वर्ष 1974 राम मनोहर लोहिया…वर्ष 2022 नरेंद्र मोदी…48 साल का सफर…एक अकेला नीतीश कुमार। परछाई को भी साथ छोड़ देने की कूबत, उसी ताकत, आत्मविश्वास, ढ़ृढ़ निश्चय से अनवरत, निरंतर बढ़ने वाला एक बिहार का शख्स नीतीश कुमार। समाजवाद का अक्षर…हू-ब-हू, साक्षात् देह के हर नस में। नफस में हर कोण को छूती राजनीतिक सुझ-बूझ। सबूत यही…आठ बार की शपथ…मैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ईश्वर की शपथ लेता हूं…इसी शपथ में छुपा हर राज। हर कोण। बिहार का संपूर्ण-दृष्टिकोण।
आज की भारतीय राजनीति का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधित्व कौन कर सकता है? इसमें भी नीतीश कुमार सबसे आगे हैं। आज की राजनीति किसी विचारधारा या सिद्धांत या नीति पर तो चल नहीं रही? डाॅ. राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के बाद राजनीति में सिर्फ सत्ता और पत्ता ही है। कोई ऐसा माय का लाल है इस देश में, जिसका दावा हो, अपने विरोधियों से हाथ नहीं मिलाया? सत्ता सुख, भोगने की परिपाटी, पार्टियों के सिद्धांत, विचारधारा और नीति कहां और किस मोड़ पर है, यह सच्चाई सबके सामने है।
मध्यप्रदेश की सरकार, महाराष्ट्र की सरकार के लिस्टम, उसके छंद, व्याकरण, मनोबल, राजनीतिक देह में उसी घृणा के सापेक्ष्य हैं जहां, सिद्धांत यही, सोच यही, विचारधारा यही, बस, सरकार चाहिए। शुचिता की बात बेइमानी।
नीतीश को भाजपा गिरा देती। आरसीपी की प्रियतमा वाली छवि को मुठ्ठी से बकोट लेने वाली भाजपा, क्या बिहार में जनगणना को राजी थी? आठ बार किसी को सीएम बनते देश ने आज तक देखा। भले, नीतीश कुमार पलटू हों। मगर, उनके पलटने की बाजीगरी भी एक अध्याय है। उस अध्याय में सीख भी है। राजनीति की समझ भी। वह सूझ भी जिससे एक पार्टी सर्मथ, मजबूत और ससख्त बनती है।
आरसीपी का केंद्रीय मंत्री बनाना। धीरे-धीरे नीतीश से तोड़ना? अंत में, मोदी से मुलाकात और खुलकर जदयू को तोड़ने, मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश लिए सुदामा…उसी कृष्ण से उलझ पड़ता है, संपूर्णता को तोड़ने की चाह में उसका यूं एजेंट बनना…क्या ठीक था?
परछाईं भी अंधेरे में लुप्त हो जाती है। कभी अंधेरे में खुद की परछाईं दिखी है। नामुमकिन…उजाले चाहिएं उस परछाईं को भी, जो कब-कैसे-कहां से उभरता और लुप्त, खो जाता है। उसी की देह में, जिसकी वह पैदाइश है। आज यही हुआ?
परछाईं की लंबी होती चाहत ने उसे अंधेरे के घेर में यूं बांधा, पिरो दिया, उजाले भी साथ देंगे…सोचनीय है।
थ्री इडियट…के डायलॉग में गुजरात से आया था वो…फिर पीएम का तंज…पेरौडी भी थ्री इडियट वाली…फिर वर्ष 2017 में हम साथ-साथ हैं। आज…शॉटकट…काला जादू और पीएम मैटेरियल की चर्चा।
बीजेपी का सिद्वांत। टूटकर भी ना जुड़ सकने वाली। शुरूआत वहीं से खत्म भी वहीं पर। बीजेपी-जदयू की सरकार बनी। उपमुख्यमंत्री से सुशील मोदी हटा दिए गए। पहली जोड़ी तो वहीं टूटी। नई जोड़ी रास ना आई। फिर, प्रदेश अध्यक्ष का फेसबुक लताड़…अंत हश्र के साथ सामने। जब लड़ने की बारी आई, उसी सुशील मोदी को आगे कर दिया, जिसके पास बोलने के लिए सिर्फ और सिर्फ यही बचा था, नीतीश उपराष्ट्रपति बनना चाहते थे? सवाल यह भी है, अब हरिवंश बाबू का क्या होगा? उनकी अपनी जिद है। कहानी है। फंसाना है। नीतीश कुमार से नाराजगी है। समय का तकाजा है, उन्हें भी सोचना पड़ेगा…?
