नई दिल्ली/पटना, देशज टाइम्स। ‘ये असंभव टास्क है!’ – सुप्रीम कोर्ट में गूंजा सिंघवी का बयान, EC की सख्त टाइमलाइन पर सवाल।RJD-TMC-ADR पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, बोले: बिहार में लोकतंत्र पर हमला हो रहा है।क्या 2 जुलाई तक दस्तावेज़ नहीं दिए तो वोट नहीं डाल पाएंगे? सुप्रीम कोर्ट में चुनौती।क्या दस्तावेज़ के अभाव में छिन जाएगा वोट देने का अधिकार? 10 जुलाई को आएगा बड़ा फैसला।@पटना-नई दिल्ली,देशज टाइम्स।
निर्वाचन आयोग के आदेश-असंवैधानिक और मनमाना?
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए 10 जुलाई 2025 की तारीख तय कर दी है। इस मामले को लेकर देश की शीर्ष अदालत में आरजेडी, टीएमसी और एडीआर (Association for Democratic Reforms) ने निर्वाचन आयोग के आदेश को असंवैधानिक और मनमाना बताया है।
क्या है पूरा मामला?
बिहार में 8 करोड़ से ज्यादा मतदाता हैं, जिनमें से करीब 4 करोड़ लोगों के दस्तावेजों की जांच के लिए निर्वाचन आयोग ने एसआईआर प्रक्रिया शुरू की है। आरोप है कि यदि कोई मतदाता निर्धारित दस्तावेज जमा नहीं करता, तो उसका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, यह प्रक्रिया लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकती है।
शीर्ष वकीलों ने उठाए सवाल
सोमवार को मामले का ज़िक्र जस्टिस सुधांशु धुलिया की अध्यक्षता वाली वेकेशन बेंच के समक्ष किया गया। कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, गोपाल शंकरनारायणन और शादान फरासत जैसे दिग्गज वकीलों ने कोर्ट से त्वरित सुनवाई की मांग की।
सिब्बल: “अगर कोई 2 जुलाई तक दस्तावेज जमा नहीं कर सका, तो उसका नाम सूची से हट जाएगा।” सिंघवी: “4 करोड़ लोगों का सत्यापन एक असंभव कार्य है।”जस्टिस धुलिया: “फिलहाल चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं हुई है, इसलिए समय-सीमा को अंतिम नहीं माना जा सकता।”
याचिका में उठे कानूनी और संवैधानिक सवाल
प्रशांत भूषण द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया कि निर्वाचन आयोग का यह आदेश कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन का अधिकार), 32 (मूल अधिकारों की सुरक्षा) और 326 (मताधिकार) का उल्लंघन करता है। जनप्रतिनिधित्व कानून और मतदाता पंजीकरण नियमों के भी विरुद्ध है, खासकर नियम 21A का।
कम समय-सीमा बना रही बड़ा संकट
याचिका के अनुसार: यह पुनरीक्षण प्रक्रिया बिना पर्याप्त समय और पूर्व सूचना के लागू की गई। गरीब और प्रवासी नागरिकों के पास जरूरी दस्तावेज नहीं हैं, जिससे वे मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। 2003 के बाद बिहार में ऐसा कोई अंतिम पुनरीक्षण नहीं हुआ, इस वजह से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हो सकते हैं।
बिहार की सामाजिक-संवेदनशीलता को किया गया नजरअंदाज
याचिका में बताया गया कि बिहार जैसे राज्य में जहां प्रवासन (migration) और गरीबी आम है, वहां के लाखों लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र, आधार, माता-पिता के दस्तावेज जैसे ज़रूरी कागजात नहीं हैं। ऐसे में अचानक दस्तावेज मांगना मतदाता अधिकारों का हनन है।