कुंदन राय, देशज टाइम्स नई दिल्ली ब्यूरो प्रमुख।मिथिलांचल बाइस जिलों में फैला क्षेत्र है। बिहार के अंदर अगर मिथिलांचल को विकसित करने की सुनियोजित योजना लागू कर इन बाइस जिलों को बुनियादी सुविधाओं के साथ आधुनिक तरीके से विकसित किया जाए तो पूरे तौर पर बिहार की रूप रेखा बदल सकती है लेकिन इसके लिए राज्य के साथ साथ केंद्र सरकार को भी सक्रियता दिखाने की आवश्यकता होगी। मिथिलांचल के करोड़ों वासियों के मन में मिथिलावाद की अंगड़ाई समय-समय पर उठती रहती है पर वह आज तक एक क्रांति का रूप नहीं ले सकी।
राजधानी में तीस लाख मिथिलावासी संघर्षरत
देश की दिल्ली में एक आंकड़ें के मुताबिक तीस लाख से ऊपर मिथिलावासी हैं और उनके रग में भी मैथिल संस्कृति की खून बह रही है। स्पष्ट है कि राजधानी में धीरे-धीरे अपनी राजनीतिक सिक्का स्थापित करने के तरफ अग्रसरित मिथिलांचलवासियों के मन में कहीं न कहीं मिथिलावाद ही केंद्र में है। मिथिलांचल के रूप में अलग राज्य बनाए जाने का जनसंघर्ष अपने टूटती सांसों को कायम रखने के लिए संघर्षरत है।
मिथिला विकास बोर्ड के गठन को चाहिए बंद मुठ्ठी की ताकत
मिथिलांचल के विकास के लिए मिथिला विकास बोर्ड का गठन एक उचित व सामयिक मांग प्रतीत हो रहा है। प्रश्न है कि मिथिला विकास बोर्ड बनाए जाने की मांग को एक सशक्त मंच क्यों नहीं मिल पा रहा। इसके पीछे निश्चित रूप से अनगिनत मैथिल सेवा संस्थानों जो कि मिथिलांचल के विकास व उसकी संस्कृति को बढ़ाबा देने के नाम पर पंजीकृत है के आपसी दूरी और बिखराव की ओर संकेत करता है। वैसे भी, लोकतंत्र के भारतीय मॉडल में ये परंपरा रही है कि एक दल या संगठन के जनहित से जुड़े मुद्दों को दूसरा दल नकार देते हैं।
मिथिलांचल हित की उठेगी आवाज क्या आप भी हैं साथ
ऐसे में, छात्र संगठन इकाई मिथिला स्टूडेंट यूनियन की ओर से अपनी मांगों को लेकर जारी संघर्ष को बलबती करना समय की मांग प्रतीत हो रहा है। मिथिला स्टूडेंट यूनियन की ओर से आहूत होने वाली आगामी दो दिसंबर का प्रदर्शन मिथिला विकास बोर्ड की मांग को केंद्र में रख कर किया जा रहा है और इस तरह की मांग को हर तरह के संस्थानों से समर्थन मिलनी चाहिए। दो दिसंबर को दरभंगा का राज मैदान शायद पीले रंग से पटी पड़ी हो और दिल्ली में बसे मिथिलांचल वासियों का नजर उस दिन राज मैदान पर टिकी हो पर सबके मन में इस बात की कसक जरूर रहेगी कि इस क्रांति को मिथिलांचल के हित की आवाज उठाने के लिए हजारों पंजीकृत संस्थाओं का मुखर समर्थन क्यों नहीं मिल पा रहा।