मुख्य बातें
तृतीय सिंदूर दान व टेमी दागने के साथ ही मधुश्रावणी पर्व सम्पन्न
मिथिला में तृतीय सिंदूरदान के नाम से प्रसिद्ध है मधुश्रावणी
पाक्षिक इस पर्वोत्सव में नवविवाहिता उन्मुक्त वातावरण में प्रकृति संग करती है बिहार
व्रत समाप्ति के पश्चात महिलाओं को निमंत्रण देकर भोजन कराने की रही है परंपरा
फोटो: मधुश्रावणी पूजन करती नवविवाहिता
फोटो: पूजन के बाद नवविवाहिता के घर जाकर आशीर्वाद (सुहाग) देते ससुर व अन्य
मधुबनी देशज ब्यूरो ब्यूरो। नव विवाहिता स्त्रियों के सुखमय दांपत्य जीवन जीने की कला सिखाने वाला मिथिला का पाक्षिक पारंपरिक लोकपर्व मधुश्रावणी रविवार को हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। श्रावण मास के झमाझम बारिश एवं प्राकृतिक रमणीय वातावरण के बीच शनिवार को ही नवविवाहिता के ससुराल से मधुश्रावणी पूजन सामग्रियां एवं मिठाई -पकवान आने लगे थे।
रविवार को विपरीत मौसम के बावजूद व्रतियों ने सर्वप्रथम महिला पुरोहित द्वारा बताए गए नियमों का पालन कर विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की। तत्पश्चात वर्षों से चली आ रही परंपरा को अक्षुण्ण रखते हुए विधिकरी अथवा अन्य अविवाहित स्त्री की ओर जलते हुए दीप के बाती से व्रति के शरीर के कुछ स्थानों पर दागने की रस्म पूरी की गई।ऐसी मान्यता है कि इससे नवविवाहिता के धैर्य की परीक्षा होती है तथा ससुराल में गृहस्थ जीवन के सुखमय व्यतीत होने के आत्मबल में दृढ़ता प्रदान करती है। मधुश्रावणी के दिन जिन नवविवाहिता के पति उपस्थित रहते हैं उनके द्वारा पूजन के उपरांत अपनी पत्नी के मांग में पुनः सिंदूर किया जाता है जिसे मिथिला में तृतीय सिंदूरदान के नाम से जाना जाता है।
हालांकि जिनके पति किन्हीं कारणों से उपस्थित नहीं हो पाते हैं उनके आभाव में वहां उपस्थित अविवाहित महिलाओं की ओर से सिंदूर मांग में लगाया जाता है। श्रावण कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि से शुरू यह पर्वोत्सव श्रावण शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को टेमी दागने के साथ ही सम्पन्न हुआ। अलबता जो भी हो लोक संस्कृति का यह महापर्व नवविवाहिता स्त्रियों ने समर्पण, निष्ठा, सहिष्णुता एवं प्रेम उल्लास के माहौल में बहुत ही मनोयोग से पूजा अर्चना कर सम्पन्न किया।
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