दरभंगा जिले के जाले थाना क्षेत्र से एक गंभीर मामला सामने आया है, जहां अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाने के आरोप में एक युवती पर प्राथमिकी दर्ज की गई है। यह मामला प्रशासनिक स्तर पर तब गंभीर हो गया जब इसकी शिकायत राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes – NCSC) तक पहुंची।
प्रमाण पत्र फर्जीवाड़े की शुरुआत कैसे हुई?
जानकारी के अनुसार, जाले निवासी महेश राम की पुत्री प्रीतिबाला ने अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाया था। इसकी औपचारिक शिकायत दिल्ली के बसंत कुंज निवासी महेश राम की दूसरी पुत्री अंजू बाला ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, नई दिल्ली में की थी।
राष्ट्रीय आयोग ने पाया प्रमाण पत्र फर्जी
शिकायत की सुनवाई के बाद आयोग ने पाया कि प्रस्तुत प्रमाण पत्र फर्जी है, और इस संबंध में आवश्यक कानूनी कार्रवाई के लिए संबंधित जिलाधिकारी को निर्देश भेजा गया। आयोग ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि फर्जी प्रमाण पत्र बनवाना गंभीर अपराध है और ऐसे मामलों में सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
डीएम ने दिए एफआईआर के आदेश
दरभंगा के जिलाधिकारी (DM) ने आयोग के निर्देश को गंभीरता से लेते हुए राजस्व अधिकारी प्रवीण कुमार कर्ण को आदेश दिया कि इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कर उचित रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। डीएम का पत्र मिलने के बाद राजस्व अधिकारी ने तुरंत प्राथमिकी दर्ज कराई।
कौन कर रहा है मामले की जांच?
इस प्रकरण की जांच का जिम्मा जाले थाना के सब-इंस्पेक्टर (SI) दिवांशु शेखर को सौंपा गया है। पुलिस सूत्रों के अनुसार, संबंधित दस्तावेजों की जांच की जा रही है और जल्द ही जांच रिपोर्ट तैयार कर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
फर्जी जाति प्रमाण पत्र: कानूनी दृष्टिकोण
भारत में फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाना भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 468 (कूटरचना), और 471 (कूटरचित दस्तावेज का उपयोग) के अंतर्गत गंभीर आपराधिक अपराध माना जाता है।
इसके अलावा, जातिगत आरक्षण नीति के तहत फर्जी प्रमाण पत्र का प्रयोग कर किसी भी लाभ को प्राप्त करना संविधान और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
क्या कहता है समाज और प्रशासन?
इस घटना के सामने आने के बाद स्थानीय समाज और प्रशासनिक हलकों में हलचल मच गई है। लोगों का कहना है कि इस तरह के फर्जी प्रमाण पत्र से वास्तविक हकदारों का अधिकार छीना जाता है, और यह सामाजिक असमानता को और अधिक बढ़ाता है।
प्रत्येक जाति प्रमाण पत्र के लिए सत्यापन अनिवार्य किया जाए।
शिकायत के लिए एकल डिजिटल पोर्टल विकसित किया जाए ताकि ऐसे मामलों को प्राथमिकता से लिया जा सके।
NCSC की अनुशंसा के तहत सभी जिला कार्यालयों में फॉलो-अप ट्रैकिंग व्यवस्था हो।