दरभंगा समेत पूरे बिहार में इन दिनों अपराधियों की बादशाहत कायम हो गई है। हत्या आम तो लूट, छिनतई सरेआम। ऐसे में, हालात यह है कि अपराधी खुलेआम पुलिसवालों को चुनौती दे रहे लेकिन पुलिस वाले अपने चरित्र से बाज नहीं आ रहे। इसका खामियाजा उच्च पदों पर बैठे आलाधिकारियों को हो रही है जिनका रोजाना छीछालेदर इस कदर हो रहा कि पूरी सरकार उसकी पूरी व्यवस्था ही कटघरे में खड़ी दिख रही। नतीजा, वर्दी वाले कहलाते हैं, जिनके कांधों पर भार रखा,जन जन की अभिलाषाओं का। जो धरती पर अपवाद बनें मानव की परिभाषाओं का। मानव का जो तन रखकर भी निज अधिकारों से वंचित होते। जो तुम्हे सुरक्षित रखने को, खुद रात रात भर ना सोते। जो सब की खुशियों की खातिर, खुद की खुशियां सुलगाते हैं। वर्दी वाले कहलाते हैं,पुलिस वालों पर ज़िम्मेदारी का सवाल होता हैं, इन्हें खुद से ज्यादा दूसरों का ख्याल होता है। मगर हालात यही है, पुलिस के सिस्टम पर सवाल उठ रहे। मजबूरियां सामने हैं जहां मुजरिम मां के पेट में कम, और पुलिस स्टेशन की गेट पर ज्यादा बनते हैं। समाज का पुलिस विभाग से उठता भरोसा और घंटों-घंटों सड़क जाम इस बात की ताकीद कर रही कि हालात अब काफी बदतर हो चले हैं। ऐसे में, कोरा सा जीवन का पन्ना,सावधान,चौकस, चौकन्ना,लाठी,खुरपा,बीट,रमन्ना,कुछ भी भर लो मुंशी जी,आमद कर लो मुंशी जी…।
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