सतीश झा, बेनीपुर। एक ओर पर्यावरण संरक्षण विश्व के लिए चुनौती बना हुआ है,हर देश अपने स्तर से वायु प्रदूषण रोकने के लिए जरूरी ऐतिहातिक कदम उठा रही है। वही स्थानीय किसान खरीफ का मौसम समाप्त होने के साथ-साथ किसानों में पराली जलाने की होड़ मची हुई है।
देश की राजधानी दिल्ली को सर्वाधिक प्रदूषण शहर घोषित किए जाने के बाद उसे पंजाब और हरियाणा के किसानों को दोषी ठहराते हुए ने कार्रवाई की मांग की जा रही है।
वहीं बिहार में भी विभिन्न जिलों के वायु प्रदूषण का मानक ए क्यू आई लेवल खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है लेकिन ना तो सरकार के तरफ से इन किसानों को पराली जलाने से रोकने की या पराली को विनष्ट करने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जा रही है।
और ना ही स्थानीय शासन प्रशासन द्वारा किसानों को पराली जलाने पर रोक लगाई जा रही है।किसान द्वारा धान कटनी के बाद अंधाधुंध खेतों में आग लगाकर पराली जलाई जाती है।
इससे न केवल मिट्टी की आवश्यक उर्वरा शक्ति विनष्ट हो रही है ,बल्कि पराली से उठे धुएं के कारण मिथिला का यह भूभाग भी गैस चैंबर में तब्दील होता जा रहा है। सरकार की ओर से समय-समय पर वायु प्रदूषण का एक्यूआई लेवल की जांच एवं समाचार माध्यमों से रिपोर्ट के अनुसार दरभंगा का भी एक्यूआई लेवल खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है।
लेकिन शासन प्रशासन द्वारा इसे रोकने की कोई उपाय नहीं की जा रही है।दूसरी ओर नगर परिषद की ओर से भी अपने निर्धारित स्थल पर कचरे को जमा नहीं कर यत्र तत्र फेंकी जा रही है। जहां आम लोगों को आ रही गंदगी की बदबू के कारण लोग उसमें आग लगाकर जलाना चाहते हैं।
इससे कि अनावश्यक वायु प्रदूषण का खतरा बढ़ता ही जाता है। इस संबंध में अनुमंडल पदाधिकारी शंभू नाथ झा बताते हैं कि कृषि विभाग को किसानों के बीच जागरूकता कार्यक्रम चलाना चाहिए जिससे कि आम लोग जागरुक होकर पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आए।