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23 जून, 2024
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Nepal के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह… कल तलक ‘दुश्मन’ था…’दोस्त’ बन बैठा, Nepal Politics Exposed

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नेपाल में पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह के पक्ष में बढ़ती जनलहर से निपटने के लिए प्रमुख राजनीतिक (Nepal Politics Exposed । DeshajTimes.Com) दल सर्वदलीय सरकार के गठन पर विचार कर रहे हैं

पहल प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने की है

इसकी पहल प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने की है, जिन्होंने माओवादी अध्यक्ष पुष्पकमल दहाल प्रचंड और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेरबहादुर देउवा को वार्ता के लिए आमंत्रित किया है।

शाह के पक्ष में बढ़ती जनलहर ने वहां के

नेपाल में पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह के पक्ष में बढ़ती जनलहर ने वहां के राजनीतिक दलों को अचानक एकजुट होने पर मजबूर कर दिया। इसकी मुख्य वजहें ये हैं:

1. राजशाही समर्थक आंदोलन का तेज़ी से बढ़ना

हाल के महीनों में नेपाल के विभिन्न शहरों में हजारों लोग राजतंत्र की वापसी की मांग करते हुए सड़कों पर उतरे हैं। ये प्रदर्शन काठमांडू, पोखरा, चितवन, बिराटनगर, नेपालगंज जैसे प्रमुख शहरों में देखे गए।

  • प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वर्तमान लोकतांत्रिक सरकारें असफल रही हैं और नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और महंगाई बढ़ी है

  • लोग पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह को विकल्प के रूप में देखने लगे हैं क्योंकि उनके शासनकाल को कई लोग तुलनात्मक रूप से स्थिर मानते हैं।

2. राजनीतिक दलों की साख गिरना और अविश्वास बढ़ना

नेपाल की वर्तमान सरकारों पर जनता का भरोसा कम हो रहा है:

  • बार-बार सरकार गिरने और बदलने से जनता में असंतोष है।

  • भ्रष्टाचार के कई बड़े मामले उजागर हुए हैं, जिनमें सत्ताधारी दलों के नेता शामिल हैं।

  • महंगाई और बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है, जिससे आम लोग सरकार से नाराज़ हैं।

3. भारत-चीन के बीच नेपाल की कूटनीतिक स्थिति

नेपाल भारत और चीन के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता से नेपाल की विदेश नीति कमजोर हो रही है

  • भारत के साथ मधुर संबंधों की जरूरत होने के बावजूद नेपाल की सरकारें कभी चीन की ओर झुकती हैं, तो कभी भारत के साथ संबंध सुधारने का प्रयास करती हैं।

  • राजशाही समर्थक गुट नेपाल को फिर से भारत के करीब लाने की बात कर रहे हैं, जिससे पड़ोसी देशों की भी नजर नेपाल की राजनीति पर है।

4. सर्वदलीय सरकार बनाने की कोशिश क्यों?

पूर्व राजा के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, माओवादी नेता प्रचंड और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेरबहादुर देउवा एक साथ आ रहे हैं

  • अगर राजशाही की मांग और मजबूत होती है, तो राजनीतिक दलों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है

  • सर्वदलीय सरकार बनाकर वे यह संदेश देना चाहते हैं कि गणतंत्र सुरक्षित है और राजनीतिक दल जनता के हित में काम करने को तैयार हैं

क्या नेपाल में फिर से राजशाही लौट सकती है?

फिलहाल यह मुश्किल लगता है, क्योंकि:

  • नेपाल में संविधान 2015 में गणतंत्र को कानूनी रूप से स्थापित कर चुका है

  • राजशाही को बहाल करने के लिए संविधान संशोधन जरूरी होगा, जो वर्तमान राजनीतिक हालात में संभव नहीं दिखता।

  • लेकिन अगर जनता का गुस्सा बढ़ता रहा और राजनीतिक दलों की विश्वसनीयता गिरी, तो भविष्य में राजशाही की वापसी की मांग और मजबूत हो सकती है।

आज शाम होगी अहम बैठक

प्रधानमंत्री के राजनीतिक सलाहकार विष्णु रिमाल ने बताया कि आज शाम 4 बजे प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पर तीनों दलों के शीर्ष नेताओं की बैठक होगी। इस दौरान नेपाल में लोकतंत्र और गणतंत्र पर बढ़ते खतरे को लेकर चर्चा होगी।

📌 पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह के पक्ष में बढ़ती गतिविधियों से राजनीतिक दल चिंतित
📌 प्रधानमंत्री ओली, प्रचंड और देउवा के बीच सर्वदलीय सरकार पर विचार-विमर्श होगा
📌 पूर्व राजा की बढ़ती लोकप्रियता को रोकने के लिए सर्वदलीय एकता की जरूरत

प्रचंड और कांग्रेस भी एकजुट होने को तैयार

माओवादी नेता प्रचंड, जो पिछले 10 दिनों से ओली सरकार के खिलाफ अभियान चला रहे थे, प्रधानमंत्री के आग्रह पर रविवार को काठमांडू लौटे। माओवादी प्रवक्ता अग्नि सापकोटा ने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए सभी दलों को एक मंच पर आना होगा

नेपाली कांग्रेस के उपाध्यक्ष पूर्ण बहादुर खड़का ने भी कहा कि राजतंत्र समर्थक गतिविधियों को रोकने के लिए सर्वदलीय सरकार ही सबसे बेहतर विकल्प है। उन्होंने उम्मीद जताई कि आज की बैठक में इस पर कोई न कोई सहमति जरूर बनेगी

निष्कर्ष : राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, और आर्थिक चुनौतियों ने

नेपाल की मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, और आर्थिक चुनौतियों ने जनता को राजशाही की ओर देखने पर मजबूर कर दिया। इसे रोकने के लिए नेपाल के राजनीतिक दिग्गज आपसी मतभेद भुलाकर एक मंच पर आ रहे हैं और सर्वदलीय सरकार का विचार कर रहे हैं।

नेपाल में राजशाही की वापसी की बढ़ती मांग ने राजनीतिक हलकों में हलचल बढ़ा दी है, जिससे प्रमुख दलों को एकजुट होने की जरूरत महसूस हो रही है।

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