्वविद्यालय के वार्षिक दीक्षांत समारोह में उस समय विवाद खड़ा हो गया, जब दो छात्रों ने कुलपति से प्रशस्ति पत्र और प्रमाण पत्र प्राप्त करते समय एक पोस्टर प्रदर्शित किया। इस पोस्टर पर स्पष्ट लिखा था, ‘‘जादवपुर विश्वविद्यालय में ‘इस्लामोफोबिया’ के लिए कोई जगह नहीं है।’’ इस घटना ने तुरंत ही कैंपस का माहौल गरमा दिया और यह मुद्दा सोशल मीडिया पर भी छा गया।
इन छात्रों ने दीक्षांत समारोह के बाद मीडिया से बात करते हुए बताया कि यह विरोध एक विशेष घटना के जवाब में था। उन्होंने आरोप लगाया कि सोमवार को अंग्रेजी की सेमेस्टर परीक्षा के दौरान एक पर्यवेक्षक ने सिर पर स्कार्फ पहनी तृतीय वर्ष की स्नातक छात्रा से उसकी सहपाठी का हिजाब आंशिक रूप से हटाने में मदद करने के लिए कहा था। इसका मकसद यह पता लगाना था कि कहीं वह वायरलेस हेडफोन का इस्तेमाल तो नहीं कर रही थी। हालांकि, जांच में ऐसा कुछ भी संदिग्ध नहीं पाया गया।
छात्रों का कहना था, “हमने अपनी कनिष्ठ सहपाठी के साथ हुए इस तरह के व्यवहार का पुरजोर विरोध किया, जिससे उसकी भावनाओं को ठेस पहुंची है। हमने समारोह के दौरान कोई हंगामा नहीं किया, लेकिन हमारा दृढ़ विश्वास है कि विश्वविद्यालय जैसे उदार और धर्मनिरपेक्ष संस्थान में इस तरह का भेदभावपूर्ण व्यवहार अकल्पनीय है।” आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। यह घटना कैंपस में एक गंभीर बहस का विषय बन गई है, जहां छात्र संघ और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच विचारों में भिन्नता स्पष्ट दिख रही है।
स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के एक नेता ने इस विरोध प्रदर्शन से खुद को अलग करते हुए कहा, “उन्होंने जो किया, वह पूरी तरह से उनका निजी फैसला था।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एसएफआई का इस प्रदर्शन से कोई सीधा संबंध नहीं है।
हालांकि, संकाय सदस्यों ने विश्वविद्यालय में धार्मिक भेदभाव और इस्लामोफोबिया के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि यह पूरा हिजाब विवाद परीक्षा में नकल रोकने के प्रयासों का एक हिस्सा था। अंग्रेजी विभाग के एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने बृहस्पतिवार को कहा, “हम ‘इस्लामोफोबिया’ (इस्लाम के प्रति पूर्वाग्रह) के आरोपों का दृढ़ता से खंडन करते हैं। परीक्षा के दौरान कई छात्र नकल करते पकड़े गए थे, जिसके बाद निगरानी काफी बढ़ा दी गई थी। यदि किसी का भी व्यवहार थोड़ा भी संदिग्ध लगा, तो उसकी दोबारा जांच की गई।”
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नकल रोकने के लिए बढ़ाई गई थी निगरानी: प्रशासन
प्रोफेसर ने आगे बताया, “पिछले सप्ताह कम से कम चार परीक्षार्थी हेडफोन का इस्तेमाल करते हुए पकड़े गए थे, और इनमें से कोई भी अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक नहीं रखता था। इसका मतलब यह है कि जांच प्रक्रिया सभी छात्रों पर समान रूप से लागू की जा रही थी, चाहे उनकी धार्मिक या सामुदायिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।”
उन्होंने उस विशेष घटना का भी जिक्र किया जिसमें हिजाब का मुद्दा उठा। प्रोफेसर ने कहा, “उस दिन ‘हुडी’ पहने एक छात्रा को परीक्षा पर्यवेक्षण ड्यूटी पर तैनात शोधार्थियों ने हेडफोन का इस्तेमाल करते हुए पकड़ा था। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। इसी के मद्देनजर, तीसरे वर्ष की एक अन्य छात्रा से सहयोग करने का अनुरोध किया गया और उसे बगल के एक कमरे में ले जाया गया, जहां कोई और मौजूद नहीं था। छात्रा से आवश्यक जानकारी मिलने के बाद परीक्षा बिना किसी आपत्ति के संपन्न हुई। यह पूरी प्रक्रिया सम्मानजनक तरीके से की गई।”
प्रोफेसर ने अंत में स्पष्ट किया, “हिजाब पहनी दो अन्य छात्राओं की जांच नहीं की गई, जिनमें से एक दिव्यांग थी। आप पढ़ रहे हैं देशज टाइम्स बिहार का N0.1। विश्वविद्यालय पर ‘इस्लामोफोबिया’ जैसे गंभीर आरोप लगाना बिल्कुल अनुचित है। अगर शिक्षकों को इस तरह निराधार आरोपों के साथ निशाना बनाया जाता है, तो उनके लिए अपने कर्तव्यों का निष्पक्ष और प्रभावी ढंग से पालन करना असंभव हो जाएगा। विश्वविद्यालय सभी छात्रों के लिए एक समावेशी और निष्पक्ष माहौल सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।”



