पटना/हाजीपुर/कोलकाता/वाराणसी/दिल्ली | बिहार की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है। आरजेडी (राजद) के पूर्व मंत्री और लालू यादव के करीबी सहयोगी आलोक कुमार मेहता के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 19 ठिकानों पर छापेमारी की है। इस छापेमारी का संबंध वैशाली शहरी विकास सहकारिता बैंक में हुई 85 करोड़ रुपये की घपलेबाजी से है, जिसमें ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया है।
छापेमारी के ठिकाने
- पटना और हाजीपुर: 9 ठिकाने
- कोलकाता: 5 ठिकाने
- वाराणसी: 4 ठिकाने
- दिल्ली: 1 ठिकाना
ईडी की टीम ने शुक्रवार सुबह आलोक मेहता के पटना स्थित आवास पर छापेमारी शुरू की, और यह कार्रवाई चार राज्यों में फैली हुई है। इस दौरान भारी पुलिस बल की तैनाती भी की गई है। आलोक मेहता पर कई गंभीर आरोप हैं, जिनमें बैंक से जुड़ी अनियमितताओं और घोटाले की जांच की जा रही है।
बैंक घोटाला और उसके संबंध
यह घोटाला वैशाली शहरी विकास कोऑपरेटिव बैंक से जुड़ा है, जहां कृषि और व्यापारिक लोन के नाम पर नियमों का उल्लंघन किया गया और 85 करोड़ रुपये की गड़बड़ी हुई।
इस घोटाले में लिच्छवी कोल्ड स्टोरेज और महुआ कोऑपरेटिव कोल्ड स्टोरेज नामक कंपनियों को 60 करोड़ रुपये का लोन दिया गया था, जो आलोक मेहता के परिवार से जुड़ी हुई हैं। इसके अलावा, आरोप है कि फर्जी पहचान पत्र और फर्जी एलआईसी पेपर के आधार पर लगभग 30 करोड़ रुपये का कर्जा भी निकाला गया।
आलोक मेहता और बैंक का इतिहास
आलोक मेहता के पिता तुलसीदास मेहता ने इस बैंक की स्थापना की थी, और उनका राजनीतिक रसूख भी बैंक के बढ़ते कारोबार का कारण था। बाद में आलोक मेहता ने इस बैंक की बागडोर संभाली। 2019 में तुलसीदास का निधन हो गया था, और आलोक ने बैंक से हटने के बाद उनके भतीजे संजीव कुमार को चेयरमैन बनाया। बैंक के लगभग 24 हजार ग्राहक हैं, जिन्होंने नवंबर 2023 में घोटाले की खबर के बाद बैंक के दफ्तर पर ताला जड़ दिया था और अपने पैसे वापस मांगे थे।
ईडी की कार्रवाई पर प्रतिक्रिया
ईडी की कार्रवाई के बाद, जेडीयू एमएलसी नीरज कुमार ने तंज कसते हुए कहा कि यह लालू और तेजस्वी यादव की संगत का असर है कि अब आलोक मेहता पर ईडी का शिकंजा कसा गया है।
आलोक मेहता ने पहले सहकारी बैंकों के व्यापारिक दायरे को बढ़ाने का सुझाव दिया था, लेकिन अब उनके खिलाफ चल रही जांच के बाद बैंक की गड़बड़ियों का पर्दाफाश हो रहा है।
निष्कर्ष:
आलोक कुमार मेहता के खिलाफ यह कार्रवाई बिहार के राजनीतिक हलकों में हलचल पैदा कर रही है। इस घोटाले में कई अधिकारियों और व्यापारिक व्यक्तियों का नाम सामने आ सकता है, और इस मामले की जांच आगे और पेचिदा हो सकती है।