
आलीशान इमारतें तो हैं मगर समतल व चौड़ी सड़कों पर फर्राटा दौड़ती कारें व चकाचौंध रौशनी हमारे शहर को नसीब नहीं। कहने को यह मिथिलांचल का सबसे धनी व रईस शहर है मगर यहां रइसी करने लायक कुछ भी चीज अधिकारियों, ठेकेदारों, नौकरशाहों, जनप्रतिनिधियों से लेकर अदना सा ऑफिसर तक ने कुछ ना छोड़ा। यहां तक कि शहर में नो इंट्री के नाम पर जमकर वसूली खुलेआम हो रही आम आदमी के चक्के फंस रहे मगर पैसे वालों की चांदी सड़कों पर साफ दिखती है। ऐसा जब सड़कों पर दिखने लगे तो समझिए कि आप अपने गांव-जवार से दूर किसी शहर में हैं। वैसे गांव की सूरत भी बदल रही लेकिन बदलते वक्त के साथ शहर हमारी जरूरत बनता गया। नगरीय जीवन ने हमें एक तरफ आर्थिक उन्नति का ढांचा दिया तो दूसरी तरफ भाग-दौड़ भरी जिंदगी भी, जिसमें आपसी रिश्ते बहुत प्रभावित हुए। मगर सबसे मस्त हैं वो पुलिस वाले जिनकी हर जगह खूब ऐंठी चलती है चाहे शहर हो या गांव। शहर में नहीं कुछ मिला तो रेवड़ी वालों से दस गोलगप्पे खा लिए वहीं सामने से कोई वाहन नो इंट्री में घुसता दिखा तो पैसे ऐंठ लिए। हालात बदतर है। परेशानियां रो-रोकर खामोश हो गईं हैं मगर इन पुलिसवालों की हैसियत सरकार से भी आज बड़ी है। ऐसे में मन उदास बस यही गा रहा, शौक से तोड़ो दिल मेरा, मुझे क्या परवाह तुम ही रहते हो यहां, अपना घर उजाड़ोगे। मगर वहीं बैठे दादा कहिन…ए सुन लालटोपी वाले…मुझ को कहानियां ना सुना शहर को बचा।
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