सतीश चंद्र झा, बेनीपुर, दरभंगा | स्थानीय अदालत में धोखाधड़ी और गबन से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में एसीजेएम संगीता रानी ने सख्त फैसला सुनाया है। अदालत ने भारत फाइनेंशियल कंपनी के एक फील्ड ऑफिसर को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 और 406 के अंतर्गत दो-दो वर्ष की साधारण कारावास और दो-दो हजार रुपये का जुर्माना सुनाया है।
प्री-लोन क्लोज का झांसा देकर किया गया बड़ा गबन
अभियुक्त रवि किशन मिश्रा, जो कि भारत फाइनेंशियल इनक्लूजन लिमिटेड (BFIL) में फील्ड ऑफिसर के पद पर कार्यरत था, का कार्य था — ग्रामीण महिलाओं को दिए गए समूह ऋण की वसूली कर उसे कंपनी के पास जमा करना।
परंतु, अभियुक्त ने महिलाओं को “प्री-लोन क्लोज” (Pre-Loan Close) यानी समय से पहले ऋण बंद करने का झूठा झांसा देकर उनसे नकद राशि वसूल की और उसे कंपनी के पास जमा नहीं किया।
कुल ₹14,80,241 की रकम का किया गबन
वर्ष 2022 में इस गबन की जानकारी सामने आने के बाद, तत्कालीन शाखा प्रबंधक सुनील कुमार ने बहेड़ा थाना में कांड संख्या 374/2022 दर्ज करवाई। जाँच में सामने आया कि रवि किशन मिश्रा ने ₹14,80,241 की राशि का गबन किया, जिसे कंपनी के खाते में जमा नहीं किया गया था।
अदालत ने सुनाया सख्त फैसला
सरकारी अभियोजक शशि रंजन कुमार ने अदालत को बताया कि अभियुक्त के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत किए गए, जिसके आधार पर अदालत ने उसे दो अलग-अलग धाराओं में दो-दो साल की साधारण कारावास की सजा सुनाई। दोनों सजाएँ समानांतर (concurrently) चलेंगी, अर्थात अभियुक्त को कुल दो साल की सजा भुगतनी होगी। साथ ही ₹4,000 का जुर्माना भी लगाया गया है।
मधेपुर का रहने वाला है अभियुक्त
अभियुक्त रवि किशन मिश्रा, बिहार के मधुबनी जिले के मधेपुर गांव का निवासी है। ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने के बावजूद उसने महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए दिए गए ऋण का दुरुपयोग कर समाज और कंपनी, दोनों के साथ विश्वासघात किया।
महिलाओं को किया गया आर्थिक रूप से शोषित
यह मामला केवल आर्थिक अपराध नहीं है, बल्कि यह उन ग्रामीण महिलाओं के साथ भी अन्याय है जो अपने स्वरोजगार या छोटे व्यवसाय के लिए समूह ऋण लेती हैं। अभियुक्त ने उनकी आर्थिक निर्भरता और जानकारी की कमी का फायदा उठाकर उन्हें ठगा।
न्यायपालिका का सख्त संदेश
इस फैसले से स्पष्ट होता है कि बिहार की न्यायपालिका आर्थिक अपराधों के प्रति सख्त रुख अपनाए हुए है। यह निर्णय ऐसे कर्मचारियों के लिए चेतावनी है जो वित्तीय संस्थानों में रहते हुए लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर धोखाधड़ी करते हैं।
निष्कर्ष: ग्रामीण बैंकिंग में पारदर्शिता अनिवार्य
इस घटना ने यह स्पष्ट किया कि वित्तीय संस्थाओं में कार्यरत कर्मचारियों की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी आवश्यक है। साथ ही, ग्रामीण महिलाओं को वित्तीय जानकारी देने हेतु वित्तीय साक्षरता अभियानों की ज़रूरत है ताकि वे किसी भी प्रकार की ठगी से बच सकें।