दरभंगा। समाहरणालय अवस्थित बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर सभागार में जिलाधिकारी राजीव रौशन ने वर्ष 2020-21 में कृषि प्रक्षेत्र-गेहूं फसल (रबी) में दरभंगा जिले में सर्वाधिक 76 क्विंटल प्रति हेक्टर उत्पादन करने वाले किसानों को पुरस्कृत किया।
जय बाबा केदार..!
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मौके पर सदर दरभंगा, पंचायत-अतिहर, ग्राम-भगवानपुर के किसान रामप्रित मंडल को किसान गौरव पुरस्कार एवं प्रखंड स्तर पर सर्वाधिक प्रति हेक्टर गेहूं उत्पादन करने वाले 11 किसान को किसान श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इनमें सदर दरभंगा प्रखंड के बिजुली पंचायत के गौसा ग्राम के किसान सुनील कुमार यादव, बेनीपुर प्रखंड के जरसों पंचायत के लवानी ग्राम के किसान रामनरेश झा, हायाघाट के रसुलपुर पंचायत के रसुलपुर ग्राम के किसान दिनेश यादव, तारडीह के पोखरभिंडा पंचायत के पोखरभिण्डा ग्राम के किसान तेजनारायण सिंह, अलीनगर प्रखंड के
गरौल पंचायत के गरौल ग्राम के किसान लाल बाबू महतो, बिरौल प्रखंड के इटवा शिवनगर पंचायत के बराही ग्राम के किसान राजा राम यादव, मनीगाछी के राजे पंचायत के राजे ग्राम के किसान श्री नारायण झा, जो रसायन शास्त्र के प्रोफेसर भी रह चुके हैं, हनुमाननगर के मोरो पंचायत के गौढ़वाड़ ग्राम के किसान मनोज कुमार चौधरी,

कुशेश्वरस्थान प्रखण्ड के हिरणी पंचायत के कुबौटन ग्राम के किसान ललन नायक, घनश्यामपुर प्रखण्ड के रसियारी पंचायत के फैजुल्लाहपुर ग्राम के किसान रेणु देवी एवं केवटी प्रखण्ड के पैगम्बरपुर पंचायत के पैगम्बरपुर ग्राम के किसान ओम प्रकाश यादवेन्द्र शामिल हैं।
इस अवसर पर किसान गौरव से पुरस्कृत किसान रामप्रित मंडल ने अपने अधिक उत्पादन के संबंध में बताया कि विगत 04 वर्षों से वे अपनी जमीन की उर्वरकता की निगरानी कर रहे थे और मृदा कार्ड के अनुसार उर्वरक दे रहे थे।
वर्ष 2020-21 में उन्होंने गेहूं बीज का उन्नत किस्म 2967, जो सरकार की ओर से मुहैय्या करायी गयी थी, का प्रयोग किया तथा अधिक से अधिक वर्मी कम्पोस्ट प्रयोग किया, क्योंकि वे पशुपालन भी करते हैं। उन्होंने कहा कि सभी फसल के लिए वर्मी कम्पोस्ट उपर्युक्त उर्वरक है। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि अधिक से अधिक अपने खेतों में वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करें।

उन्होंने कहा कि 08 कट्टा खेत में बुआई के समय 16 किलो डी.ए.पी. तथा 04 किलो एल्मुनियम सल्फेट तथा पटवन के समय 04 किलो पोटास डाले थे।
जिलाधिकारी राजीव रौशन ने
किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि बिहार में बीज उत्पादन की असीम संभावना है और बीज उत्पादन को बढ़ाने के लिए बिहार राज्य बीज निगम कार्य करती है।

उन्होंने कहा कि किसान अगर अपने खेत में बीज का उत्पादन करते हैं, तो उसका दर निर्धारण करके उस दर पर उस बीज को बिहार राज्य बीज निगम खरीद लेती है।

