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30 सितम्बर, 2024
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Up-Assembly-Elections: नेताओं की पाला बदल ”पॉलिटिक्स”,2022 के चुनाव में नए कलेवर में होंगे ये नेता, क्या होगा असर!

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चुनावी सरगर्मियों के बीच दल बदल में भी तेजी आ रही है जो नेता कल तक अपने पिछले दलों की रीति नीति पर जीतकर आये थे उन्हें अब उसी में खोट नजर आ रहा है।

 

हालांकि चुनावी मौसम में इससे कन्फ्यूजन भी बढ़ रहा है कि कब कौन कहां से आ जाए,इसके चलते रायबरेली में भी 2022 के चुनाव में तस्वीर अलग होगी। जो नेता 2017 में दूसरी जगह थे अब उन्होंने पाला बदल लिया है,कई औरों की उम्मीद भी है,इस क़वायद में राजनीतिक उलटफेर भी हुए हैं जिनका असर चुनाव परिणाम पर पड़ेगा।आइये जानते हैं बड़े नेताओं को और उनकी पाला बदल पॉलिटिक्स से जिसका असर इस विधानसभा चुनावों में होने जा रहा है…

एक सप्ताह पहले यूपी की राजनीति में हलचल मचा देने वाले नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ऊंचाहार से 1996 और 2002 में विधायक रह चुके हैं और रायबरेली की राजनीति में खासा प्रभाव रखते हैं।बसपा के बड़े नेता रहे मौर्य अचानक 2017 में भाजपा में शामिल हो गए,हालांकि इनकी राजनीति के केंद्र में मनुवाद और साम्प्रदायिकता का विरोध रहा है,बावजूद पूरे पांच साल ये सरकार के साथ रहे।

10 जनवरी 2022 को भाजपा सरकार पर पिछड़े और दलितों का विरोधी बताते हुए इस्तीफ़ा दे दिया।अब मौर्य सपा में शामिल हो गए और ऊंचाहार से इनके बेटे उत्कृष्ट मौर्य टिकट के प्रबल दावेदार हैं।स्वामी प्रसाद जिले में अच्छा दखल रखते हैं इससे उनके सपा में शामिल होने से स्थानीय राजनीति में कई समीकरण नए बनेंगे और कई के बिगड़ेंगे भी।

अदिति सिंह कांग्रेस के टिकट पर रायबरेली से जीती और कभी प्रियंका वाड्रा की नजदीकी हुआ करती थी। लेकिन अक्टूबर 2019 में अचानक पार्टी के ह्विप का उल्लंघन करते हुए उन्होंने प्रियंका गांधी को बड़ा झटका दे दिया।

अदिति ने इसके बाद 370,राममन्दिर आदि मुद्दों पर खुलकर भाजपा का समर्थन किया और पार्टी नेतृत्व को हमेशा घेरती रहीं। अब यह पूरी तरह से भगवामय होकर रायबरेली से चुनाव की तैयारी कर रही हैं। भाजपा के लिए उनका पार्टी में आना काफ़ी फायदेमंद साबित हो रहा है।

रायबरेली में भाजपा के कद्दावर नेता के माने जाने वाले एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह कभी कांग्रेस के बड़े नेताओं में रहे।गांधी परिवार से उनकी नजदीकी जगजाहिर रही।एमएलसी,विधायक,जिला पंचायत अध्यक्ष जैसे पदों पर उन्हीं के परिवार के लोग रहे।बावजूद 2018 में इनकी नाराज़गी पार्टी से हो गई और पाला बदल कर भाजपा में शामिल हो गए,2019 में सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ चुनाव भी लड़े।

हालांकि इसके पहले भी दिनेश सिंह सपा और बसपा में भी रह चुके हैं।अब इनके भाई राकेश सिंह के हरचंदपुर से चुनाव लड़ने की प्रबल सम्भावना है।रायबरेली की राजनीति में खासा दखल रखने वाले दिनेश सिंह इस बार विधानसभा के चुनावों में भाजपा के लिए वोट मांगेंगे।

दिनेश प्रताप सिंह के ही छोटे भाई राकेश सिंह भी कांग्रेस के टिकट पर जीते।पार्टी के मुद्दों पर हमेशा मुखर रहने वाले राकेश सिंह भी बाद में अलग राय रखने लगे और मीडिया की सुर्खियां बनते रहे।कांग्रेस ने इनके खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत भी की लेकिन दिसम्बर 2021 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने इन्होंने भाजपा की सदस्यता ले ली।अब उसी सीट से नए कलेवर और तेवर के साथ जनता के सामने हैं।उन्हें उम्मीद है कि जनता उन्हें दोबारा चुनकर सदन जरूर भेजेगी।

दल बदलने की इस कवायद में पार्टियों की रीति,नीति और सिद्धांत एक तरफ़ रह जाते हैं जिनके लिए ये दल पांच साल तक आवाज उठाने का दावा करते हैं। हालांकि पाला बदलने की इस राजनीति पर जनता क्या राय रखती है वह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा लेकिन विशेषज्ञों की राय कुछ अलग ही है।

एडीआर(एसोशिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) के प्रदेश समन्वयक संजय सिंह कहते हैं ”जिस तरह से पाला बदलने की बाढ़ आ रही है,ऐसे में 52 वें संशोधन के साथ ही चुनाव प्रक्रिया में भी व्यापक सुधार की आवश्यकता है।वर्तमान चुनाव प्रक्रिया में इसको लेकर कोई कड़े प्रावधान नहीं है जिसका भी इस मामले में असर पड़ता है।

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