एक आदमी पेट काट कर, अपना घर चलाता है। खून पसीना बहा बहा कर , मेहनत की रोटी खाता है। खुद भूखा सो जाए पर, बच्चो की रोटी लाता है। तू उनसे छीन निवाला, जाने कैसे जी पता है। इस देश की है बीमारी, ये भूखे भ्रष्टाचारी, जिस थाली में खाना खाते, ये छेद उसी में करते हैं, लात गरीब के पेट पे मार, घर अपना ये भरते है। इस देश की है बीमारी, ये धनवान भिखारी। इस देश की है बीमारी, ये मूल्यों के व्यापारी। नीलाम देश को कर दे ये, जो इनका बस चल जाए, भारत मां को कर शर्मिंदा, ये उसकी कोख लजाए। इस देश की है बीमारी, ये दानव अत्याचारी, खून चूसकर जनता का, ये अपना राज चलाएं, जो खाली रह गया इनका पेट, नरभक्षी भी बन जाएं। माता पिता ने पढ़ा लिखाकर, तुमको अफसर बना दिया, आज देखकर लगता है कि सबसे बड़ा एक गुनाह किया। रिश्वत लेने से अच्छा था, भिक्षा लेकर जी लेते..मुंह खोलकर मांगे पैसे, बेहतर होंठ तुम सी लेते, लाखों का धन है तो भी , क्यों आज भिखारी बन बैठे, काले धन की पूजा करके, जाने कैसे तन बैठे, भूल गए, बचपन में तुम भी, खिलौना देख रो देते थे, आज कैसे, उन नन्हे हाथों से, खेलने का हक़ ले बैठे।





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