उन्होंने किसान श्री पुरस्कार से पुरस्कृत किसान-सह-प्रोफेसर श्री नारायण झा के सुझाव को इंगित करते हुए कहा कि किसान उत्पादन समूह (एफपीओ) बनाकर किसान बीज उत्पादन को बढ़ावा दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि मखाना, मछली, पान यह सब हमारे यहां के पारम्परिक एवं विशिष्ट उत्पादन है। अब क्षेत्र को उसके उत्पाद से पहचाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि उस क्षेत्र के उस उत्पाद से एक पहचान मिले और इससे उत्पादन कभी-कभी इतना बढ़िया और विशेष हो जाता है कि वह उस भौगोलिक क्षेत्र के साथ सम्बद्ध हो जाता है।
जैसे, सिलाव का खाजा, हाजीपुर का केला, दरभंगा का मखान, ये सारी चीजें उस क्षेत्र की पहचान को आगे बढ़ता है और इससे माकेर्टिंग में भी सहायता मिलती है। उन्होंने कहा कि जितनी भी बड़ी कम्पनियाँ हैं, उनमें तीन कार्य होते हैं। उत्पादन पहला कार्य है, प्रोसेसिंग दूसरा और मार्केटिंग तीसरा कार्य है।
उन्होंने कहा कि मार्केटिंग के लिए लोगों को यह बताना पड़ता है कि हमारा उत्पाद अच्छा है, इस पर आप भरोसा कर सकते हैं, गुणवत्ता ही हमारे उत्पाद की पहचान है। ये बड़ी चीज होती है, ये जब स्थापित हो जाता है, तो उपभोक्ता अधिक पैसा देकर भी आपके उत्पाद को क्रय करता है।
उदाहरण स्वरूप किसान गौरव रामप्रित मंडल ने कहा कि हमने अपने उत्पाद में केवल वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग किया, तो इसकी जानकारी यदि इसकी मार्केटिंग में दी जाए, तो आज ऐसे भी उपभोक्ता समूह है, जो अपने स्वास्थ्य की दृष्टिकोण से ऐसे उत्पाद को अधिक कीमत पर खरीदने को तैयार हैं। इसलिए अपने उत्पाद की मार्केटिंग पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि हल ही में नबार्ड की बैठक हुई थी, जिसमें एफ.पी.ओ. (किसान उत्पादक समूह) बनाने पर चर्चा हुई थी, यह 300 से 400 किसानों का एक समुह होता है। लोग कहते है कि इसका क्या फायदा है? जुड़ने वाले किसान कहते है कि इससे हमें क्या लाभ मिलेगा? जिलाधिकारी ने कहा कि जब आप एक संगठन बनाते हैं, तो संगठन अपने आप में एक शक्ति होती है।
उन्होंने कहा कि 01 किसान अगर 50 क्विंटल भी उत्पादन कर लिया, तो भी वह बाजार में बड़े स्तर पर बात नहीं कर सकता है, लेकिन 400 किसान यदि अपने उत्पादन को 01 जगह रखता है, तो देश के बड़े व्यापारी,बड़ी कंपनी से भी उत्पाद बेचने की बात कर सकता है, जो उस उत्पाद पर अपना व्यवसाय, अपना कारखाना चलता है।
उन्होंने कहा कि सरकार के स्तर से यह भी बात चल रही है कि इनपुट सपोर्ट के लिए भी किसान उत्पादक समुह के सदस्य को उर्वरक या बीज की अनुज्ञप्ति दी जाएगी, ताकि समुह को निर्धारित मूल्य पर उर्वरक और बीज प्राप्त हो सके और उन्हें गुणवत्ता पूर्ण चीज सही कीमत पर मिल सके।

