दिल्ली न्यूज़: राज्यसभा में ‘वंदे मातरम्’ को लेकर एक चर्चा चल रही थी, लेकिन तभी एक सदस्य ने कुछ ऐसा कहा कि पूरा सदन सन्न रह गया। क्या था वो बयान, जिसने ‘वंदे मातरम्’ के मायने ही बदल दिए, और क्यों उठा इस पर इतना बवाल?
राज्यसभा में ‘वंदे मातरम्’ पर गरमाई बहस
बुधवार को राज्यसभा में ‘वंदे मातरम्’ की रचना के 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक विशेष चर्चा का आयोजन किया गया था। इसी बहस में भाग लेते हुए निर्दलीय सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने ‘वंदे मातरम्’ के अर्थ और संदर्भ को लेकर एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिसने सबका ध्यान खींचा।
सिब्बल के अनुसार ‘वंदे मातरम्’ के मायने
कपिल सिब्बल ने अपने संबोधन में कहा कि ‘वंदे मातरम्’ सिर्फ अपनी मातृभूमि की रक्षा के कर्तव्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने का भी प्रतीक है। उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए बताया कि ब्रिटिश शासन के दौरान, आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारियों को “आतंकवादी” कहा जाता था, और तब ‘वंदे मातरम्’ ही उनका बुलंद नारा हुआ करता था।
वर्तमान स्थिति पर सिब्बल का तीखा वार
सिब्बल ने अपने तर्क को वर्तमान परिदृश्य से जोड़ते हुए कहा, “आज हमारे छात्र आतंकवादी बन गए हैं। हमारे पत्रकार आतंकवादी बन गए हैं। उन पर यूएपीए जैसे कठोर कानून लगाए जा रहे हैं। वे अपने हक़ के लिए लड़ रहे हैं। सवाल यह है कि उनकी इस लड़ाई को कौन लड़ेगा? सत्ता पक्ष के लोग निश्चित तौर पर उनके लिए नहीं लड़ेंगे।”
सत्ताधारी दल पर कसा तंज़
उन्होंने यह भी आश्चर्य व्यक्त किया कि जो सत्ताधारी पार्टी कथित तौर पर रोज़ाना लोगों पर अत्याचार करती है, वही ‘वंदे मातरम्’ की बात कर रही है। सिब्बल के इस बयान ने सदन में गरमाहट ला दी और कई सदस्यों के बीच कानाफूसी शुरू हो गई।
सदन में हुई आपत्ति और जवाबी कार्यवाही
कपिल सिब्बल के भाषण के तुरंत बाद, भाजपा के सदस्य राम चंद्र जांगड़ा ने उनके व्यवहार पर आपत्ति जताई। जांगड़ा ने कहा कि निर्दलीय सदस्य सिब्बल सदन में प्रवेश करते या बाहर जाते समय आसन को नमन नहीं करते, जो कि सदन की परंपराओं के खिलाफ है। इस आपत्ति के बाद सदन में कुछ देर के लिए माहौल तनावपूर्ण हो गया।


