गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर सुल्तानपुर के पकड़े गए कछुआ तस्कर रवि कुमार ने बड़े-बड़े खुलासे किया हैं। पुलिसिया दावे के मुताबिक यह 50 रुपये में खरीदे गए कछुओं को 350 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेंचता था। यहां से इन्हें बड़े गैंग खरीदते हैं और विदेशों में मुंहमांगी दाम पर सप्लाई करते हैं।
यहां से विदेशों में होती है सप्लाई
पुलिस के मुताबिक सुल्तानपुर से कोलकाता पहुंचाई गई कछुओं की खेप की मुंहमांगी रेत मिलती है। एक किलो कछुआ 350 रुपये में बिकती है। यही वजह है कि पैसों की लालच में इसने कछुआ तस्करी की राह को अख्तियार की है।
पूछताछ के दौरान रवि कुमार ने पुलिस को बताया है कि वह सुल्तानपुर से इन कछुओं को 50 रुपए प्रति किलो के हिसाब से खरीदता है और कोलकाता पहुंचाकर 350 रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से बेंचता है।
सुल्तानपुर से उसने गोरखपुर तक कि यात्रा रोडवेज बस से तय की थी और यहां से अब वह रेलवे की यात्रा कर कोलकाता तक का सफर करने की फिराक में था। लेकिन पुकिस ने पकड़ लिया। अगर वह यहां से पूर्वांचल एक्सप्रेस ट्रेन पकड़कर कोलकाता पहुंच जाता तो मालामाल हो गया होता। पुलिसिया दावे के मुताबिक रवि कुमार ने बताया कि एक किलो में एक से दो कछुए ही तौले जाते हैं। एक कछुआ तकरीबन आधा किलो का होता है। उसने बताया कि कोलकाता से बड़े गैंग द्वारा इन्हें बांग्लादेश भेजा जाता है।
विदेशों में है अधिक डिमांड
तस्कर के मुताबिक विदेशों में इन कछुओं की काफी अधिक डिमांड है। वहां इन कछओं की मुंह मांगी कीमत मिलती है। खुलासा किया है कि कछुओं की तस्करी के पीछे एक बड़ा गैंग काम कर रहा है।
अमेठी-सुल्तानपुर वाया गोरखपुर काम कर रहा बड़ा गैंग
पुलिसिया दावे के मुताबिक कछुओं का यह बड़ा गैंग अमेठी, सुलतानपुर वाया गोरखपुर इन दुलर्भ कछुओं की खेप को कोलकाता पहुंचाने का काम कर रहा है। हालांकि, गंगा नदी में पाए जाने वाले कछुओं को बेहतर माना जाता है, बावजूद इसके अन्य नादियों के कछुओं की डिमांड भी काफी अच्छी है।
असम तक फैला है तस्करों का जाल
पूछताछ में सामने आई बात में यह भी खुलासा हुआ है कि इन कछुओं की तस्करी का जाल यूपी ही नहीं, बिहार, बंगाल, असम आदि राज्यों तक फैला है। क्षेत्रवार फीके इन तस्करों द्वारा इकट्ठा किया गया माल कोलकाता से विदेशों में भेजा जाता है।
थाईलैंड, मलेशिया और चीन में होती है सप्लाई
पुलिसिया पूछताछ में टूट चुके रवि कुमार ने पुलिस को बताया है कि इन कछुओं की खेप को कोलकाता पहुंचने के लिए इसके जैसे बहुत से गुर्गे हैं। बिहार, बंगाल, असम के अलावा अन्य कई राज्यों में भी इनके तार बिछे हैं। कोलकाता पहुंची कछुओं की खेप को कोलकाता से बड़े गैंग के सरगना द्वारा थाईलैंड, मलेशिया और वहीं जैसे देशों में भेजा जाता है।
महिलाएं भी गैंग की सदस्य
कछुओं की तस्करी में महिलाएं भी शामिल हैं। महिलाओं से इन कछुओं को एक जगह से दूसरे जगह पर ले जाने का काम लिया जाता है। रामन्यताय महिलाओं द्वारा पगडंडियों का सहारा लिया जाता है। यात्रा में भी इनके सहयोग को काफी सुरक्षित माना जाता है। इस काम के लिए इन्हें दैनिक मजदूरी मिलती है। तस्करी के इस काम मे सर्वाधिक लोग अमेठी और सुल्तानपुर के ही शामिल हैं। यह एक बड़ा गैंग है।
कछुओं के अंगों का अलग-अलग है उपयोग
कछुओं के हर अंग का अलग अलग उपयोग है। इनके बगल का हिस्सा शक्तिवर्धक दवाईयां बनाने के काम आता है। बीच का हिस्से का मांस खाया जाता है। बगल के हिस्सों की कीमत बंगाल व त्रिपुरा में 5 से 8 हजार रुपए प्रति किलो है। थाईलैंड, बंगलादेश, मलेशिला और चीन में इसकी कीमत 25 से 30 हजार रुपए प्रति किलो मिलती है। मांस भी लगभग 02 हजार रुपए किलो बिकता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांस की भी कीमत करीब 5 हजार रुपए किलो तक बताई जा रही है।
कहते हैं डीएफओ
डीएफओ गोरखपुर विकास यादव ने बताया कि गंगा बेसिन में पाए जाने वाले सॉफ्ट शेल्ड कछुओं के कवच और हड्डियों से शक्तिवर्द्धक दवा बनाए जाने की बात सामने आ रही है। इनके मांस की मुंहमांगी कीमत मिलती है। इसलिए इनकी तस्करी हो रही है। जल्दी ही इनके खिलाफ थिस कदम उठाए जाएंगे। हालांकि अभियान के तहत इनके खिलाफ लगातार कार्रवाईयां हो रहीं हैं।