उन्होंने कहा कि कई बार उन्हें शिकायत मिलती है कि कहीं युरिया निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य पर मिल रहा है, इससे यह समस्या समाप्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि बोरी पर लिखे एम.आर.पी. में दुकानदार का लाभ भी समाहित रहता है, इसलिए एम.आर.पी. से अधिक मूल्य नहीं होना चाहिए। इसलिए यदि एफ.पी.ओ. के किसान को उर्वरक की अनुज्ञप्ति मिलेगी, तो वह अपने किसानों को सही मूल्य पर उर्वरक उपलब्ध करायेगा।
इस प्रकार मूल्य पर भी नियंत्रण को सकेगा। उन्होंने अमूल एवं सुधा उत्पाद समूह का उदाहरण देकर सहकारी समिति की शक्ति से किसानों को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि हमें उत्पादन के बाद प्रोसेसिंग पर जाना होगा। क्योंकि आप ही के मक्का से बने पॉपकॉर्न सिनेमा हॉल में 200 रूपये में बिकता है, जिसका लागत मुसकिल से 05 से 10 रूपये होगा।
उन्होंने कहा कि प्रोसेसिंग से मूल्य में सम्बर्धन होता है। इस प्रकार एफपीओ का भी एक ब्रॉड हो, एक पहचान हो और बाजार में विश्वास हो।
उन्होंने कहा कि बाजार एक जटिल प्रणाली है और इसमें एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक समूह ही साख स्थापित कर सकता है। उन्होंने लिज्जत पापड़ एवं हल्दी राम उत्पादन समूह की सफलता से किसानों को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि यदि आप आलू उत्पादन करते हैं और प्रोसेसिंग करके आलू चिप्स बनाते हैं और उसका पैकेजिंग करके उसकी ब्रांडिग करते हैं, तो उसका मूल्य बढ़ जाता है और इसकी अच्छी मार्केटिंग हो सकती है। इस प्रकार किसान उत्पादन समूह के माध्यम से आप अपने उत्पाद के लिए अर्तराष्ट्रीय स्तर पर बाजार स्थापित कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि मखाना की मांग जापान में होती है। उन्होंने कहा कि मखाना का प्रोसेसिंग कर कई प्रकार के रेडिमेट फुड तैयार किये जा सकते हैं।उन्होंने कहा उन्हें एक बार बहेड़ी के एक किसान द्वारा मखाना का पाउडर दिये जाने की बात आज भी याद है, कि किस तरह उसे दूध में 03 मिनट तक उबालने पर एक स्वादिष्ट और पौष्टिक खाद्य पदार्थ तैयार हो गया।
उन्होंने कहा कि कृषि सचिव कहते हैं हमारे किसानों को ऐसा लगता है कि हम खेती के बारे में सब कुछ जानते हैं, लेकिन वास्तव में वे सभी बातें नहीं जानते हैं। खेती सदियों पुराना व्यवसाय है, लोग सदियों से खेती करते आ रहे है, लेकिन हर दिन उसमें सुधार होती रहता है।
उन्होंने कहा कि मिट्टी की जाँच किये बिना उसमें उर्वरक डालना हानिकारक भी हो सकता है। मिट्टी हमारे शरीर की तरह है। जिस तरह शरीर में कोई तत्व यथा कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन या वसा अधिक हो जाने पर वह लाभ के बजाय हानी करता है, उसी प्रकार खेत में बिना मिट्टी जाँच कराये यूरिया पर यूरिया डाले जाना हानीकारक होता है। इससे पौधा हरा तो दिखता है, लेकिन उत्पादन नहीं बढ़ता है।
उन्होंने सभी पुरस्कृत किसानों को कहा कि आप लोगों ने खेती में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और हम चाहते हैं कि आप एफ.पी.ओ. के माध्यम से इसे और आगे ले जाए। सरकार की जो अन्य कृषि संबंधित योजनाएँ हैं, उसे आगे ले जाए और दरभंगा की पहचान उसके उत्पाद से करें। बैठक में उप निदेशक, जन सम्पर्क नागेन्द्र कुमार गुप्ता, परियोजना निदेशक आत्मा, पूर्णेन्दु झा एवं अन्य संबंधित पदाधिकारी उपस्थित थे।
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