गठबंधन धर्म, जातीय जनगणनना, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा…शराबबंदी…लॉ एंड आर्डर…हर फ्रंट पर लगड़ी मारते धर्म के विपरीत, अधर्म की राह पर चलता…कयास यही…अब टूटा तब टूटा…आखिर टूटा।
एनडीए से अलग होकर महागठबंधन संग सरकार बनाने वाले नीतीश कुमार बोलते कम हैं। उन्हें गुस्सा होते कम ही लोगों ने देखा-सुना है। हमेशा बातों को मुस्कुराकर जवाब देना इनकी नीयत में है। मगर, चौदह मार्च को जो हुआ। जो दिखा। सर्वथा अचंभित करने वाला था।
सत्ता और विपक्ष में नोकझोंक ये राजनीति के डोर हैं। मगर, आमने-सामने जब मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष ही दिखे दो-दो हाथ करते, मामला कितना गंभीर होगा, परिणाम आज दिख रहा। जहां, बिहार के पूर्व उद्योग मंत्री शहनबाज हुसैन यह कहते मिले, टेकऑफ किया तो बिहार का उद्योग मंत्री बनकर और जब लैंड किया तो पता चला…मैं मंत्री ही नहीं रहा। सरकार ही चली गई।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने लखीसराय के एक मामले को लेकर आपा खो दिया। मुख्यमंत्री ने आसन की ओर इशारा कर यहां तक कहा, संविधान का खुलेआम उल्लंघन हो रहा। इस तरह सदन नहीं चलेगा। यही नहीं इस पर, विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा (Vijay Kumar Sinha) ने भी कहा, आप ही बोलिए, जैसे आप कहेंगे, वैसे ही चलेगी।
बिहार विधानसभा के प्रश्नकाल के दौरान लखीसराय में 50 दिन में 9 लोगों की हत्या क्या हुई। आज तो उसका असर बड़े शक्ल और अलग समीकरण के साथ फूटा, पड़ा, बीजेपी को कोने में घसीटे पड़ा है। भले, इसका दूरगामी परिणाम जो निकले, फिलहाल, उस दिन, विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा के क्षेत्र के सवाल को बीजेपी विधायक संजय सरावगी ने क्या उठाया…आज सरकार ही उठ गई।
उस दौरान, सीएम ने कहा था, हम न किसी को फंसाते हैं और न किसी को बचाते हैं। सीएम और विधानसभा अध्यक्ष (Speaker Vijay Sinha ) के बीच तीखी बहस के बीच में कूदे, बीजेपी कोटे के तत्कालीन मंत्री नितिन नवीन,बीजेपी विधायक हरि भूषण ठाकुर, बीजेपी विधायक नीतीश मिश्रा ने जिस तरीके नीतीश पर निशाना साधा। खुलेआम, लोकतंत्र को शर्मसार करने वाला, आसन को अपमानित करने वाला, स्वस्थ परंपरा नहीं है, ऐसी घटना की तीखी भर्त्सना करता हूं…का फलसफा आज दिख रहा।
जब, सीएम नीतीश कुमार के निशाने पर भाजपा नेता विजय कुमार सिन्हा आ गए हैं। राज्य में सरकार बदलने के बाद भी अब तक स्पीकर पद नहीं छोड़ने वाले विजय कुमार सिन्हा पर मुख्यमंत्री नीतीश जमकर बरसे। पटना सचिवालय पर राष्ट्र ध्वज फहराने वाले सात शहीदों की प्रतिमा पर माल्यार्पण-पुष्पांजलि कर श्रद्धांजलि देने के बाद मुख्यमंत्री विजय सिन्हा को जमकर सुनाया। उन्होंने कहा कि विजय सिन्हा को नियम और कानून का पता होना ही चाहिए।
मुख्यमंत्री श्री कुमार कह रहे हैं, विजय सिन्हा जिनके समर्थन से स्पीकर बने थे वे सब उनसे अलग हो चुके हैं। उन्हें कानून का पता होना ही चाहिए। विजय कुमार सिन्हा अविश्वास प्रस्ताव का सामना किए बगैर अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं?विजय कुमार सिन्हा आज ही अपने इस्तीफे का ऐलान कर सकते हैं। दरअसल, आज शहीद दिवस है। ऐन मौके पर विधानसभा में कार्यक्रम का आयोजन है। विजय कुमार सिन्हा इस मौके पर मौजूद रहेंगे। इसी दौरान वह अपने इस्तीफे को लेकर कोई जानकारी साझा कर सकते हैं। शायद…?
बुधवार को ही महागठबंधन की तरफ से विस अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा के खिलाफ विधानसभा सचिव को अविश्वास प्रस्ताव दिया गया था। राजद के मुख्य सचेतक ललित यादव समेत सत्ता पक्ष के अन्य नेताओं ने विधानसभा सचिवालय को करीब 75 विधायकों का हस्ताक्षर किया हुआ अविश्वास प्रस्ताव सौंपा था। सदन में अब महागठबंधन की सरकार है। ऐसे बहुमत के हिसाब से विजय सिन्हा का हटना भी तय है। सच मानो तो…मनोरंजन ठाकुर के साथ