नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रहे मतदाता सूची विशेष पुनरीक्षण अभियान (Voter List Special Revision in Bihar) को रोकने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह संवैधानिक संस्था जैसे चुनाव आयोग (Election Commission of India) को उसके कानूनी दायित्व के निर्वहन से नहीं रोकेगा। हालांकि, अदालत ने सुझाव दिया कि चुनाव आयोग आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को मतदाता की पुष्टि के लिए स्वीकार करने पर विचार करे।
ढाई घंटे तक चली अहम सुनवाई, पक्ष-विपक्ष में दिग्गज वकील उतरे
सुनवाई जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस जोयमाल्या बागची की खंडपीठ ने की।ढाई घंटे की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता पक्ष की ओर से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, शादान फरासत और गोपाल शंकरनारायण जैसे वरिष्ठ वकीलों ने दलील दी।चुनाव आयोग की ओर से राकेश द्विवेदी, केके वेणुगोपाल और मनिंदर सिंह ने जवाब दिया।
“चुनाव आयोग नागरिकता की जांच नहीं कर सकता” – याचिकाकर्ता पक्ष की दलील
कोर्ट में कुल 11 याचिकाएं दाखिल थीं।याचिकाकर्ताओं में शामिल थे – ADR (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स), PUCL, और राजनीतिक दलों जैसे RJD, TMC, कांग्रेस के नेता।
आरोप लगाया गया कि:
चुनाव आयोग सिर्फ 11 दस्तावेज ही स्वीकार कर रहा है। आधार कार्ड, वोटर ID, राशन कार्ड जैसे अहम दस्तावेजों को सूची से बाहर रखा गया है। यह प्रक्रिया जल्दबाज़ी में की जा रही है, जिससे लाखों मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। आयोग को नागरिकता की जांच का अधिकार नहीं है।
“हम केवल अपना संवैधानिक कार्य कर रहे हैं” – चुनाव आयोग की सफाई
आयोग ने कोर्ट को बताया कि:
संविधान का अनुच्छेद 324 उसे मतदाता सूची तैयार करने और उसमें संशोधन का अधिकार देता है।Representation of People Act, 1950 की धारा 21(3) के तहत वह विशेष अभियान चला सकता है।यह कहना भ्रामक है कि उसका उद्देश्य लोगों को बाहर करना है।आयोग ने यह भी बताया कि वह घर-घर जाकर जांच, मोबाइल से SMS, और फॉर्म भरवाने की प्रक्रिया भी अपना रहा है।
पूरा देश होगा कवर, सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहेगा अभियान
आयोग ने स्पष्ट किया कि यह अभियान केवल बिहार तक सीमित नहीं है। भविष्य में इसे देशभर में लागू किया जाएगा ताकि मतदाता सूची शुद्ध और पारदर्शी हो। इससे पहले भी चुनाव आयोग ने सघन पुनरीक्षण अभियान कई बार चलाया है।
अब 28 जुलाई को होगी अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को तय की है। तब तक आयोग अपनी प्रक्रिया जारी रख सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा बड़ा सवाल – क्या चुनाव आयोग नागरिकता जांच सकता है? आधार को क्यों हटाया गया? आधार को वोटर ID से हटाया गया क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब।बिहार में 7.9 करोड़ वोटरों की दोबारा जांच? सुप्रीम कोर्ट ने उठाया संविधानिक सवाल। सुप्रीम कोर्ट सख्त – मतदाता सूची में मनमानी नहीं चलेगी! EC पर उठे गंभीर सवाल।आधार की मान्यता पर उठा बवाल! सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग की दलीलें फेल?कहीं आपके नाम पर खतरा तो नहीं? सुप्रीम कोर्ट ने EC से पूछा – वोटर सूची में आधार क्यों नहीं?बिहार चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट की सख्ती! EC की प्रक्रिया पर उठे सवाल, बड़ी पार्टियां मैदान में@दिल्ली, देशज टाइम्स।
Bullet Points Summary:विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर वैधानिकता पर बहस
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से आधार को अस्वीकार करने पर जवाब मांगा। नागरिकता जांच के अधिकार को लेकर आयोग की भूमिका पर सवाल। विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर वैधानिकता पर बहस। सुप्रीम कोर्ट ने कहा — “अब बहुत देर हो चुकी है नागरिकता जांच के लिए”। राजनीतिक दलों की एकजुट याचिका, निष्पक्षता पर चिंता@देशज टाइम्स
वोटर लिस्ट पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, आधार को हटाने और नागरिकता जांच पर चुनाव आयोग से मांगा जवाब | Voter List Revision Supreme Court News
नई दिल्ली/पटना, देशज टाइम्स। बिहार में आगामी चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (Election Commission) की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। गुरुवार को हुई सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने आधार को पहचान पत्र से बाहर रखने और नागरिकता जांच जैसे मुद्दों पर आयोग की जवाबदेही तय करने के संकेत दिए।
नागरिकता जांच पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची की पीठ ने सवाल उठाया कि
“जब नागरिकता की जांच का अधिकार गृह मंत्रालय के पास है, तो चुनाव आयोग यह जिम्मेदारी क्यों उठा रहा है?”
अदालत ने कहा कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने का कार्य, सख्त प्रमाण और अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया के तहत होना चाहिए, जो चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
एसआईआर प्रक्रिया पर भी सुप्रीम कोर्ट की नजर
याचिकाकर्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल एस ने बताया कि बिहार में जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है, वह “विशेष गहन पुनरीक्षण” (Special Intensive Revision) है। इसके तहत 7.9 करोड़ मतदाताओं को दोबारा सत्यापन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है, जो कि सामान्य प्रक्रिया से हटकर है।
यह भी तर्क दिया गया कि इस प्रक्रिया को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के तहत समयबद्ध और उचित तरीके से ही लागू किया जाना चाहिए।
आधार कार्ड को मान्यता नहीं देने पर सवाल
याचिकाकर्ताओं का सवाल:
“जब आधार कार्ड को वैध पहचान पत्र के रूप में मान्यता मिली है, तो उसे मतदाता सूची में पहचान दस्तावेज के रूप में क्यों अस्वीकार किया गया?”
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चुनाव आयोग से विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा है।
राजनीतिक दलों की एकजुटता और याचिकाएं
इस मामले में कई प्रमुख दलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है: संयुक्त याचिकाकर्ता दल: कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार गुट), शिवसेना (UBT), समाजवादी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, सीपीआई और सीपीआई (एमएल), अलग-अलग याचिकाएं: राजद सांसद मनोज झा, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, इन दलों का कहना है कि आयोग की यह प्रक्रिया मतदाता अधिकारों का उल्लंघन है और इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।
लोकतंत्र की नींव से जुड़ा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि
“मतदाता सूची में पारदर्शिता और प्रक्रिया की वैधानिकता सुनिश्चित करना आवश्यक है।”
न्यायालय के इस रवैये से संकेत मिलता है कि कोई भी ढिलाई लोकतंत्र की जड़ों को प्रभावित कर सकती है।