बिहार विधानसभा सत्र 2025: पटना। बिहार विधानसभा का शीतकालीन सत्र 2025 जारी है और दूसरे दिन सदन ने एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार कर लिया। गहमागहमी के बीच आखिरकार विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया संपन्न हो गई, जिसके साथ ही सदन को उसका नया मुखिया मिल गया है। अब देखना होगा कि सदन की कार्यवाही में यह नई नियुक्ति क्या बदलाव लाती है और विधायी कामकाज किस दिशा में आगे बढ़ता है।
अध्यक्ष पद का संवैधानिक महत्व
विधानसभा अध्यक्ष का पद भारतीय लोकतंत्र में बेहद महत्वपूर्ण होता है। यह सिर्फ एक संवैधानिक पद नहीं, बल्कि सदन की गरिमा, नियमों और परंपराओं का संरक्षक भी होता है। अध्यक्ष सदन की बैठकों का संचालन करते हैं, सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी बहस और मतदान निष्पक्ष तरीके से हों। उनका निर्णय अंतिम होता है और वे सदन के भीतर अनुशासन बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष यह जिम्मेदारी निभाते हैं।
चुनाव प्रक्रिया और दूसरे दिन की कार्यवाही
विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव सदन के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है। आमतौर पर, पहले दिन प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति होती है, जो नए सदस्यों को शपथ दिलाते हैं और अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया संपन्न कराते हैं। बिहार विधानसभा सत्र 2025 के दूसरे दिन इसी चुनाव को प्राथमिकता दी गई। सदस्यों ने अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत मतदान किया और बहुमत से नए अध्यक्ष का चुनाव किया। इस प्रक्रिया के पूरा होने के साथ ही सदन ने अपने नियमित विधायी कामकाज की ओर कदम बढ़ा दिया है।
विधायी कार्यों को मिलेगी गति
नए अध्यक्ष के चुनाव के साथ ही बिहार विधानसभा अब पूरी गति से अपने एजेंडे पर आगे बढ़ सकेगी। अध्यक्ष की मुख्य भूमिका सदन में विभिन्न विधेयकों, प्रस्तावों और बजट पर चर्चा को सुचारु रूप से संचालित करना है। उनका अनुभव और नेतृत्व सदन को उत्पादक बहस और निर्णय लेने में मदद करेगा। आने वाले दिनों में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा और निर्णय अपेक्षित हैं, जिनके लिए एक सशक्त और निष्पक्ष अध्यक्ष का होना अनिवार्य है। यह चुनाव राज्य के विधायी भविष्य के लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक है।








